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कलियुग में अवतार की नहीं संस्कार की जरूरत : ब्रह्मानंद

रामगढ़ रामचरित मानस और महाभारत में भाई-भाई का किस्सा है। रामचरित मानस में जहां भाईयों में आपसी त्याग और प्रेम की कहानी है तो वहीं महाभारत में भाई-भाई के बीच आपसी वैमनस्यता लालच और द्वेष की बात आती है। उक्त बातें सोमवार को रामगढ़ के छोटी रणबहियार गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ के तीसरे दिन सोमवार को मथुरा के कथा व्यास राष्ट्रीय संत काष्णी बालयोगी ब्रह्मानंद प्रवचन करते हुए कहीं। कौरव और पांडव का जिक्र करते हुए कहा कि पांडव पुत्र के पास संस्कार था। पांडव के पांचो पुत्र सहित माता कुंती पौत्रवधू उत्तरा समेत पूरा परिवार भगवान ठाकुर के भक्त थे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 05:45 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 05:45 PM (IST)
कलियुग में अवतार की नहीं संस्कार की जरूरत  : ब्रह्मानंद
कलियुग में अवतार की नहीं संस्कार की जरूरत : ब्रह्मानंद

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संवाद सहयोगी, रामगढ़: रामचरित मानस और महाभारत में भाई-भाई का किस्सा है। रामचरित मानस में जहां भाईयों में आपसी त्याग और प्रेम की कहानी है तो वहीं महाभारत में भाई-भाई के बीच आपसी वैमनस्यता , लालच और द्वेष की बात आती है।

उक्त बातें सोमवार को रामगढ़ के छोटी रणबहियार गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ के तीसरे दिन सोमवार को मथुरा के कथा व्यास राष्ट्रीय संत काष्णी बालयोगी ब्रह्मानंद प्रवचन करते हुए कहीं। कौरव और पांडव का जिक्र करते हुए कहा कि पांडव पुत्र के पास संस्कार था। पांडव के पांचो पुत्र सहित माता कुंती, पौत्रवधू उत्तरा समेत पूरा परिवार भगवान ठाकुर के भक्त थे। सभी लोगों को ऐसे ही अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर भक्ति करनी चाहिए तभी जीवन का उदय हो सकेगा। हर व्यक्ति के जीवन में गुरू होता है इसलिए सभी को अपने गुरू की आज्ञा का पालन करना चाहिए। गुरू की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले का कभी कल्याण नहीं हो सकता है। कहा कि जहां तर्क है वहां नर्क है और जहां संस्कार है वहां उद्गार है। कलयुग में धर्म का मूल दान है। इसलिए सभी लोगों को दान अवश्य करना चाहिए। इस युग में तप, दया, धर्म और करूणा करना संभव नहीं है अत: दान करके ही हम कलयुग में अपना जीवन धन्य कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक हम दुख में होते हैं भगवान भी हमारे साथ होते हैं। दुख मांग कर कुंती माता ने भगवान श्रीकृष्ण को सदा के लिए अपना बना लिया था। क्योंकि पांडव को राज्य मिलने पर वह राज्य को छोड़कर जा रहे थे अर्थात सुख में भगवान भी साथ छोड़ देते हैं। भागवत कथा में प्रतिदिन सुबह हवन होने के बाद ही कथा का शुभारंभ होता है।


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