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नई पीढ़ी में उत्साह पर बुजुर्गो की निगाह में वह बात नहीं

दुमका : 125 वर्ष पुराना ऐतिहासिक जनजातीय हिजला मेला का आयोजन सरुआ पंचायत की जमीन पर होती है। इसी पंचायत का एक गांव है हड़वाडीह। मेला परिक्षेत्र से बिल्कुल सटा हुआ है। गांव की बुजुर्ग महिला बाहा टुडू हिजला मेला में पाइकहा नृत्य को मिस करती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 06:29 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:29 PM (IST)
नई पीढ़ी में उत्साह पर बुजुर्गो की निगाह में वह बात नहीं
नई पीढ़ी में उत्साह पर बुजुर्गो की निगाह में वह बात नहीं

दुमका : 125 वर्ष पुराना ऐतिहासिक जनजातीय हिजला मेला का आयोजन सरुआ पंचायत की जमीन पर होती है। इसी पंचायत का एक गांव है हड़वाडीह। मेला परिक्षेत्र से बिल्कुल सटा हुआ है। गांव की बुजुर्ग महिला बाहा टुडू हिजला मेला में पाइकहा नृत्य को मिस करती है। कहती है कि उस जमाने की बात ही कुछ और थी। माथे पर मोर मुकुट और पैरों में घुंघरू व झुमका लगाकर आदिवासी महिला पइकहा नृत्य करती थी। उसे देखने जाते थे। ग्रामीणों की खूब भीड़ उमड़ती थी। गांव की महिलाएं मेला के दौरान सुबह-सुबह मेला परिक्षेत्र जाकर टूटे हुए घुंघरूऔर झुमका चुनने जाती थी। बाहा ने कहा कि उनके जमाने में बुजुर्ग महिलाओं के बीच मूढ़ी फांकने की प्रतियोगिता होती थी जिसमें वे भी हिस्सा ले चुकी हैं। युवा संजय हेंब्रम, संतोष हांसदा, राकेश मुर्मू समेत कई का कहना है कि मेला का स्वरुप बदला है। चकाचौंध बढ़ गया है लेकिन सब कुछ ठीक ही है। एक सवाल पर कहा कि इस गांव से कोई व्यक्ति हिजला मेला में दुकान लगाने वाला नहीं है। हालांकि इस गांव का होनहार आनंद हांसदा पिछले वर्ष उसने हिजला मेला में आयोजित दौड़, गोला फेंक और लंबी कूद में मेडल जीता है।जिला मुखिया संघ के अध्यक्ष चंद्रमोहन हांसदा ने कहा कि समय के साथ हो रहे बदलाव को देखते हुए हिजला मेला में आदिवासी फैशन शो

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को बढ़ावा दिया जाएगा। इस बार इसकी जोरदार तैयारी है। इसके अलावा आदिवासी वेश-भूषा व संस्कृति को भी बढ़ावा देने की दिशा में गंभीरता से पहल होगी। बहरहाल हड़वाडीह गांव पर नजर डालें तो तकरीबन 30 परिवार रहते हैं। इसी गांव से सटा एक और गांव है धत्तीकबोना। तकरीबन 31 परिवारों की बस्ती। धान की खेती के अलावा मजदूरी, दारु व हड़िया बनाकर जीवन बिता रहे इस गांव के लोगों की ¨जदगी भी फटेहाल है। हिजला मेला को लेकर गांव व ग्रामीणों में कोई खास उत्साह नहीं है। गांव के जोग मांझी इलायची सोरेन बताते हैं कि अब हिजला मेला में हटिया नहीं लगता है। पहले यहां गाय-बैल का हाट तक लगता था। हिजला पहाड़ के चारों ओर दौड़ व साइकिल रेस प्रतियोगिता का आयोजन होता था। जीतनेवाले को हरक्यूलिस साइकिल इनाम में दिया जाता था। अब तो सब कुछ बंद हो रहा है। पुíमला सोरेन गांव की बहू है। कहती है हिजला मेला अच्छा लगता है। मेला देखने जाएगी और जरूरी सामान भी खरीदेगी। वैसे इस गांव के विकास पर निगाह डालें तो गांव का विकास होना शेष है। बुनियादी समस्याओं से ग्रामीण जूझ रहे हैं। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की ओर से बनाया गया शौचालय स्वच्छता व आदर्श गांव जैसे दावों को झूठा साबित कर रहा है। दरअसल यह उस गांव की सूरत है जो जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर है और इन गांवों में जनजातीय आबादी बसती है और जनजातीय हिजला मेला का उद्देश्य इनकी संस्कृति व जीवन शैली को मजबूत करने की है।

वर्जन

समय के साथ मेला के आयोजन में बदलाव है और यह चुनौती सामने है कि मेला के उद्देश्य व इसकी अक्षुण्णता बरकरार रहे। इसके लिए मेला आयोजन समिति को गंभीरता से विचार करना चाहिए। कृषि प्रदर्शनी व किसानों को प्रेरित करने की दिशा में गंभीरता से पहल होनी चाहिए।

चंद्रमोहन हांसदा, अध्यक्ष, जिला मुखिया संघ

फोटो : 08

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हिजला मेला को अब राजकीय जनजातीय मेला का दर्जा हासिल है। इसलिए यह आवश्यक है कि मेला का स्वरुप भी इसी स्तर पर विकसित हो और मेला के उद्देश्यों का भरपूर लाभ समाज को मिले। हिजला मेला की अक्षुण्णता बरकरार रहे यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विमल मरांडी, संताल परगना प्रभारी, भाजयुमो

फोटो : 09


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