Weekly News Roundup Dhanbad: साहब, काहे ना लग्घी बना लें, चोर-उचक्का पकड़ेंगे तो नहीं पकड़ेगा कोरोना
Weekly News Roundup Dhanbad पुलिस काम बढ़ गया है। इस काम में कुछ मिलना-जुलना भी नहीं है। चोर-उचक्का पकड़ने के बाद जेल भेजने से पहले उनका कोरोना टेस्ट करवाना पड़ रहा है।
धनबाद [ नीरज दुबे ]।कोरोना काल में पुलिस काफी संभल कर चल रही है। पुलिस कप्तान ने भी अपने मातहतों को संक्रमितों से सतर्क रहने की सलाह दी है। खासकर संदिग्ध चोर-उचक्कों को पकडऩे से पहले पूरी सावधानी बरतने के लिए कहा है। कप्तान के इस आदेश के बाद थानेदारों को थोड़ी राहत मिली है। हालांकि काम का बोझ खत्म नहीं हुआ है। कांड निष्पादन की जिम्मेवारी तो पूरी करनी ही है। ऐसे में संक्रमण से बचते हुए चोर-उचक्कों को पकडऩा कैसे संभव है। इस पर शहर के एक थाना में कुछ पुलिस अधिकारी चर्चा कर रहे थे। तभी एक हवलदार ने हंसते हुए कहा- सर, काहे ना एक लग्घी बना लिया जाए और उसी से चोर-उचक्का को बगैर छुए पकड़ा जाए। इस पर हंसी के गुब्बारे फूट गए। बात तो सौ टके की थी। आखिर पुलिस कैसे किसी आरोपित को पकड़े। संक्रमण का खतरा सौ फीसद है।
अब जंगल में नहीं गुजरती रात
लग रहा है धनबाद नक्सल मुक्त हो गया है। वर्षों से नक्सल प्रभावित टुंडी व तोपचांची के जंगलों में बड़े साहब की रात नहीं गुजर रही, कागजी खानापूर्ति जरूर होती है। पुलिस मुख्यालय का फरमान है कि नक्सल इलाके में सीनियर अफसर महीने में एक बार रात जरूर गुजारें, ताकि नजर बनी रहे। अभी तो कोरोना काल है, इसमें व्यस्तता अधिक है, लिहाजा संभव ना हो, मगर तीन साल पहले की बात करें तो वरीय अधिकारियों ने जंगल में रात नहीं गुजारी। इसलिए सिपाही भी बोलने से परहेज नहीं करते कि जंगल की ड्यूटी तो छोटे व सजा काटनेवाले पुलिसकर्मियों के लिए है। माना कि धनबाद में नक्सल गतिविधियां कम जरूर हैं, मगर इस पर अंकुश लगाने के लिए सुविधाएं तो पहले जैसी ही हैं। हर साल लाखों खर्च होते हैं। फिर जंगल का तापमान बड़े साहब के लिए ठंडा क्यों पड़ गया, सोचिए...।
पैरवी पर सिमटा नियम
पुलिस लाइन में एक हवलदार और एक एएसआइ की पौ बारह है। सरकारी आवास में रहते हुए सेङ्क्षटग-गेङ्क्षटग के बल पर आवास भत्ता भी उठा रहे हैं। हवलदार की तो चांदी है। उसके नाम आवास आवंटन नहीं है, मगर मुंशी से सेङ्क्षटग कर आवास पर अधिकार जमा रखा है। वहीं एएसआइ पत्नी के नाम से आवंटित आवास में रहते हैं और हर माह अपना आवास भत्ता उठा रहे हैं। देखा जाए तो आवासीय भत्ता नियमावली इसकी इजाजत नहीं देती, सरकारी कायदा-कानून भी कोई चीज है, मगर यहां तो पैरवी के आगे सब बेकार। धनबाद के कुछ पुलिसकर्मी शायद भूलने लगे हैं कि एसपी सुमन गुप्ता के कार्यकाल में एक सिपाही ने ऐसी ही हरकत की थी और उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ गया था। उसने सरकारी आवास में रहते हुए महज एक माह का वेतन उठाया था, तो फिर पुलिसकर्मी इतिहास से क्यों नहीं डरते?
खल्ली से नहीं निकलता तेल
जब से बड़े साहब धनबाद आए हैं, थानेदारों पर बोझ बढ़ गया है। सुबह आठ बजे से काम पर लगना होता है। नींद पूरी नहीं होती, मगर कुछ को फर्क नहीं पड़ता। पहली बार ऐसा मौका मिला है जब खल्ली से तेल निकालने की जरूरत नहीं, जो भी आया शुद्ध। न किसी को बांटने की झंझट, न ही निचोडऩे की। बात ये है कि बड़े साहब के आने का ही असर है। काफी हद तक वसूली का खेल बंद है। साहब समझ गए तो मामला आसानी से सलट गया। पहले तो दानी सभी के लिए पुडिय़ा तैयार कर लाते थे, सबका खयाल रखना पड़ता था, मगर अब एक खुराक से ही काम निकल जाता है। जिले में तकरीबन 54 थाना ओपी हैं, जिनमें बड़े साहब के आने पर कुछ थानेदारों की लॉटरी निकल गई है, वहीं कुछ काम के बोझ से दबा महसूस करते हैं।