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झुरको गांव के ग्रामीणों को एक पक्की सड़क भी नसीब नहीं

शिकारीपाड़ा प्रखंड के झुरको गांव के ग्रामीण अब एक अदद सड़क की आस में पगंडडियों के सहारे ही रास्ता नापते हैं। गांव की आबादी तकरीबन 2000 के आसपास है। गांव में आदिवासी समुदाय के अलावा पिछड़ी जाति कोयरी व वैश्य समुदाय के लोग रहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 08:46 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 08:46 PM (IST)
झुरको गांव के ग्रामीणों को एक पक्की सड़क भी नसीब नहीं
झुरको गांव के ग्रामीणों को एक पक्की सड़क भी नसीब नहीं

संवाद सहयोगी, पत्ताबाड़ी: शिकारीपाड़ा प्रखंड के झुरको गांव के ग्रामीण अब एक अदद सड़क की आस में पगंडडियों के सहारे ही रास्ता नापते हैं। गांव की आबादी तकरीबन 2000 के आसपास है। गांव में आदिवासी समुदाय के अलावा पिछड़ी जाति कोयरी व वैश्य समुदाय के लोग रहते हैं।

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अधिकतर ग्रामीणों के जीविकोपार्जन का साधन सब्जी की खेती है, लेकिन उत्पादित सब्जी को बेचने के लिए हाट बाजार ही सहारा है। ऐसे में पक्की शहर नहीं रहने के कारण बरसात के दिनों में आवागमन में भारी फजीहत होती है। ग्रामीण सुभाष मांझी जैसे कई अन्य लोगों ने बताया कि सड़क के अभाव में उत्पादित फसल बाजार तक ले ही नहीं जा पा रहे, जिससे आर्थिक क्षति हो रही है। ग्रामीणों की पीड़ा:

झुरको गांव में पक्की सड़क की मांग लंबे समय से यहां के ग्रामीण कर रहे हैं। इसके लिए कई ग्रामीणों ने वर्ष 2019 में अपनी रैयती जमीन राज्यपाल के नाम दान भी दे चुके हैं। इसके बाद अंचल कार्यालय द्वारा जांचोपरांत जेई द्वारा पथ निर्माण के लिए 65 लाख रुपये का प्राक्कलन तैयार कर स्वीकृति के लिए रांची भी भेजा गया, लेकिन लॉकडाउन के कारण आगे कोई पहल नहीं हो सकी।

अमूल्य पंजियारा, ग्रामीण

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दो दशक में कई सरकारें बनीं, लेकिन झुरको में एक अदद सड़क नहीं बन पाई। सड़क निर्माण की मांग को लेकर गांव के ग्रामीण जिले के उपायुक्त व उप विकास आयुक्त और क्षेत्र के विधायक नलिन सोरेन से मिलकर भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन स्थिति अब भी जस की तस है।

गोपाल पंजियारा, ग्रामीण

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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के समक्ष भी झुरको से काठीजोरिया तक पक्की सड़क के निर्माण के लिए गुहार लगाई थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब नई सरकार से उम्मीद थी, लेकिन साल भर बाद भी ग्रामीणों के हाथ खाली हैं। सड़क बन जाने से ग्रामीणों की समस्या का स्थायी समाधान हो जाएगा।

सुनील हेंब्रम, ग्रामीण

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मसानजोर डैम के समय हम लोगों की जमीन डूबान क्षेत्र में चली गई। इसके बावजूद किसी तरह से गुजरा करते हैं, लेकिन पक्की सड़क नहीं होने से काफी परेशानी होती है। सब्जी अगर उगा भी लें तो उसे बाजार ले जाना किसी चुनौती से कम नहीं।

हीरालाल मंडल, ग्रामीण


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