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अजगर से बड़ी शिकारी यहां की जनजाति, उसके पेट से शिकार कर खा गए खरगोश Dhanbad News

टुंडी में जंगल और जंगल के आस-पास रहने वाले जनजाति शिकार करते ही हैं। यह उनके जीवन का एक हिस्सा है। बड़े तो बड़े बच्चे भी शिकार की कला बखूबी जानते हैं। फोटो- दिनेश महथा

By MritunjayEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 12:13 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 02:37 PM (IST)
अजगर से बड़ी शिकारी यहां की जनजाति, उसके पेट से शिकार कर खा गए खरगोश Dhanbad News
अजगर से बड़ी शिकारी यहां की जनजाति, उसके पेट से शिकार कर खा गए खरगोश Dhanbad News

टुंडी, जेएनएन। अजगर तो शिकारी होते ही हैं ! शिकार पर ही पेट पलता है। शिकार न करें तो भूखे मरेंगे। लेकिन, धनबाद जिले के सबसे पिछड़े और ग्रामीण अंचल टुंडी में रहने वाली जनजाति भी कम शिकारी नहीं हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यह जनजाति अजगर से भी बड़ी शिकारी है। शिकारी के पेट के अंदर से भी शिकार करने की कला बखूबी जानते हैं। 

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जंगल और जंगल के आस-पास रहने वाले जनजाति शिकार करते ही हैं। यह उनके जीवन का एक हिस्सा है। इसमें कुछ भी नई बात नहीं है। लेकिन, पर्व-त्योहार के माैके पर तो शिकार का मजा ही कुछ और है। और शिकार भी कुछ अलग हट कर न हो तो शिकारी कहलाने का कोई मतलब नहीं। मकर संक्रांति के दिन दक्षिणी टुंडी के जनजातीय समुदाय के लोग शिकार करने की परंपरा है। इसी क्रम में दक्षिणी टुंडी के 25 गांव के जनजातीय समुदाय के लोग टुंडी पहाड़ पर 15 जनवरी को शिकार के लिए निकले। देर शाम उनकी नजर एक खरगोश पर पड़ी। शिकार का पीछा करने लगे। शिकारियों को देखते ही खरगोश एक झाड़ीनुमा टीले के पीछे छुप गया। वहां पहले से एक अजगर बैठा था। वह खरगोश को निगल गया। यह देख शिकारियों के चेहरे पर निराशा का भाव छा गया। लेकिन, शिकारी कहां मानने वाले थे। उनके  दिमाग में एक आइडिया आया। फिर क्या था, शिकारियों ने अजगर के पेट के अंदर से ही शिकार करने का प्लान बना डाला। 

जनजाति समुदाय के लोग अजगर को लेकर पहाड़ से नीचे उतरे। इसके बाद उसके पेट का फाड़ डाला। जैसे ही पेट से बाहर खरगोश निकला सबसे चेहरे पर खुशी का ठिकाना न था। खुशी से उछल पड़े। हालांकि खरगोश का दम घुंट चुका था। उसे लेकर सब गांव पहुंचे। आपस में खरगोश के मांस का बंटवारा कर शिकार का आनंद उठाया। 


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