मैया पार्वती के साथ कोहबर से निकले भोलेनाथ
बासुकीनाथ परंपराओं का निर्वहन प्राचीन काल से चला आ रहा है। महाशिवरात्रि को शिव विवाह के बाद एक पखवारे तक भोलेनाथ मैया पार्वती संग कोहबर में विश्राम करते हैं। फाल्गुन पूíणमा के दिन मंदिर कोहबर घर से अपने-अपने मंदिर के लिए प्रस्थान कर गए।
बासुकीनाथ : परंपराओं का निर्वहन प्राचीन काल से चला आ रहा है। महाशिवरात्रि को शिव विवाह के बाद एक पखवारे तक भोलेनाथ, मैया पार्वती संग कोहबर में विश्राम करते हैं। फाल्गुन पूíणमा के दिन मंदिर कोहबर घर से अपने-अपने मंदिर के लिए प्रस्थान कर गए। महाशिवरात्रि के दूसरे दिन मर्यादा के अनुसार भोलेनाथ के प्रतीकात्मक त्रिशूल, पीतांबर धोती व रुद्राक्ष माला व प्रतीकात्मक त्रिशूल एवं माता पार्वती के प्रतीकात्मक स्वरूप के साथ नगर भ्रमण के पश्चात भोलेनाथ व माता पार्वती को कोहबर गृह में प्रवेश कराया गया था। जहां 15 दिन तक रहने के बाद फाल्गुन पूíणमा के अवसर पर गुरुवार को मंदिर के पुजारी व विधिकर एसडीओ राकेश कुमार, धर्मपत्नी डॉ. लिली ठाकुर, जरमुंडी बीडीओ कुंदन कुमार भगत ने नियम के तहत विधिविधान किया। परंपरा के अनुसार प्रतीकात्मक त्रिशूल को पुन: गर्भगृह एवं माता पार्वती के प्रतीकात्मक स्वरूप को पार्वती मंदिर ले जाया गया। इसके साथ ही बाबा मंदिर के गर्भगृह में अधिवास पूजन से बिछाए गए पलंग को भी हटा दिया गया। इस मौके पर बाबा मंदिर एवं पार्वती मंदिर के गुंबद पर महाशिवरात्रि के अवसर पर भक्तों द्वारा कीए गए गठबंधन, ध्वजा को भी उतार कर नए ध्वजा एवं गठबंधन को चढ़ाया गया। उतारे गए ध्वजा एवं गठबंधन को प्रसाद प्राप्त करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रही।