चार पीढि़यों से चल रही मुआवजे की जंग
अंग्रेज प्रशासन ने लोगों को स्वच्छ पेयजल उफलब्ध कराने के लिए पाइप लाइन बिछाने का काम किया।
धनबाद, बलवंत कुमार। 1947 से पहले अंग्रेजों ने जिसकी जमीन पर अपना कदम रखा वह महारानी की हो गयी। इसी कड़ी में तोपचांची झील से लेकर कतरास और झरिया तक जलापूर्ति के लिए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने जमीन अधिग्रहण किया थी। कागजी कार्रवाई तो पूरी की, लेकिन मुआवजा नहीं दिया। मुआवजे के लिए चार पीढि़यों से जंग चल रही है। इस संबंध में जब सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी पर धनबाद जिला प्रशासन ने जवाब दिया कि उसके पास संबंधित दस्तावेज नहीं हैं।
क्या है मामला : 1924 में तत्कालीन अपर उपायुक्त एवं अनुमंडल पदाधिकारी मानभूम ने झरिया जलापूर्ति अधिनियम के तहत तोपचांची झील से झरिया तक पाइप लाइन बिछाने की योजना बनायी। प्रखंड के कालाझार मौजा में 11 एकड़ से भी अधिक जमीन का अधिग्रहण किया गया। इसमें स्व. गणेशचंद्र दुबे की भी करीब तीन एकड़ जमीन ली गई। पाइपलाइन तो बिछा दी गई, लेकिन जमीन का मुआवजा नहीं दिया गया। आजादी के 16 वर्षो बाद मुआवजा भुगतान संबंधी घोषणा की गई। लेकिन फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बीच गणेशचंद्र दुबे भी नहीं रहे। उनके पुत्र मथुरा प्रसाद दुबे ने लड़ाई जारी रखी। मथुरा के स्वर्गवासी होने के बाद उनके पुत्र प्रमोद कुमार दुबे ने यह बीड़ा उठाया और अब प्रमोद के पुत्र विष्णु दुबे धनबाद जिला प्रशासन से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पत्राचार कर रहे हैं। आश्वासन मिलता रहा लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सूचना अधिकार में बात आयी सामने : इस संबंध में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी गई तो जवाब में बताया गया कि जमीन मथुरा प्रसाद दुबे की है। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के वक्त के सरकारी दस्तावेजों के नहीं होने की बात सामने आयी। वहीं विष्णु दुबे के पास महारानी विक्टोरिया के सील लगे दस्तावेज उपलब्ध हैं, जिसमें जमीन अधिग्रहण संबंधी बात कही गई है। उस वक्त के तत्कालीन एडीशनल डिप्टी कमिश्नर मानभूम सह सब डिविजनल ऑफिसर टी लूबी के हस्ताक्षरयुक्त जमीन अधिग्रहण संबंधी दस्तावेज भी हैं। उस वक्त अलग धनबाद जिला नहीं बना था। तब यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल के मानभूम जिला अंर्तगत आता था।
हैजा में 10 हजार मौतों के बाद बिछाई गई थी पाइप लाइन : विष्णु दुबे के पास जो अंग्रेजी हुकूमत के जो दस्तावेज उपलब्ध हैं उनके अनुसार उस वक्त कोयलांचल में हैजा महामारी फैली थी। करीब दस हजार लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद अंग्रेज प्रशासन ने लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पाइप लाइन बिछाने का काम किया। उसी पाइप लाइन से आज भी कतरास क्षेत्र को जलापूर्ति की जाती है।
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किसी का नहीं मिला मुआवजा : विष्णु दुबे की मानें तो 1924 में जितने भी लोगों की जमीन ली गई, किसी को भी मुआवजा नहीं मिला है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि सभी को चिन्हित कर मुआवजा देने की कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।