मातृभाषा में मां की आंचल का स्नेह : प्रो. मनोरंजन
दुमका : सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के मिनी कांफ्रेस हॉल में बुधवार को मातृभाषा दिवस के अवसर पर
दुमका : सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के मिनी कांफ्रेस हॉल में बुधवार को मातृभाषा दिवस के अवसर पर कुलपति प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिन्हा की अध्यक्षता में एक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस मौके पर कुलपति प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने कहा कि मातृभाषा वही भावनात्मक सुरक्षा देती है जो मां की आंचल से मिलती है। सहजता से बिना किसी बाह्य सहायता के सीखी भाषा ही मातृभाषा है। उन्होंने बताया कि पशु-पक्षी की भी अपनी भाषा होती है जिसके माध्यम से वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सामूहिक सुरक्षा कर लेते हैं। कुलपति ने यह भी कहा कि अंग्रेजी समेत विश्व की सभी भाषाएं संकट से गुजर रही हैं। ऐसे में सभी भाषाओं के प्रति उदारता और सम्मान के भाव से उनकी रक्षा का दायित्व सामूहिक है। प्रतिकुलपति प्रो. सत्यनारायण मुंडा ने दुनिया के कई भाषा परिवारों की उत्पत्ति के बारे में बताया। कहा कि सभी समुदायों को अपने सर्वाइवल लिए भाषाओं की आवश्यकता पड़ती है। इन भाषाओं के लचीलेपन और टिकाऊपन पर उनके प्रयोक्ताओं का भविष्य निर्भर करता है।
इससे पूर्व संगोष्ठी का विषय प्रवेश कराते हुए डॉ. अजय सिन्हा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का उद्देश्य भाषाई विविधता को बढ़ावा देना एवं अपनी भाषा का संरक्षण एवं संवर्धन करना है। कहा कि विकास कि अवधारणा को इस तरह से बढ़ाने की आवश्यकता है कि अपनी संस्कृति व सभ्यता पीछे नहीं रह जाए।
कार्यक्रम में स्नातकोत्तर ¨हदी विभाग कि विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोदिनी हांसदा ने कहा कि संताली सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है। इसको लिपिबद्ध करके इसका विस्तार पूरी दुनिया में करने का प्रयास किया जा रहा है। इससे संस्कृति का संवर्धन होगा। बांग्ला विभाग के अध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार शील ने पूर्वी पाकिस्तान के भाषा आंदोलन की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा कि मातृभाषा दिवस पूर्व में उन आंदोलनकारी छात्रों की स्मृति में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता था जिन्होंने बांग्ला की पहचान के लिए जान दे दी थी। उन्होंने कहा कि भाषा का आंदोलन राष्ट्रीय स्वाधीनता का आंदोलन बन गया था।
डॉ. हशमत अली ने कहा कि उर्दू भाषा में यद्यपि फारसी और अरबी के शब्द हैं ¨कतु यह मूल रूप से एक भारतीय भाषा है। इसको निखारने में कई गैर मुसलमान लेखक और कवियों का योगदान है। साथ ही अमीर खुसरो, रहीम, गालिब ने सदियों से इस देश की संस्कृति को समृद्ध किया है। डॉ. हशमत अली ने उर्दू और ¨हदी की साझा समृद्धि के कई नमूने पेश किए। अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार झा ने स्वतंत्र भारत में ¨हदी की स्थिति पर चर्चा करते हुए ¨चता प्रकट की। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार करते हुए कहा कि ¨हदी के संगठन और शुद्धता की रक्षा करना बहुत बड़ी चुनौती है। प्रो. झा ने मातृभाषा के प्रति सजगता को एक अच्छे समाज का चिह्न बताया।
एसपी कॉलेज में संस्कृत विभाग के प्राध्यापक सह अभिषद् सदस्य डॉ. धनंजय कुमार मिश्र ने कहा कि संस्कृत विश्व की अधिकांश भाषाओं की जननी है। आज इस भाषा को भी भारतवासियों को सुरक्षित और संवर्धित करने की जरूरत है। विश्व बंधुत्व एवं राष्ट्र प्रेम का संदेश देने वाली इस भाषा का इतिहास 4500 वर्षो से भी अधिक पुराना है। डॉ. मिश्र ने संस्कृत भाषा में ही अपनी बात रख कर सभा में उपस्थित प्राध्यापकों को विस्मित कर दिया।
एसपी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के प्रो. अच्युत चेतन ने भाषाओं के बीच संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भाषाई समूहों के आधार पर बंटते मानव समाज को अनुवाद आदि जोड़ने वाली प्रक्रियाओं पर ध्यान देना चाहिए। इस दिशा में विश्वविद्यालय की अहम भूमिका हो सकती है।
कार्यक्रम में अथितियों का स्वागत डीएसडब्लू डॉ. गौरव गांगुली ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पीपी ¨सह ने मैथिली में किया। मंच संचालन डॉक्टर अजय सिन्हा ने किया।