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2000 करोड़ बांस उत्पाद के निर्यात पर झारखंड की नजर

दुमका भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डालर करने में झारखंड का बांस उत्पाद मील का पत्थर साबित होगा। विदेशों में आज प्राकृतिक सामग्रियों से निíमत वस्तुओं की मांग अधिक है। खासकर बांस के घरेलू उपयोग फर्नीचर बास्केट पैकेजिग आइटम की मांग ने एक बड़ा बाजार तैयार किया है। विकसित देशों में संप्रति दो हजार करोड़ के सामानों की खपत है। भारत में झारखंड में बांस की संभावनाएं अधिक बन रही हैं। यहां 6 लाख कारीगर भी हैं। बांस को फसल की तरह उपज करने। कारीगर को चीन व वियतनाम की तरह कुशल बनाने। विदेशों में बांस के उत्पाद की मांग व डिजाइन को ध्यान में रखकर उत्पाद तैयार करने की योजना रघुवर सरकार ने बनाया है। दुनियां को इसी बात से अवगत कराने के मकसद से दो दिवसीय बांस कारीगर मेला का आयोजन किया गया। समापन पर उद्योग सचिव के रविकुमार ने एक विशेष सत्र विचार-मंथन का आयोजन किया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 06:59 PM (IST)Updated: Sat, 21 Sep 2019 06:39 AM (IST)
2000 करोड़ बांस उत्पाद के निर्यात पर झारखंड की नजर
2000 करोड़ बांस उत्पाद के निर्यात पर झारखंड की नजर

दुमका : भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डालर करने में झारखंड का बांस उत्पाद मील का पत्थर साबित होगा। विदेशों में आज प्राकृतिक सामग्रियों से निíमत वस्तुओं की मांग अधिक है। खासकर बांस के घरेलू उपयोग, फर्नीचर, बास्केट, पैकेजिग आइटम की मांग ने एक बड़ा बाजार तैयार किया है। विकसित देशों में संप्रति दो हजार करोड़ के सामानों की खपत है। भारत में झारखंड में बांस की संभावनाएं अधिक बन रही हैं। यहां 6 लाख कारीगर भी हैं। बांस को फसल की तरह उपज करने। कारीगर को चीन व वियतनाम की तरह कुशल बनाने। विदेशों में बांस के उत्पाद की मांग व डिजाइन को ध्यान में रखकर उत्पाद तैयार करने की योजना रघुवर सरकार ने बनाया है। दुनियां को इसी बात से अवगत कराने के मकसद से दो दिवसीय बांस कारीगर मेला का आयोजन किया गया। समापन पर उद्योग सचिव के रविकुमार ने एक विशेष सत्र विचार-मंथन का आयोजन किया। इसमें नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान के निवेशकों के साथ साथ सार्क डेवलपमेंट फंड से जुड़े प्रतिनिधियों संग खुलकर विचार-विमर्श किया। फेडरेशन ऑफ बाइंग एजेंट, मध्यप्रदेश व कर्नाटक बंबू मिशन के निदेशक भी यहां मौजूद थे। सबने अपने-अपने विचार रखे। एक बात जो सबने स्वीकारा कि यह एक अंतरराष्ट्रीय मंच देने की कोशिश जो झारखंड सरकार ने की। वास्तव में इससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार कुछ करना चाहती है।

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दुमका में बांस की गुणवत्ता बेहतर

विदेशों से बांस के बने सामान का आयात करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे फेडरेशन ऑफ बाइंग एजेंट्स के निदेशक लोकेश पराशर ने अपना पक्ष रखते कहा कि भारत सरकार ने अगरबत्ती स्टिक के आयात पर रोक लगा दिया है। दो सौ करोड़ का कारोबार था। अब क्रेता उसी गुणवत्ता की स्टिक के साथ-साथ अन्य घरेलू उत्पाद की मांग कर रहे हैं। उसी को ढूढ़ने दुमका आया था। वास्तव में यहां का उत्पाद व डिजाइन अच्छा है। जरूरत है कुशल कारीगर व डीमांड को पूरा करने की। क्रेताओं की कमी नहीं है। विकसित देशों में 2000 करोड़ के निर्यात का बाजार है। इतना केवल निर्यात किया जा सकता है। राज्य सरकार यह आश्वस्त करे कि वह जो मांग करेंगे वह गुणवत्ता के साथ समय पर मिल जाएगा। करोड़ों का ऑर्डर देने को तैयार हैं। जागरण से बातचीत में लोकेश ने कहा कि सरकार से एमओयू करेंगे। विदेश में मांगे जानेवाले डिजाइन, मार्केटिग व क्वालिटी में नॉलेज पार्टनर के रूप में सहयोग करेंगे। बताया कि वह 17 साल में केवल बांसुरी 20 लाख का बेच चुके हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड में संभावनाएं हैं लेकिन अब तक व्यवसायिक पहचान नहीं मिल पाई है। जिसके लिए यह प्रयास सराहनीय है।

झारखंड के सहयोग से नेपाल में करेंगे उत्पाद

नेपाल के झापा कनकाई से आए राजेंद्र पोखरेल ने कहा कि हमारे यहां परंपरागत तरीके से बास्केट, चटाई, कोठी बनाई जा रही है। लेकिन यहां के बांस की क्वालिटी अच्छी है। यहां से पौधा लेकर नेपाल में दस लाख की नर्सरी लगाएंगे। वहां माल बांस, फोर बांस व भालू बांस है। लेकिन यहां का बांस बढि़या है। मेला में आकर बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। यहां के कारीगर को नेपाल ले जाकर वहां के कारीगर को फाइन आर्ट से प्रशिक्षित कराएंगे। नेपाल सरकार के पास यह प्रस्ताव रखेंगे। आनेवाले समय में वहां की गरीबी इससे कम हो सकती है। व्यापार घाटा को कम किया जा सकता है।

सरकार हर कदम पर करेगी सहयोग

सरकार की ओर से उद्योग सचिव ने स्पष्ट कहा कि पांच साल का एक्शन प्लान बन रहा है। बांस के उच्च नस्ल की खेती की जाएगी। मुख्यमंत्री ने 20 करोड़ पौधारोपण को हरी झंडी दे दी है। बांस के पौधरोपण, डिजाइन के लिए प्रशिक्षण केंद्र, सामान्य सुविधा केंद्र खोले गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता के लिए कारीगर को प्रशिक्षित किया जाएगा। सरकार उपकरण, प्रशिक्षण व खेती के लिए अनुदान पर जमीन भी देने को तैयार है। दोनों मिलकर कदम बढ़ाएं, ताकि दुनियां के बाजार में यहां का गुणवत्ता युक्त उत्पाद को बेचा जा सके। आपके मांग के हिसाब से पूíत करेंगे। बाजार के लिए फ्लिपकार्ड से भी करार हो चुका है। फेडरेशन ऑफ बाइंग एजेंट्स के निदेशक को सचिव ने भरोसा दिलाया कि वह पूरा सहयोग करेंगे। उद्योग सचिव को अफगानिस्तान के प्रतिनिधि ने कहा कि वह यहां की बांस की प्रजाति को ले जाएंगे। कारीगर को भी अपने यहां ले जाकर वहां के कारीगरों को भी हुनरमंद बनाएंगे। वास्तव में यहां के कारीगर कुशल हैं।

दुमका की मिट्टी का नमूना ले गए वैज्ञानिक

सेमिनार में आए वैज्ञानिक यहां की मिट्टी का नमूना ले गए। अब वे उसकी जांच कर सरकार को बताएंगे कि यहां कौन सी प्रजाति के बांस का पौधारोपण बेहतर होगा। क्योंकि कर्नाटक में हो रही पैदावार में बीमा बंबू एक नंबर पर है। यह एक ऐसी प्रजाति है, जो तीन साल में तैयार हो जाती है। यह बांस की तरह झाड़ी नुमा नहीं होता। यह धान की क्यारी की तरह होता है। मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड के सीईओ अजय कुमार सिंह ने कहा कि सेमिनार में बांस की खेती पर कई सुझाव आए। बताया गया कि एक बांस से जितना आक्सीजन निकलता है उससे एक आदमी के एक दिन की खुराक पूरी हो जाती है।


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