यह तो यूपी के नेता वाजपेयी को भी मालूम है कि झारखंड के आदिवासियों को साधना उनके लिए आसान नहीं!
लक्ष्मीकांत वाजपेयी उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़े सवर्ण नेता। पार्टी ने इन्हें आदिवासी बहुल झारखंड का प्रभारी बनाकर भेजा। वाजपेयी को मालूम है कि आदिवासियों को साधना उनके लिए आसान नहीं है। वह भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के 1932 खतियान और 27 प्रतिशत आरक्षण के मास्टर स्ट्रोक्स के बीच।
धनबाद [दिलीप सिन्हा]: लक्ष्मीकांत वाजपेयी, उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़े सवर्ण नेता। पार्टी ने इन्हें आदिवासी बहुल झारखंड का प्रभारी बनाकर भेजा। वाजपेयी को मालूम है कि आदिवासियों को साधना उनके लिए आसान नहीं है। वह भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के 1932 खतियान और 27 प्रतिशत आरक्षण के मास्टर स्ट्रोक्स के बीच। बावजूद अंदर की बात जान लें, वाजपेयी कर्रे नेता हैं। चुनौतियों से लड़ने में उनको मजा आता है। इसका संकेत पहले दौरे में ही दे दिया है। नेताओं व कार्यकर्ताओं से कहा कि 2024 में झारखंड फतह करना है। जरूरी हुआ तो घर बनाकर झारखंड में ही बस जाएंगे। 1932 के खतियान से भाजपा का विजय रथ रुकने नहीं देंगे। वाजपेयी की इस बात से झामुमो में खलबली हो या न हो, भाजपा के हवाबाज नेताओं में खलबली जरूर मच गई है। आखिर वाजपेयी का समीकरण भांपने का गुर वे भी जानते जो हैं।
इसलिए मैडम गुस्सा हैं
पूर्णिमा नीरज सिंह, कोयलांचल से कांग्रेस की एकमात्र विधायक। 1932 खतियान को लेकर अपनी ही सरकार पर भड़की हुई थीं। अब अपने संगठन से नाराज हैं। प्रदेश कांग्रेस का डेलीगेट बनने पर शपथ लेने भी नहीं गईं। मैडम की नाराजगी यूं ही नहीं है। झरिया से चुनाव जीतना है तो 1932 खतियान का विरोध करना ही होगा। सो, मैडम ने अपनी ही सरकार के फैसले का खुलकर विरोध किया। अब पार्टी के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने स्थिति साफ कर दी। दो टूक कह दिया कि कांग्रेस सरकार के फैसले के साथ है। पार्टी का कोई भी नेता इस मुद्दे पर बयानबाजी न करे। मैडम, अभी इससे उबरी भी नहीं थीं कि पार्टी ने एक और झटका दिया। उनके विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश डेलिगेट तो छोड़िए, प्रखंड व नगर कांग्रेस गठन में भी उनकी नहीं चली। अब, आप बताएं मैडम नाराज नहीं होंगी तो क्या करेंगी।
होश में आ गए काॅमरेड
बिहार कोलियरी कामगार यूनियन। वामपंथी मजदूर संगठन। मासस एवं माकपा इस यूनियन को चलाती है। मासस के साथ मजदूर हैं, माकपा के पास सिर्फ गिने-चुने नेता ही। ऐसे में माकपा नेताओं को गलतफहमी हो गई कि उनके बल पर ही यह यूनियन चल रही है। सो, दिग्गज मासस नेता मिथिलेश सिंह को अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक अरूप चटर्जी को महासचिव चुने जाने से मानस चटर्जी समेत तीनों माकपा नेताओं ने महाधिवेशन का बहिष्कार कर दिया। मानस को महामंत्री बनाने की मांग कर दी। समानांतर कमेटी बनाने का ऐलान कर दिया। दिक्कत यह थी कि इनके पास कमेटी बनाने लायक भी नेता नहीं थे। माकपा के केंद्रीय नेताओं पर दबाव बनाया, लेकिन मासस टस से मस नहीं। वरिष्ठ नेता डीडी रामानंदन ने प्रस्ताव दिया, अध्यक्ष या महासचिव ना सही, कोई भी पद दे दीजिए ना। मासस वाले तुरंत तैयार हो गए। यही तो वह चाह रहे थे।
कोयला तस्करी और छापेमारी का सच
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी एवं विधायक सीता सोरेन के एक ट्वीट ने धनबाद पुलिस की नींद उड़ा दी। मैडम ने सीधे पुलिस कप्तान पर कोयला तस्करी का ठीकरा फोड़ा। फिर क्या था, धनबाद पुलिस ने कोयला तस्करी के खिलाफ विशेष अभियान शुरू किया। जगह-जगह छापेमारी शुरू हुई। अंदर की बात भी जान लें, छापेमारी के नाम पर सिर्फ छलावा चल रहा है। बड़े तस्कर रात में खुलकर कोयला तस्करी कर रहे, दिन में नेतागीरी। ऐसे तस्करों का कुछ भी बंद नहीं हुआ है। खुलेआम धंधा चल रहा है। पुलिस और प्रशासन इन पर हाथ डालने का साहस नहीं कर सका है। दरअसल पुलिस-प्रशासन के सहयोग से ही उनका धंधा चल रहा है। छापेमारी के नाम पर कुछ कोयला बरामदगी जरूर दिखा दी जाती है। एक भी तस्कर प्रशासन का शिकार नहीं हुआ है। जबकि भली भांति जानता है, कौन सज्जन और कौन दुर्जन।