Weekly News Roundup Dhanbad : जेब खाली तो सूचना भी बंद, पढ़ें नक्सल क्षेत्र में मुखविरी की कहानी
एक-आध महीने की ही बात है। पंचायती राज का समय समाप्त होने वाला है। इसके बाद चुनाव होंगे। तभी फिर से नई सरकार गांव-पंचायत में अपना काम दोबारा शुरू करेगी। प्रशासनिक अधिकारी अभी से ही इन लोगों के वित्तीय अधिकार खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।
धनबाद [ आशीष झा ]। प्रशासन की भी लीला गजब है। बड़े-बड़े पहाड़ों की श्रृंखला के पीछे छिपे नक्सलियों की धरपकड़ में जवान जी-जान से लगे रहते हैं। सीआरपीएफ के जवान लगातार सूचना इकट्ठा कर नक्सलियों की टोह में लगे रहते हैं। जैसे ही सूचना मिली, दबिश दे दी जाती है, लेकिन इधर कुछ महीने से माजरा ही बदल गया है। सीआरपीएफ जवानों की आंख-कान और नाक इन क्षेत्रों में एसपीओ होते हैं। इन्हीं की सूचना पर नक्सलियों को पकडऩे में सफलता मिलती है। टुंडी क्षेत्र में कई नक्सली हैं जिन पर करोड़ों का ईनाम है। जांताखूंटी के दलुगोड़ा के एक नक्सली प्रशांत मांझी पर पांच करोड़ की राशि रखी गई है। दूसरी तरफ जब से कोविड का प्रकोप हुआ है, एसपीओ को मानदेय नहीं मिल रहा है। जब पैसे ही नहीं मिल रहे तो सूचना निकले कैसे? आखिर कोई मुफ्त में अपनी जान जोखिम में क्यों डालेगा भला।
शह-मात का खेल
एक-आध महीने की ही बात है। पंचायती राज का समय समाप्त होने वाला है। इसके बाद चुनाव होंगे। तभी फिर से नई सरकार गांव-पंचायत में अपना काम दोबारा शुरू करेगी। प्रशासनिक अधिकारी अभी से ही इन लोगों के वित्तीय अधिकार खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि पंद्रहवें वित्त की भारी-भरकम राशि खर्च करनी है। अभी इन खर्चों का जिम्मा गांव की सरकार पर है, मगर समय खत्म होने पर अधिकारी खर्च कर सकेंगे। ये तो सबको पता है कि जिनके जिम्मे राशि खर्च करने का अधिकार होगा, वो ही सबसे ज्यादा मालामाल होगा। मुखिया पंचायतों में विकास कार्य में तेजी लाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं तो अधिकारी काम को लंबा खींचने में लगे हैं। सबको अपनी चिंता है। आम जनता भी अलग नहीं है। वो अब विकास कार्यों से ज्यादा जनप्रतिनिधियों को जिताने-हराने के गणित में ही उलझी हुई है।
वेतन दे दें, शादी नहीं हो रही
बात एग्यारकुंड प्रखंड की है। एक रोजगार सेवक हैं। इन्हेंं वर्षों से वेतन नहीं मिला है। आरोप है कि वो काम नहीं करते। ड्यूटी पर भी नहीं आते। पहले के बीडीओ साहब ने इनके खिलाफ भारी-भरकर रिपोर्ट ऊपर के अधिकारियों को भेज दी है। काफी भागदौड़ की तो दोबारा भी मौका दिया गया, लेकिन घर की मजबूरी ऐसी कि बाइक नहीं खरीद पा रहे। अब गाड़ी के बिना क्षेत्र भ्रमण नहीं हो पा रहा। सबकी अपनी-अपनी परेशानी है। रोजगार सेवक नए बीडीओ के पास अपना दुखड़ा लेकर पहुंचे। कहा- सर आप ही कुछ मदद कीजिए। कम से कम लंबित वेतन दिलवा दीजिए। पैसे के अभाव में मेरी शादी रुकी हुई है। बीडीओ साहब ने भी ऊपर के अधिकारियों से मार्गदर्शन लेने की बात कहकर मामला आगे बढ़ा दिया। अब उनको दोबारा काम करने का मौका मिलेगा या नहीं, ये तो समय ही बताएगा।
मुसीबत तो दोनों तरफ है
घनन-घनन घन गरजो रे, छनन-छनन छन बरसो रे...। बैजू बावरा का यह गीत किसान आज भी सुनते हैं तो मन मयूर सा नाचने लगता है, लेकिन अभी की बात दूसरी है। बारिश का महत्व उनसे ज्यादा भला और कौन महसूस कर सकता है। जब बारिश नहीं हुई तो धान की खेती के लिए अन्नदाता तरस गए थे। इस बार पानी खूब बरसा तो किसानों के चेहरे पर भी लाली नजर आने लगी, मगर इंद्र भगवान की कुछ ज्यादा ही कृपा हो गई। सो किसान हंसे या रोएं, ये समझ में नहीं आ रहा। धनबाद जिले की बात करें तो बलियापुर, टुंडी, राजगंज व बाघमारा प्रखंडों में धान की अच्छी फसल होती है। बाली भी आ गई है, लेकिन तेज बारिश व हवा के झोंके से फसल औंधे मुंह गिर जा रही है। जाहिर है कि नुकसान भी काफी हो रहा है, मगर अब क्या हो?