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कोयलांचल के साहित्य व सियासत की दिशा तय करता था 'युगांतर'

कोयलांचल में एक समय साहित्य और सियासत के प्रशिक्षण का ऐतिहासिक केंद्र था 'युगान्तर' प्रेस। वह समय था आजादी के तुरंत बाद सन् 1948 ई. का।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Apr 2018 11:11 AM (IST)Updated: Sat, 28 Apr 2018 11:11 AM (IST)
कोयलांचल के साहित्य व सियासत की दिशा तय करता था 'युगांतर'
कोयलांचल के साहित्य व सियासत की दिशा तय करता था 'युगांतर'

(प्रस्तुति: बनखंडी मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार)

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धनबाद: कोयलांचल में एक समय साहित्य और सियासत के प्रशिक्षण का ऐतिहासिक केंद्र था 'युगान्तर' प्रेस। वह समय था आजादी के तुरंत बाद सन् 1948 ई. का। दो सौ साल की गुलामी से मुक्त अपना देश, खुद के पैरों पर खड़े होने की कोशिश में था। सदियों की दमनात्मक कार्रवाहियों से छटपटायी पत्रकारिता को तो मानों संजीवनी मिल गयी थी। बेबाक लेखन के पुजारियों को स्वतंत्र भारत में अखबार प्रकाशित करने और उनमें सरकार की आलोचना करने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। उस समय झरिया कोयलाचल में कोयला उत्पादन एवं विपणन काफी प्रगति कर चुका था।

ऐसे हुई शुरूआत: आजादी के तुरंत बाद एक समाजवादी विचारधारा वाले नेता मानभूम जिले में एक समाचार-पत्र निकालने की योजना को मूर्त रूप देने में जुटे हुए थे। उद्देश्य था, यहा के शिक्षित तबके के लिए पढ़ने की सामग्री उपलब्ध कराना, साहित्य व सियासत की नयी पौध के लिए खाद-पानी का इंतजाम करना एवं मजदूर वर्ग को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना। वे विभूति थे कोयलाचल की पत्रकारिता के अग्रगण्य व्यक्तित्व- मुकुटधारी सिंह और उनका अखबार था साप्ताहिक 'युगान्तर'। मुकुटधारी सिंह जंग-ए-आजादी एवं मजदूर-आदोलनों में काफी सक्रिय भूमिका निभा चुके थे। धनबाद में समाजवादी विचारधारा के पढ़े-लिखे नेताओं में मुकुटधारी सिंह का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था। देशरत्‍‌न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के निर्देश पर वे झरिया कोयला क्षेत्र में एक सुनियोजित कार्यक्रम लेकर सन् 1937 ई. में आये थे। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह थे। काग्रेस पार्टी ने श्रीबाबू से आग्रह किया था कि वे राज्य के श्रम और वेतन संबंधी एक सामाजिक सर्वेक्षण कराने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनावें। देशरत्‍‌न को उस संकाय का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था।

राजेन्द्र बाबू ने कोयलाक्षेत्र के सर्वेक्षण का भार मुकुटधारी सिंह को सौंप दिया। मुकुट बाबू ने आदेश का पालन किया, लेकिन अपने कार्यक्रम में एक अहम पहलू 'पत्रकारिता' को भी छाती से लगाये रखा था। इसे उन्होंने अपने छात्र-जीवन में पटना में रहकर अपनाया था। वे पटना से उन दिनों प्रकाशित होनेवाले साप्ताहिक और बाद में दैनिक 'नवशक्ति' में देवव्रत शास्त्री के साथ संयुक्त रूप से सम्पादक रह चुके थे। उसके बाद दैनिक 'नवराष्ट्र' के भी संपादक रहे।

मुकुट बाबू ने 'युगान्तर' नामक अखबार निकालने की योजना 1948 ई. में शुरू की थी। झरिया के प्रतिष्ठित नागरिक हरिनंदन शर्मा और डूंगरसी एस. ठक्कर ने साझीदारी स्वीकार की थी। झरिया के फतेहपुर लेन स्थित 'युगान्तर' प्रेस का साइनबोर्ड लग गया। मशीन, टाइप तथा संबंधित सामग्री की व्यवस्था कर ली गयी। कार्यालय का भार शर्माजी के हवाले था और आर्थिक मोर्चा डूंगरसी भाई ने संभाला था। इस टीम के उत्साह और कर्मठता का यह फल हुआ कि शुक्रवार के अपराह्न में पूरे क्षेत्र के पाठक उस पत्र की प्रतीक्षा बेसब्री से करते थे। प्रकाशन, प्रचार-प्रसार, विज्ञापन आदि की व्यवस्था में मुकुटबाबू स्वयं जब बहुत व्यस्त हो गये, तो पटना के युवा पत्रकार सतीशचंद्र को ले आए। ईमानदार पत्रकारिता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के रूप में 'युगान्तर' की लोकप्रियता अब पूरे जिले में काफी बढ़ गयी थी।

संकट का भी आया दौर: अखबार में जिन भ्रष्ट लोगों के काले कारनामों की खबरें छपती थी, वे उसे बंद कराने पर तुले हुए थे। किसी खलनायक ने संशय का बीज शर्माजी के मन में बो दिया। फलत: आपस में मनभेद इतना बढ़ गया कि 1953 के अगस्त महीने के एक शुक्रवार को अंक निकलने के बाद शनिवार को अचानक प्रेस की पार्टनरशिप खत्म हो गयी। ऐसा लगा कि जनोन्मुखी पत्रकारिता का संवाहक 'युगान्तर' का 'युग' अब खत्म हो गया, लेकिन उस संकट की घड़ी में मुकुटबाबू के दो मित्रों- करकेंद के श्रीलेखा सिनेमा के मालिक सी. के. ठक्कर उर्फ चंदू बाबू और माइनिंग इंजीनियर पटेलजी ने सहयोग का हाथ बढ़ाया। मुकुटबाबू ने भी कुछ पैसे जुटाये और झरिया के गाधी रोड स्थित अपने आवासीय किराए के मकान में 'नवयुग प्रेस' की स्थापना कर डाली। अगले शुक्रवार को पाठकों के हाथों में वही 'युगान्तर' था, जिसे वह पिछले तीन सालों से पढ़ते आ रहे थे।

1956 ई. में जब सतीशचंद्र को इंटक का मुखपत्र 'खान मजदूर' चलाने की जिम्मेवारी मिली तो उन्होंने युगातर का संपादन कार्य छोड़ दिया। उनके बाद इन पंक्तियों के लेखक ने कुछ वषरें तक पत्र के संचालन-संपादन में सहयोग किया। मेरे बाद शिवदर्शन सिंह उसके संपादक बने जो युगातर के अंतिम अंक-10 जुलाई 1975 तक मुकुट बाबू के साथ रहे।

कोयलांचल के साहित्यकारों व राजनेताओं का होता था जमावड़ा: 'युगान्तर' कोयला क्षेत्र से लेकर पूरे विश्व की राजनीतिक गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करने में पूर्णतया सक्षम था। अपनी जिज्ञासाओं को शात करने के लिए छात्रों, नेताओं, साहित्य-जगत के रचनाकारों से लेकर राज्य के सिद्धहस्त नेताओं एवं गुणीजनों का आवागमन 'युगान्तर प्रेस' के कार्यालय में होता रहता था। 'युगान्तर' के दीपावली अंक में अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने की लालसा- क्षेत्र, जिला और राज्य स्तर के साहित्यकारों में रहा करती थी। कोयलाचल की राजनीति के रंग और दिशा के निर्धारण में भी 'युगान्तर' कार्यालय का बहुत बड़ा हाथ था। लगभग हर राजनीतिक पार्टी के नेता वहा पहुंचा करते थे और मुकुटबाबू से गंभीर मंत्रणा किया करते थे। काग्रेस के आबिद अली, किशोरी लाल लोरैया, कन्हैयालाल मोदी, डॉ. सुधाशु सरकार, गोपाल मुंशी, ईमामुल हई खान, रामानन्द खेतान, रामखेलावन सिंह, रामधनी सिंह, भ्राताद्वय शकरदयाल सिंह-सत्यदेव सिंह, वामपंथियों में कॉमरेड सत्यनारायण सिंह, नागाबाबा, क्षेत्र के समाजसेवियों में हितनारायण सिंह एवं गौरीशकर भुवानिया आदि का आवागमन नियमित रूप से होता था। धनबाद की राजनीति के विराट व्यक्तित्व, जो उन दिनों सिन्दरी में इंजीनियर थे एके राय, शिबू सोरेन एवं विनोद बिहारी महतो भी 'युगान्तर' कार्यालय में आने वाले नियमित सदस्य थे। साहित्यकारों में गयास अहमद गद्दी, इलियास अहमद गद्दी, शमीम चैरारबी, रवीन्द्र करूण, रमेशचन्द्र झा, कालीशकर वर्मा, लम्बोदर आर्य, प्रो. राजेश्वर वर्मा 'ललित' के अलावा पटने से डॉ. लक्ष्मीनारायण सुधाशु, हंस कुमार तिवारी, रामदयाल पाडेय, छविनाथ पाडेय आदि भी अक्सर वहा पधारते थे।

सन् 1975 ई. में देश में आपातकाल घोषित होने के विरोध में मुकुटबाबू का लिखा सम्पादकीय-लोकतात्रिक चिन्तन का मेनिफेस्टो के रूप में आज का प्रबुद्ध-वर्ग न केवल स्वीकार करेगा बल्कि ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह सदा याद रखेगा।


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