यहां देखिए 25 करोड़ वर्ष पुराने दुर्लभ जीवाश्म, पृथ्वी का इतिहास बताता है यह म्यूजियम
यहां एक ऐसा म्यूजियम भी है, जो पृथ्वी का इतिहास बताता है। इसमें दुर्लभ जीवाश्म हैं, जो जैव विकास की कड़ियों के सबसे बड़े साक्षी हैं।
शशिभूषण, धनबाद। म्यूजियम (संग्रहालय) की चर्चा होते ही जेहन में अनेक युगों के औजार, सिक्के, लोककला को दर्शाती तस्वीरें जेहन में घूमने लगती हैं। पर, धनबाद में एक ऐसा म्यूजियम भी है, जो पृथ्वी का इतिहास बताता है। इस म्यूजियम में दुर्लभ जीवाश्म हैं, जो जैव विकास की कड़ियों के सबसे बड़े साक्षी हैं। जी हां, धनबाद के इंडियन स्कूल ऑफ माइंस (आइआइटी) में है यह अनोखा म्यूजियम। यहां मौजूद पत्थर व जीवाश्म हजार नहीं बल्कि लाखों व करोड़ों साल पुराने हैं। कुछ पत्थर व जीवाश्म तो पृथ्वी के शुरुआती दौर के हैं।
एक पेड़ का तो जीवाश्म 25 करोड़ साल पुराना है। ऐसे ही हजारों दुर्लभ जीवाश्म यहां और भी हैं। कई बेशकीमती रत्न भी मौजूद हैं। मछली, पेड़, हाथी जैसे जानवरों के जीवाश्म जैव विकास के सशक्त हस्ताक्षर हैं। म्यूजियम का सबसे अनोखा संग्रह हैरिटेज बिल्डिंग के सामने स्थित ओवल गॉर्डन में प्रदर्शित है। यह जियोलॉजिकल-फॉसिल म्यूजियम देश के अनूठे संग्रहालयों में शुमार है। यहां मौजूद जीवाश्म पृथ्वी के विकास के साक्षी हैं। संग्रहालय की व्यवस्था जियोफिजिक्स डिपार्टमेंट के अधीन है।
आइएसएम के म्यूजियम में रखा जीवाश्म।
हाथी का जीवाश्म एक लाख वर्ष से भी पुराना
आइआइटी आइएसएम का यह जियोलॉजिकल म्यूजियम अपने आप में किसी खजाने से कम नहीं है। यह देश का सबसे पुराना जियोलॉजिकल म्यूजियम है। यहां 10 हजार से अधिक पत्थरों व जीवाश्मों का संग्रह है। यहां मौजूद दक्षिण भारत से लाया गया हाथी का जीवाश्म एक लाख वर्ष से भी पुराना है।
रबड़ की तरह लचीला पत्थर है यहां
इस म्यूजियम में एक पत्थर सबसे अनोखा है। यह लचीला है। पत्थर और लचीला, सुनकर ही लोग चौंक जाते हैं। पर, यही हकीकत है। यूं तो कोई भी पत्थर चाहे कैसा भी हो, हमेशा शुष्क और कठोर होता है। बावजूद इसकी बात निराली है। इसे हाथ से काफी हद तक मोड़ सकते हैं। तब भी यह नहीं टूटता। यह पत्थर हरियाणा के भिवानी जिले से लाया गया है। इसे फ्लैक्सिबल सैंड स्टोन के नाम से जानते हैं। यह नाम इसे उसके गुण के कारण मिला है। यहां झारखंड समेत देश भर में पाए जाने वाले रत्नों का अनूठा संग्रह भी है। कोडरमा की माइका खदानों से आया रूबेलाइट रत्न भी इनमें शामिल है।
ब्रिटेन के रॉयल स्कूल ऑफ माइंस की तर्ज पर हुई थी स्थापना
आइआइटी आइएसएम की स्थापना ब्रिटेन के रॉयल स्कूल ऑफ माइंस की तर्ज पर 1926 में ब्रिटिश हुकूमत ने की थी। रॉयल स्कूल ऑफ माइंस में पहले से जियोलॉजिकल म्यूजियम था। इसी तरह अमेरिका के कोलडोराडो स्कूल ऑफ माइंस, आस्ट्रेलिया में कर्टिन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ माइंस में ऐसा ही म्यूजियम था। 1926 में जब आइआइटी आइएसएम की स्थापना की जा रही थी। उसी समय यहां जियोलॉजिकल म्यूजियम खोलने का निर्णय लिया गया था।
आइआइटी आइएसएम का म्यूजियम देखतीं छात्राएं व शिक्षक।
शिक्षकों और छात्रों ने किया यह बेमिसाल संग्रह
यहां अर्थ साइंस विषय की पढ़ाई करनेवाले अंग्रेज छात्र व उनके शिक्षक पूरे देश में घूमते थे। भौगोलिक स्थितियों का अध्ययन करते थे। यह सिलसिला आज भी जारी है। छात्रों और शिक्षकों ने अध्ययन के दौरान देश के विभिन्न स्थानों से तरह तरह के पत्थर व जीवाश्म इकट्ठे किए थे। गुजरते वक्त के साथ जीवाश्म और दुर्लभ पत्थरों की संख्या बढ़ती गई। आज यहां इनका बेजोड़ संग्रह हो गया है।
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