काला हीरा- 2019: समाज की वेदना प्रस्तुति का मंच है नाटक Dhanbad News
नाटक और नाटककार की स्थितियों में परिवर्तन आया है। एक दौर था जब नाटक दम तोडऩे लगे थे। अब ऐसा नहीं है। आज भी नाटक जीवंतता के प्रतीक हैं।
धनबाद, जेएनएन। समाज की वेदना को प्रस्तुत करने का एक अच्छा माध्यम नाटक है। आज भी नाटक जीवंत हैं और इसी दम पर समाज को जीवंत बनाने का काम कर रहे हैं। यह बातें धनबाद में आयोजित सांस्कृतिक प्रशिक्षण केंद्र और अखिल भारतीय थियेटर काउंसिल की ओर से आयोजित तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव सह प्रतियोगिता काला हीरा-2019 में भाग लेने पहुंचे देश भर के दिग्गज नाटककारों ने कहीं। निर्णायक की भूमिका अदा करने के लिए देहरादून से महेश नारायण, जमशेदपुर से मो. निजाम और शिवलाल सागर आए हुए हैं। तीनों काफी लंबे समय से नाटक करते आ रहे हैं।
नाटक और नाटककार की स्थितियों में परिवर्तन आया है। एक दौर था जब नाटक दम तोडऩे लगे थे। अब ऐसा नहीं है। आज भी नाटक जीवंतता के प्रतीक हैं। हालांकि नाटकों को दर्शक कम मिलते हैं। इसके बावजूद लोगों का रूझान बढ़ा है।
- मो. निजाम, वरिष्ठ नाटककार
नाटक सामाज की वेदना को उभारने और उसके समाधान के लिए एक आंदोलन से कम नहीं। व्यावसायिक नाटकों का अलग महत्व है, लेकिन नाट्य आंदोलन को गति देने में अव्यवसायिक नाटक अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।
- महेश नारायण, वरिष्ठ नाट्यकर्मी
नाटकों ने अभिनय की दुनिया में एक नया रास्ता खोला है। युवाओं का रूझान इस ओर देखने को मिल रहा है। ऐसी स्थिति बनी है कि काफी तेजी से युवा इस विधा से जुड़ रहे हैं। ओडि़शा के अंतिम गांव से लेकर मुम्बई-दिल्ली जैसे शहरों में नाटकों को सराहा जा रहा है।
- शिवलाल सागर, वरिष्ठ नाटककार