Weekly News Roundup Dhanbad: मनुज बली नहीं होत है, समय होत बलवान; विश्वास नहीं तो देख लीजिए टाइगर का हाल
वाणिज्य कर विभाग में ऐसे अफसर हैं जिन्हें हिलाना कोई खेल नहीं। धनबाद नागरीय अंचल की सुषमा सिन्हा का तबादला भी हुआ तो धनबाद में ही। उन्हें धनबाद अंचल का उपायुक्त बना दिया गया।
धनबाद [ अश्विनी रघुवंशी ]। Weekly News Roundup Dhanbad वक्त को कुछ वक्त दीजिए, वह वक्त को बदल देता है। इसे शिद्दत से महसूस करना है तो बाघमारा के भाजपा विधायक ढुलू महतो के एक साल के जीवन को देख लीजिए। एक साल पहले तक ढुलू को यहां के भाजपा नेताओं से बहुत मतलब नहीं था। उनके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के दरवाजे खुले रहते थे। हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके अच्छे दिन खत्म हो गए। घर पर आधी रात में छापे पडऩे लगे। तीन बजे तड़के उनका झंडा ढोने वाले या तो जेल गए या मुकदमों में घिर गए। ढुलू महतो को भी जेल जाना पड़ा। तीन महीने के करीब जेल में गुजारना भी पड़ा। समय की नजाकत देखिए, जिस बाबूलाल मरांडी को ढुलू महतो ने छोड़ दिया था, उसी ढुलू के पक्ष में आवाज उठाने के लिए वे उनके घर तक आ गए। सियासत होती ही ऐसी है।
इन्हें हिलाना कोई खेल नहीं
वाणिज्य कर विभाग में ऐसे अफसर हैं जिन्हें हिलाना कोई खेल नहीं। धनबाद नागरीय अंचल की सुषमा सिन्हा का तबादला भी हुआ तो धनबाद में ही। उन्हें धनबाद अंचल का उपायुक्त बना दिया गया। नागरीय अंचल के सहायक आयुक्त जीव नारायण मंडल की तो पूछिए ही नहीं। उनका तबादला हुआ तो नागरीय अंचल का उपायुक्त ही बना दिया गया। वाणिज्य कर विभाग में हुए लंबे चौड़े तबादले पर गौर कीजिए तो धनबाद के अधिकारी रांची या जमशेदपुर में जगह पाने में कामयाब रहे। जो लोग यहां आए हैं, उनमें भी अधिकतर रांची, जमशेदपुर या बोकारो से हैं। गिनती के कुछ चेहरे छोटे जिलों से आए हैं अथवा गए हैं। दरअसल, वाणिज्य कर विभाग का मतलब ही है पैसा वसूली विभाग। सरकार के लिए पैसा वसूलना अधिकारियों का काम है। अरबों रुपये सरकार के खजाने में जाएंगे तो उनमें से कुछ इधर-उधर जरूर छिटक जाएंगे।
थानेदार की कुर्सी से हटवा दीजिए
आमतौर पर थानेदार की कुर्सी पाने के लिए लोग पैरवी करते हैं। धनबाद में थानेदार की कुर्सी के लिए तो पूछिए ही मत। साम, दाम, दंड, भेद में कोई कमी नहीं रहती। पर, अभी कुछ ऐसे थाना प्रभारी हैं जो उस कुर्सी पर रहना नहीं चाहते। थानेदारी से हटने के लिए जुगाड़ जंतर खोज रहे हैं। ये ऐसे थानेदार हैं जो कुछ दिनों में डीएसपी बनने की ओर हैं। भयभीत है कि किसी चक्कर में ना फं स जाएं। नए एसएसपी अखिलेश बी वारियर ने कागज पत्तर को इतनी ज्यादा महत्ता दे दी है कि निचले स्तर के अधिकारी तनाव में दिन गुजार रहे हैं। दिक्कत यह भी है कि किसी तरह की दिक्कत साहब सीधे सुनते भी नहीं। डीएसपी के मार्फ त जाइए। डीएसपी अपनी गर्दन बचाने को थानेदार के गले की नाप लेने में लगे रहते हैं। वाकई, माहौल सचमुच कठिन है।
हे इंसान, ऑक्सीजन से सावधान
आज तक तो यही पढ़ते, सुनते और समझते आए हैं कि ऑक्सीजन इंसान को जीवन देता है। कोविड अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए भर्ती मरीज भी ऑक्सीजन सिलेंडर देखते थे तो उन्हें उम्मीद बनती थी कि अगर हालत बिगड़ेगा तो भी वो बच जाएंगे। मगर यह क्या? यहां तो ऑक्सीजन लेने में ही एक मरीज की जान चली गई। बात बाहर भी निकली पर इसे अफ वाह बताया गया। अस्पताल के अधिकारियों ने कमियां छिपाने में पूरा जोर लगा दिया मगर, तस्वीरें भी सामने आ गई। कोविड अस्पताल में भर्ती मरीजों ने जो तस्वीरें सार्वजनिक की उसने काफी कुछ कह दिया। सोचिए कि एक मरीज ऑक्सीजन के लिए तड़पता रह गया और उसे कोई ऑक्सीजन लगाने वाला ना था। उस मरीज ने खुद बेड पर बैठकर ऑक्सीजन लगाने का प्रयास किया और इसमें उसकी जान ही चली गई। वाकई, यह तकलीफ देह है।