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आस्था के आंगन में पहुंची निष्ठा

दुमका कांवर यात्रा का इतिहास प्राचीन है। बिहार के सुल्तानगंज से बाबाधाम की यात्रा 105 किमी की है। कांवर यात्रा का यह पहला पड़ाव है। कांवरिया अपनी यात्रा बाबा बासुकीनाथ के दरबार में आकर पूरी करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 04:56 PM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 04:56 PM (IST)
आस्था के आंगन में पहुंची निष्ठा
आस्था के आंगन में पहुंची निष्ठा

दुमका : कांवर यात्रा का इतिहास प्राचीन है। बिहार के सुल्तानगंज से बाबाधाम की यात्रा 105 किमी की है। कांवर यात्रा का यह पहला पड़ाव है। कांवरिया अपनी यात्रा बाबा बासुकीनाथ के दरबार में आकर पूरी करते हैं।

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सुल्तानगंज में गंगा उत्तरायण बहती है। कांवर में यहां का पावन जल भरकर शिवभक्त बोलबम-बोलबम का महामंत्र जपते हुए अपनी कठिन यात्रा पूरी करते हैं। सुल्तानगंज के तट पर एक लाख श्रद्धालु कांवर में जल भरते हैं तो उसमें दस हजार देवघर से बासुकीनाथ कांवर लेकर जाते हैं। देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के दरबार को हाईकोर्ट और बासुकीनाथ दरबार को सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट में तुरंत सुनवाई हो जाती है सो, कोलकाता के बाबा बासुकीनाथ सेवा मंडल की 128 सदस्यीय भक्तों की टीम सुल्तानगंज से कांवर लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट में हाजिरी लगाते हैं।

कोलकाता की इस टीम का इस बार 21वां साल है, जब वह पूरे निष्ठा भाव से सुल्तानगंज से सीधे 118 किमी की कांवर यात्रा कर बाबा बासुकीनाथ को जलार्पण कर अपनी मनोकामना पा रहे हैं। भक्त मंडल का नेतृत्व कर रहे कोलकाता के सत्यनारायण गुप्ता यह कहते हुए खुशी से फफक पड़ते हैं कि इस दरबार से अटूट आस्था जुड़ी है। जब भी हाथ फैलाया सारे कष्ट दूर हो गए। दुनियां का ऐसा दरबार है जहां सारी मन्नतें पूरी हो रही हैं। 21 वां साल पूरा हो गया भक्ति के इस डगर में। जब ये भक्त बासुकीनाथ पहुंचते हैं तो दर्शनिया टीकर से गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा निकालते हुए मंदिर पहुंचते हैं। 128 सदस्य जब कांवर लेकर रास्ते में एक साथ एक कतार में चल रहे थे तो उनको देखते ही बन रहा था।

एक बम के पैर में बंधा घुंघरू भी कुछ कह रहा था। उसकी रूनझुन सी आवाज तब झंकार बन जाती थी जब उसके कदम लपकने लगते थे। एक माता बम के हाथ में डफली थी जिसे वह हवा में लहराकर उसे ताल में बांधकर अपने कदम को बढ़ा रही थी। 6 दिन का सफर पूरा कर यह टीम सातवें दिन जलार्पण करती है। इनकी टीम में 23 पंडित थे जो आठ-आठ कांवर लेकर चल रहे थे। इतने कांवर लेकर चलने की जिज्ञासा। एक ने कहा कि जो लोग नहीं आ सकते परंतु उनकी श्रद्धा है कि उनका कांवर बाबा बासुकीनाथ पर चढ़े। ऐसे लोगों की कांवर लेकर चल रहे हैं।

सुल्तानगंज से बासुकीनाथ धाम तक का रूट

सुल्तानगंज के सीढ़ी घाट पर बाबा बासुकीनाथ को कांवर का जल चढ़ाने का संकल्प। मुख पर बोलबम। कांधे पर सजा हुआ कांवर। कांवर के आगे और पीछे घुंघरू। भक्ति देखनी हो तो एक बार कांवर की यात्रा करके देखिए। आपका रोम रोम पुलकित हो जाएगा। श्रद्धा और भक्ति की ऐसी बयार इस राह में बहती है कि आप अपना सुध-बुध खो जाएंगे। केवल और केवल शिव ही याद आएंगे। सुल्तानगंज से बासुकीनाथ की कांवर यात्रा का रूट ही अलग है। सुल्तानगंज से चलने के बाद अंबा अगला पड़ाव होता है। अंबा के बाद अमरपुर। यहां से कांवरियों की यात्रा का विराम पुनसिया में होता है। पुनसिया से चलकर बौंसी। अब यह सफर हंसडीहा की ओर बढ़ता है। हंसडीहा से नौनीहाट। और उसके बाद बासुकीनाथ।

दो रास्ते पर मंजिल एक

बासुकी बाबा को भागलपुर जिला के दो घाट का जलअर्पण होता है। एक सुल्तानगंज और दूसरा भागलपुर के बरारी घाट का। दो रास्ते पर मंजिल एक। बरारी से डाकबम की यात्रा होती है। बासुकीनाथ के दरबार में डाकबम जो भी आते हैं वह बरारी से ही जलभरकर बोलबम-बोलबम कर अनवरत चलते हैं और एक सांस में चलकर अपना संकल्प पूरा करते हैं। डाक बम को हंसडीहा में गोल्डन पास दिया जाता है।

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