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हार से हतोत्साहित वाजपेयी को कोल कैपिटल से मिली थी अटल उर्जा

भाजपा के सांसद और विधायकों का 19

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 08:57 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 10:37 PM (IST)
हार से हतोत्साहित वाजपेयी को कोल कैपिटल से मिली थी अटल उर्जा
हार से हतोत्साहित वाजपेयी को कोल कैपिटल से मिली थी अटल उर्जा

मृत्युंजय पाठक, धनबाद : पूर्व प्रधानमंत्री और महान राजनेता व कवि अटल बिहारी वाजपेयी अपने राजनीतिक सफर के दौरान कई बार धनबाद आए। पहली बार 1962 और अंतिम बार 2004 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वे देश की कोल कैपिटल आए थे। धनबाद से जुड़े उनके अनके संस्मरण रहे। पर, एक संस्मरण को उन्होंने भी हमेशा याद रखा। जब भी उनसे धनबाद से जुड़ा पार्टी का कोई परिचित मिला तो वे संकट की घड़ी में यहां से मिली मदद का अहसास कराना नहीं भूले। वर्ष 1987 में धनबाद जिला भाजपा ने 10 लाख रुपये अटल बिहारी वाजपेयी को देकर पार्टी की मदद की थी।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर बही जिसने भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीटों पर समेट दिया। पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में कांग्रेस प्रत्याशी माधव राव सिंधिया के हाथों चुनाव में अपनी जमानत तक गवां बैठे थे। इस करारी हार के बाद भाजपा के समक्ष कठिन राजनीतिक चुनौती आ गई थी। पार्टी संचालन के लिए कोष की बेहद जरूरत थी। इस विकट घड़ी में भाजपा और वाजपेयी को धनबाद का साथ मिला था। 1987 में वाजपेयी धनबाद के राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर धनबाद में तीन दिन तक ठहरे थे। मौका था भारतीय जनता पार्टी के देश भर के सांसद और विधायकों के प्रशिक्षण वर्ग का। तब समरेश सिंह धनबाद जिला भाजपा के अध्यक्ष, प्रो. निर्मल चटर्जी महामंत्री और सत्येंद्र कुमार भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष थे। जिलाध्यक्ष समरेश सिंह ने अपनी टीम के साथ भाजपा और वापजेयी का हाथ मजबूत करने के लिए 10 लाख रुपये का कोष संग्रह किया। प्रशिक्षण वर्ग के तीसरे दिन गोल्फ ग्राउंड में वाजपेयी की विशाल सभा हुई। उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग जुटे। इस दौरान समरेश सिंह ने धनबाद जिला भाजपा की तरफ से पार्टी कोष के लिए 10 लाख रुपये वाजपेयी को भेंट किए। तब जियाडा के स्वतंत्र निदेशक सत्येंद्र कुमार धनबाद जिला भाजयुमो के जिलाध्यक्ष थे। वह बताते हैं कि संकट की घड़ी में पार्टी संचालन के लिए धनबाद से मिली मदद पर वाजपेयी काफी प्रसन्न हुए थे। उन्होंने समरेश सिंह समेत धनबाद भाजपा के सभी नेताओं और पदाधिकारियों की पीठ थपथपाई थी। कुमार कहते हैं, वाजपेयी इतना प्रसन्न हुए कि संबोधन के दौरान जनसमूह को अपनी कविता-काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं.., सुनाई तो गोल्फ ग्राउंड तालियों की गड़गड़ाहट से काफी देर तक गूंजता रहा था।

जब धनबाद के सवाल पर मजबूर हुए मजबूर : हर मुश्किलों में, गीत नया गाता हूं.. गुनगुनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भी धनबाद के सवाल पर मजबूर हुए थे। वह भी प्रधानमंत्री रहते हुए। सवाल था-सिंदरी खाद कारखाना और धनबाद-झरिया-पाथरडीह रेल लाइन की बंदी।

साल 2002 में सिंदरी खाद कारखाना में ताला लगा और धनबाद-झरिया-पाथरडीह रेल लाइन बंद हुई। तब केंद्र में एनडीए की सरकार थी और वाजपेयी प्रधानमंत्री। रेल लाइन और कारखाना की बंदी से धनबाद में राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व ने भाजपा का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली पहुंचा। वाजपेयी इतने मजबूर थे कि प्रतिनिधिमंडल को मिलने का समय नहीं दिया। यह मामला तत्कालीन पार्टी महासचिव कैलाशपति मिश्र के पास पहुंचा। उन्होंने वाजपेयी से बात की। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल को 5 सिंतबर 2002 को मिलने का समय मिला। बाबूलाल के नेतृत्व में राज्य के तत्कालीन उद्योग मंत्री पीएन सिंह, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विजय कुमार झा, धनबाद जिला भाजपा अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार प्रधानमंत्री निवास पर अटल बिहारी वाजपेयी से मिले। सत्येंद्र कुमार याद करते हुए कहते हैं, केंद्र सरकार के निर्णय से वाजपेयी काफी दुखी और मर्माहत थे। लेकिन, वह मजबूर थे। लगातार घाटा के कारण खाद कारखाना चलाना संभव नहीं था। रेल यात्रियों की जान-मान की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए धनबाद-झरिया-पाथरडीह रेल लाइन बंद करनी पड़ी थी।

भीड़ नियंत्रण को बुलानी पड़ी पुलिस: बात 1971 की है। वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष थे। वह धनबाद लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ प्रत्याशी डॉ. गौतम कुमार का प्रचार करने आए थे। झरिया में जनसभा की। इसके बाद चार नंबर टैक्सी स्टैंड स्थित रतन लाल अग्रवाल के घर पहुंचे। अग्रवाल के घर में ही डॉ. गौतम का चुनाव कार्यालय था। वाजपेयी को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। आस-पास के घरों के छतों पर भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस बुलानी पड़ी। अग्रवाल के पुत्र भाजपा नेता राजकुमार अग्रवाल बताते हैं कि तब वह करीब 10 वर्ष के होंगे। इतना याद है कि वाजपेयी घर आए थे। घर में जमीन पर बैठकर भोजन की थी।

ट्रेन के दरवाजे पर खड़े होकर लिया केएफएस का जायजा: अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस के एसी चेयरकार में सवार होकर 3 जनवरी 1994 को हावड़ा से धनबाद आ रहे थे। उन्हें कोर्ट मोड़ में शहीद रणधीर वर्मा की प्रतिमा का अनावरण करना था। समय 11 बजे निर्धारित था। कुमारधुबी क्षेत्र के लोगों को पता चल गया था कि वाजपेयी ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस से धनबाद जाएंगे। स्थानीय लोग चाहते थे कि वाजपेयी बंद केएफएस कारखाना का मुद्दा लोकसभा में उठाएं। इसके लिए वह कुमारधुबी स्टेशन पर ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस में सवार हो गए। केएफएस कारखाना के पास जैसे ही ट्रेन पहुंची लोगों ने जंजीर खींच खड़ी कर दी। ट्रेन आगे बढ़ती नहीं की लोग जंजीर खींच देते। एक घंटे से ज्यादा समय तक ट्रेन केएफएस कारखाने के पास खड़ी रही। सुरक्षाकर्मियों के माध्यम से जब मामले की जानकारी वाजपेयी को मिली तो वह कुर्सी से उठकर बोगी के दरवाजे पर आए। केएफएस कारखाना का जायजा लिया। इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया भी। भाजपा नेता अजय त्रिवेदी बताते हैं कि हमलोग वाजपेयी के इंतजार में फूल-माला लेकर धनबाद स्टेशन पर खड़े थे। केएफएस मामले को लेकर ट्रेन डेढ़ घंटे विलंब से वाजपेयी को लेकर धनबाद पहुंची थी।

चारा घोटाले पर भी आऊंगा : 3 जनवरी 1994 को कोर्ट में शहीद रणधीर वर्मा की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद वाजपेयी समारोह को संबोधित कर रहे थे। चूंकि समारोह गैर राजनीति था इसलिए उनके भाषणों में राजनीति के पुट नहीं थे। जनता राजनीतिक भाषण सुनने को बेसब्र थी। तब चारा घोटाला सुर्खियां बटोर रहा था। लोगों ने चारा घोटाले पर बोलने की गुजारिश की तो वाजपेयी ने कोहिनूर मैदान की तरफ इशारा करते हुए कहा-इस पर भी आऊंगा लेकिन उधर। कोहिनूर मैदान में राजनीतिक भाषण के लिए बना मंच वाजपेयी का इंतजार कर रहा था। कोहिनूर मैदान में भाजपा की सभा के दौरान वाजपेयी ने-सड़क में गढ्डे हैं या गढ़े में सड़क, से शुरूआत की तो जनता ने खूब ताली बजाई।


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