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Locust Attack: झारखंड के खेतों पर भी टिड्डियों के हमले का खतरा, LWO ने किसानों को किया सचेत

Warning of locust attack टिड्डियां स्वभाव से डरपोक होती हैं इसलिए ये 100 से 150 की झुंड में चलते हैं। यह किसानों के लिए सबसे बड़े दुश्मन हैैं।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 07:41 PM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 07:46 PM (IST)
Locust Attack: झारखंड के खेतों पर भी टिड्डियों के हमले का खतरा, LWO ने किसानों को किया सचेत
Locust Attack: झारखंड के खेतों पर भी टिड्डियों के हमले का खतरा, LWO ने किसानों को किया सचेत

देवघर [ राजीव ]।खासतौर पर टिड्डियों से लडने व इसके प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार की ओर से गठित संस्था लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन ( Locust Warning Organization) ने टिड्डियों के बढ़ते प्रकोप व इसके तेज माइग्रेशन पर अलर्ट जारी कर दिया है। एलडब्ल्यूओ के मुताबिक टिड्डियां राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर समेत कई क्षेत्रों में फसलों को तबाह करते हुए ये झांसी तक पहुंच चुका है। मध्य प्रदेश और यूपी के दायरे में इसका प्रवेश किसान व फसलों के लिए खतरे का संकेत है। इधर इस अलर्ट को देखते हुए पड़ोसी राज्य झारखंड और बिहार में भी टिड्डियों के प्रवेश को लेकर कृषि वैज्ञानिक सशंकित हैं। हालांकि देवघर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि राजस्थान में प्रवेश करने वाली टिड्डियों की प्रजाति तकरीबन 100 से 150 किलोमीटर दूरी तय कर सकते हैं। बावजूद इसके किसानों को सावधान व तैयार रहने की आवश्यकता है।

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ये है टिड्डियों का प्रभाव

टिड्डियां सर्वभक्षी कीटों की श्रेणी में आता हैं जो किसी भी पौधे को नुकसान पहुंचा सकती हैं। लगभग दो-ढाई इंच लंबा यह कीट कुछ ही घंटों में फसलों को चट कर जाते हैं। टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम छह से आठ बजे के आसपास पहुंच कर जमीन पर बैठ जाते हैं और रात में फसलों फसलों को तहस-नहस कर देते हैं।

स्वाभाव से डरपोक होती हैं टिड्डियां

टिड्डियां स्वभाव से डरपोक होती हैं इसलिए ये 100 से 150 की झुंड में चलते हैं। यह किसानों के लिए सबसे बड़े दुश्मन हैैं। डरपोक होने की वजह से किसान इन्हें सामूहिक रूप से गांव या प्रभावित क्षेत्रों में ध्वनि विस्तारक यंत्र का प्रयोग कर भगा सकते हैं। इसके अलावा आग जलाने, पटाखा फोडऩे, थाली बजाने, ढोल व नगाड़ा पीटने से भी ये भाग जाते हैं।  किसान कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर टिड्डी व इसके अंडों को नष्ट कर सकते हैं। वर्तमान में टिड्डे गन्ना, मक्का,  उड़द, मूंग, सूरजमुखी समेत कद्दू, ङ्क्षभडी, लोबिया, बोदी, बोड़ा, बरबट्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

प्रकोप होने पर इन रसायनों का छिड़काव करें किसान

फसलों पर अगर टिड्डियों को प्रकोप बढ़ जाए तो कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके इन्हें मारा जा सकता है।  टिड्डी प्रबंधन के लिए फसलों पर नीम के बीजों का पाउडर बनाकर 40 ग्राम पाउडर प्रति लीटर पानी में घोल कर उसका छिड़काव किया जाए तो दो-तीन सप्ताह तक फसल सुरक्षित रहती है। इसके लिए किसान बैन्डियोकार्ब 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत इसी की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपायरीफॉस 50 प्रतिशत इसी की 480 एमएल मात्रा प्रति हेक्टेयर या डेल्टामेंथ्रीन 2.8 फीसद की 625 एमएल मात्रा प्रति हेक्टेयर या डेल्टामेथ्रिन 1.25 फीसद यूएलवी की 1.4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर या यूएलवीडाईफ्ल्यूबेन्ज्युरों 25 फीसद डब्ल्यूपी की 120 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर या लम्बडासायलोथ्रीन 10 फीसद डब्ल्यूपी की 200 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर या मेलाथियान 50 प्रतिशत इसी 1.85 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं।

टिड्डियां झुंड में रहने पर बहुत खतरनाक व आक्रामक होते हैं। हजारों मील उड़ान की क्षमता वाले टिड्डियों के दल एक दिन में लगभग 100 से 150 किमी तक उड़ सकते हैं। टिड्डी दल हरी फसल, सब्जी, बाग-बगीचा में एक साथ प्रहार कर इसकी पत्तियों को कुछ ही घंटों में चट कर जाते हैं। अपने वजन के बराबर खाना खाने वाली टिड्डी फसलों का एक बार में सफाया कर देती है।
-पीके शनिग्रही, प्रधान, केवीके देवघर

किसानों को सावधान और तैयार रहने की आवश्यकता है। लगातार बारिश होने की वजह से खेतों में कीटों का प्रकोप बढ़ाना तय है। टिड्डियों के बढ़ते दायरे को ध्यान में रखकर किसानों को इसके लिए भी सजग रहने की आवश्यकता है। समय रहते अगर तैयार कर लेंगे तो फसलों की क्षति को रोकना संभव हो सकता है।
-डॉ. विवेक कश्यप, कृषि वैज्ञानिक, केवीके देवघर


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