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युवाओं के भविष्य से खेल रहे फर्जी डॉक्टर

दुमका दुमका में अभी तक ग्रामीण इलाकों में यदा कदा फर्जी डॉक्टर मिला करते थे लेकिन किसी तरह की कार्रवाई न होने के कारण अब इनका दायरा बढ़कर शहर पहुंच गया है। खुद को नेत्र सहायक कहलानेवाले लोग विशेषज्ञ बनकर नौकरी के लिए लोगों को बाकायदा प्रमाणपत्र देकर उनके भविष्य से खेल रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 04:10 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 04:10 PM (IST)
युवाओं के भविष्य से खेल रहे फर्जी डॉक्टर
युवाओं के भविष्य से खेल रहे फर्जी डॉक्टर

दुमका : दुमका में अभी तक ग्रामीण इलाकों में यदा कदा फर्जी डॉक्टर मिला करते थे लेकिन किसी तरह की कार्रवाई न होने के कारण अब इनका दायरा बढ़कर शहर पहुंच गया है। खुद को नेत्र सहायक कहलानेवाले लोग विशेषज्ञ बनकर नौकरी के लिए लोगों को बाकायदा प्रमाणपत्र देकर उनके भविष्य से खेल रहे हैं। इतना ही नहीं इन लोगों ने बाकायदा अपने नाम की डॉक्टर लिखी हुई मुहर भी बना ली है और प्रमाणपत्र जारी करने के बाद किसी का डर भी नहीं है। नेत्र सहायक ने खुद को डॉक्टर बताकर कई जगह पर निजी क्लीनिक भी खोल दिया है।

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क्या है पूरा मामला

सदर अस्पताल में अभी नेत्र सहायक के रूप में काम करनेवाले दिवाकर वत्स करीब पांच साल पहले अनुबंध पर शिकारीपाड़ा में तृतीय कर्मचारी के रूप में बहाल हुए। विभागीय लाभ उठाकर उन्होंने अपना प्रतिनियोजन सदर अस्पताल में करा लिया। दुमका आते ही इन्होंने अपने नाम के आगे बाकायदा डॉक्टर शब्द भी जोड़ दिया। डॉक्टर का नाम लगते ही शहर में पांच स्थान उदय मेडिकल हाल, नगर थाना के सामने, सोनुवाडंगाल स्थित अपने आवास और हांसदा क्लीनिक समेत पांच जगह पर क्लीनिक भी खोल लिया। डॉक्टर बनने के बाद इनके पास रेलवे की परीक्षा देने के बाद नेत्र फिटनेस का प्रमाणपत्र लेने के लिए दुमका का रवींद्र मुर्मू आए। दस अप्रैल को दिवाकर उसे प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया। प्रमाण में विशेषज्ञ के रूप में अपना नाम दिया और हस्ताक्षर के साथ अपने नाम की मुहर लगा दी। जबकि नेत्र सहायक को किसी तरह का प्रमाणपत्र देने का अधिकार नहीं है। वह केवल जांच कर दवा व चश्मा आदि दे सकता है। प्रमाणपत्र केवल विशेषज्ञ ही दे सकते हैं। इस प्रकार से दुमका में कई और डॉक्टर ऐसे हैं जो इस तरह का कार्य कर रहे हैं। अभी एक ही मामला सामने आया है। हो सकता है कि इसी तरह से कई लोगों को प्रमाणपत्र जारी किया गया हो।

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सकते में स्वास्थ्य विभाग

स्वास्थ्य विभाग नेत्र सहायक की इस हरकत पर हतप्रभ है। उनका कहना है कि नेत्र सहायक को न तो क्लीनिक खोलने का अधिकार है और न ही वह किसी तरह का प्रमाणपत्र जारी कर सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो यह क्लीनिकल स्टेबलिस्मेंट का खुला दुरूपयोग हैं। इसके लिए जुर्माना का भी प्रावधान है। प्रमाण देखने के बाद विभाग भी हरकत में आया और आनन-फानन में पत्र भेजकर दिवाकर से उनकी डिग्री व प्रमाणपत्र की मांग की गई।

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वर्जन

दिवाकर वत्य एक नेत्र सहायक हैं। अगर वे खुद को डॉक्टर लिखकर किसी को प्रमाणपत्र देते हैं तो यह गैर कानूनी है। अपने नाम में डॉक्टर जोड़कर वह निजी क्लीनिक भी नहीं चला सकता हैं। मामला संज्ञान में आया है। दिवाकर को पत्र भेजकर डिग्री और शैक्षणिक प्रमाण दिखाने को कहा गया है। जांच के बाद ही आवश्यक कार्रवाई की जाएगी, ताकि फिर कोई इस तरह का गैर कानूनी काम नहीं कर सके।

डॉ. अनंत कुमार झा, सिविल सर्जन, दुमका।

वर्जन

मेरे नाम का गलत इस्तेमाल कर प्रमाण जारी किया गया है। किसी ने बदनाम करने की नीयत से इस तरह की हरकत की है। नाम के साथ मुहर का भी इस्तेमाल किया है। मैं एक नेत्र सहायक हूं और फिटनेस का प्रमाण विशेषज्ञ ही दे सकते हैं। जिस बोर्ड में उनके नाम के आगे डॉक्टर शब्द लिखा है उसे मिटा दिया जाएगा। प्रमाण किसने और कब जारी किया है, इसकी जानकारी नहीं है।

दिवाकर वत्स, नेत्र सहायक, दुमका


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