Move to Jagran APP

बालिग हुआ झारखंड, पर धनबाद को जाने लगी किसकी नजर...

18 वर्षों में नगर निगम की कार्यों का यदि आकलन किया जो तो उसके हिस्से उपलब्धियां कम और नाकामियां ही ज्यादा नजर आती हैं। हालांकि 18 वर्षों में निगम में विधिवत चुनाव दो बार ही हुए।

By Deepak PandeyEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 12:42 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 12:42 PM (IST)
बालिग हुआ झारखंड, पर धनबाद को जाने लगी किसकी नजर...
बालिग हुआ झारखंड, पर धनबाद को जाने लगी किसकी नजर...

श्रवण कुमार, धनबाद: 18 वर्षों में नगर निगम की कार्यों का यदि आकलन किया जो तो उसके हिस्से उपलब्धियां कम और नाकामियां ही ज्यादा नजर आती हैं। हालांकि 18 वर्षों में नगर निगम में विधिवत चुनाव आठ वर्षों से ही हो रहा है, लेकिन निगम की नाकामियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

loksabha election banner

आठ साल पहले वर्ष 2010 में निकाय चुनाव के साथ धनबाद नगर निगम विधिवत रूप से अस्तित्व में आया। वर्ष 2006 में धनबाद को नगर निगम का दर्जा मिला था। उससे पहले यहां नगरपालिका हुआ करती थी। इस तरह अठारह सालों में धनबाद नगरपालिका से नगर निगम तक का सफर पूरा हुआ।

निगम बनने के साथ ही इसकी जिम्मेदारियां भी बढ़ीं, लेकिन आम जनता की उम्मीदों पर अभी तक यह खरा नहीं उतर सका है। दरअसल, नगर निगम स्थानीय सरकार होती है। लोगों को जन सुविधा उपलब्ध करना निगम की ही जिम्मेवारी है। साफ-सफाई, जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र, सड़कों व गली मोहल्लों में स्ट्रीट लाइट, शौचालय, मकान का नक्शा, मच्छरों का प्रकोप से बचाने के लिए फोगिंग आदि की सुविधा देना निगम के जिम्मे है। साफ-सफाई नगर निगम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्‍सा है। पिछले कुछ सालों में सफाई की स्थिति सुधरी है।

धनबाद गंदे शहर का दाग धोने में सफल रहा, पर धनबाद को पूरी तरह से स्वच्छ करने में अभी इसको समय लगेगा, क्योंकि ठोस कचरा प्रबंधन में धनबाद अभी पीछे है। ड्रेनेज सिस्टम भी ध्वस्त है। धनबाद में ड्रेनेज सिस्टम का कोई प्रबंध नहीं है। नाले अतिक्रमण के शिकार हैं।

आठ साल में नहीं चालू हो सका ठोस कचरा प्रबंधन: नगर निगम में ठोस कचरा प्रबंधन धरातल पर नहीं उतर पाने का मामला आठ वर्षों से चला आ रहा है। वर्ष 2010 में यूपीए सरकार के शासनकाल में नगर निगम में ठोस कचरा प्रबंधन की योजना आई थी। मकसद, धनबाद शहर को सुदृढ़ सफाई व्यवस्था उपलब्ध करना था। कचरा के नियमित उठाव के साथ-साथ उससे गैस या खाद तैयार करना था लेकिन यह योजना अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। वर्ष 2012 एटुजेड ने धनबाद में ठोस कचरा निस्तारण का काम लिया लेकिन एक साल में ही वह फेल हो गई। नतीजतन नगर निगम ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। नगर निगम और एटुजेड के बीच विवाद न्यायालय में आर्बिटेशन में चल रहा है। वर्तमान निगम बोर्ड को तीन साल हो चुके हैं और अब तक ठोस कचरा प्रबंधन चालू नहीं हो सका है।

कितने नगर आयुक्त आए और चले गए: वर्ष 2010 के बाद से नगर निगम बोर्ड का यह दूसरा कार्यकाल है। इन आठ सालों में जहां दो मेयर हुए। दूसरे मेयर के कार्यकाल में कई नगर आयुक्त आए और यहां से चले भी गए पर ठोस कचरा प्रबंधन धरातल पर नहीं उतर पाया। बीते दो सालों में ही चार-चार नगर आयुक्त यहां से जा चुके हैं। दो साल से कचरा संग्रह, प्रोसेसिंग, निस्तारण एवं ट्रांसपोर्टेशन के लिए 76 करोड़ का टेंडर निकल रहा है।

वर्ष 2016 में तत्कालीन नगर आयुक्त छवि रंजन के समय पहली बार 76 करोड़ का टेंडर निकाला था, तब से अबतक यहां एक-एक कर चार नगर आयुक्त बदल चुके हैं।

छवि रंजन के बाद रमेश घोलप, मनोज कुमार और राजीव रंजन यहां नगर आयुक्त बनकर आए और गए। इन चारों के बाद अब चंद्रमोहन कश्यप पांचवें नगर आयुक्त बनकर आए हैं और उन्होंने पांचवीं बार इसका टेंडर निकाला है। हैदराबाद की रेमकी कंपनी ने सिंगल टेंडर डाला है। लगातार तीन बार से सिंगल टेंडर जा रहा है जिससे रेमकी को ठोस कचरा प्रबंधन का वर्क आर्डर किया जा सकता है।

जमीन की कमी सबसे बड़ी बाधा: नगर निगम में ठोस कचरा प्रबंधन अब तक चालू नहीं हो पाने का सबसे बड़ा कारण जमीन की कमी है। इस प्रोजेक्ट के सुचारू संचालन के लिए 35 से 40 एकड़ जमीन की आवश्यकता है जो निगम के पास नहीं है। बीसीसीएल से निगम को पुटकी में 38 एकड़ जमीन इस शर्त पर मिली है कि जरूरत पडऩे पर वह कभी भी वापस ले लेगा, जबकि ठोस कचरा प्रबंधन प्रोजेक्ट के लिए कम से कम 30 साल के लिए जमीन चाहिए। निगम के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होने से बीसीसीएल की जमीन लेना मजबूरी है। सितंबर में ठोस कचरा प्रबंधन का पांचवीं बार जो टेंडर निकला था उसमें ठोस अपशिष्ट प्लांट के लिए पुटकी की जमीन शामिल की गई। हालांकि यहां ठोस अपशिष्ट प्लांट चालू हो पाएगा या नहीं वो भविष्य के गर्भ में है क्योंकि स्थानीय लोग पूर्व में यहां प्लांट का विरोध कर चुके हैं।

स्ट्रीट लाइट की संख्या तो बढ़ी पर रोशनी नहीं हुई: नगर निगम के तीन महत्वपूर्ण कार्य में वार्डों में गली-गली प्रकाश का प्रबंध करना भी है। लेकिन निगम यहां भी पिछड़ा हुआ है। कहने को तो राज्य गठन के बाद शहरी क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट की संख्या बढ़ी पर अब भी गलियों में अंधेरा पसरा पड़ा है। वर्ष 2010 में नगर निगम बोर्ड गठन के बाद वित्तीय वर्ष 2014-15 में 13वें वित्त आयोग के फंड से 6 करोड़ 61 लाख की लागत से 27 जगहों पर एलइडी लाइट लगी।

तीन साल में ही 14912 नई स्ट्रीट लाइट लगाई गई है, जबकि 20 हजार और लाइट लगनी बाकी है। हर वार्ड में एलइडी स्ट्रीट लाइट लगाने व रखरखाव के लिए निगम का इइएसएल के साथ सात साल का करार हुआ है। इसके लिए वह निगम से प्रतिवर्ष 3.50 करोड़ रुपए लेगी। यानि नगर निगम अगले साल सात सालों में स्ट्रीट लाइट पर 24.50 करोड़ रुपये खर्च करेगा।

रोड चौड़ीकरण में बुझ गई 600 लाइट: 13वें वित्त आयोग और राष्ट्रीय खेल की राशि से वर्ष 2010 से 15 के बीच 600 एलइडी एवं सोडियम लाइट लगाई गई थी जो रोड चौड़ीकरण भेंट चढ़ गई। सिटी सेंटर से मेमको मोड़, बैंकमोड़ से धनसार चौक, बैंकमोड़ से मटकुरिया चेक पोस्ट, मटकुरिया चेक पोस्ट से गोधर मोड़, करकेंद मोड़ से अलकुशा डीएवी स्कूल, अलकुशा डीएवी स्कूल से पुटकी तक स्ट्रीट लाइट रोड चौड़ीकरण के कारण लाइट उखाड़ दी गई। इससे पांच करोड़ से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है। हालांकि नगर निगम सड़क चौड़ीकरण में जहां-जहां लाइट उखड़ी है, वहां नए सिरे से एलइडी लाइट लगाने का प्रबंध कर रहा है। सिटी सेंटर से मेमको मोड़ और बैंकमोड़ से कतरास मोड़ तक 3 करोड़ 95 लाख में लाइट लगवाई जा रही है।

इन सड़कों पर पसरा अंधेरा

  • सिटी सेंटर से लुबी सर्कुलर रोड होते हुए रणधीर वर्मा चौक
  • हीरापुर हटिया से बरमसिया होते हुए हावड़ा मोटर तक
  • कार्मल स्कूल से बाबूडीह खटाल होते हुए बिनोद बिहारी चौक तक
  • बिनोद बिहारी चौक से बिरसा मुंडा पार्क होते हुए मेमको मोड़ तक
  • बैंकमोड़ से झरिया कतरास मोड़ तक

निगम खुद बीमार, मच्छर क्या भगाएगा: मच्छर जनित बीमारियों को फैलने से रोकने में भी निगम की महती जिम्मेदारी है। लेकिन निगम मच्छर क्या भगाएगा, वह तो खुद बीमार है। वार्ड व गली-मोहल्लों में मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए निगम को नियमित फागिंग करना है। नियमित फागिंग तो दूर की बात रही, महीने में भी यह काम नहीं हो रहा। निगम की फागिंग मशीन बीमार अवस्था में हैं। निगम के पास दो बड़ी और 11 मिनी फागिंग मशीन है जिसमें अधिकतर खराब है। दो बड़ी फागिंग मशीन काफी समय से खराब है। काफी समय पहले दोनों बड़ी फोगिंग रिपेयङ्क्षरग के लिए कोलकाता गई हुई है जो अबतक ठीक होकर नहीं पहुंची है। मिनी फागिंग मशीन की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। 11 मिनी फोगिंग मशीन में करीब पांच खराब है।

फाइलों में अटकी सीवरेज व ड्रेनेज योजना: धनबाद में सीवरेज व ड्रेनेज सिस्टम का कोई प्रबंध नहीं है। यूपीएस शासनकाल में जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत यहां सीवरेज व ड्रेनेज सिस्टम का इजाद करना था जो नहीं हुआ। वर्तमान निगम बोर्ड में स्ट्रॉम वाटर ड्रेनेज प्रोजेक्ट का प्रस्ताव है। टाटा कंसल्टेंसी द्वारा डीपीआर भी तैयार तैयार की गई है। योजना की लागत 200 करोड़ से ऊपर है, लेकिन अभी तक यह फाइलों से आगे नहीं बढ़ सकी है। यह स्थिति तब है जब निगम में सीवरेज व ड्रेनेज सिस्टम की बेहद आवश्यकता है। नगर निगम क्षेत्र में 100 से अधिक बड़े नाले हैं पर कोई भी व्यवस्थित नहीं है। नालों पर दबाव बढ़ा हुआ है। बहुत जगह तो नाले अतिक्रमण के शिकार हैं। जयप्रकाश नगर में नाले पर घर बन चुके हैं। बारिश के मौसम में नाला जाम हो जाने के कारण जयप्रकाश नगर, वासेपुर समेत कई इलाकों में पानी भर जाता है।

फैक्ट फाइल

  • वर्ष 2000 में झारखंड गठन के समय यहां नगरपालिका थी। तब धनबाद नगरपालिका में 32 वार्ड थे। अब 55 वार्ड इसके अंतर्गत हैं।
  • एक जनवरी 2006 को धनबाद नगरपालिका को नगर निगम का दर्जा मिला। विधिवत रूप में वर्ष 2010 में निकाय चुनाव के बाद नगर निगम अस्तित्व में आया।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार धनबाद नगर निगम की आबादी 11 लाख 59 हजार है जो सूबे के दूसरे निकायों से अधिक है। आबादी एवं क्षेत्रफल दोनों दृष्टिकोण से यह राज्य का सबसे बड़ा नगर निकाय है।
  • धनबाद जिला के छह में से पांच विधानसभा क्षेत्र नगर निगम के अंदर पड़ते हैं जिसमें झरिया और धनबाद विधानसभा का सबसे अधिक हिस्सा आता है।
  • नगर निगम पांच अंचलों में फैला है। कतरास, छाताटांड़, धनबाद, झरिया व सिंदरी इसके अंचल हैं जिसमें कतरास व सिंदरी पहले अधिसूचित क्षेत्र हुआ करता था जिन्हें वर्ष 2006 के बाद नगर निगम में शामिल कर लिया गया।

"इस नगर निगम बोर्ड से पहले निगम क्या था वो जनता बताएगी। हमलोग परीक्षा दे रहे हैं। रिजल्ट जनता के हाथ में है। रही बात कमियों की तो अभी बहुत सुधार की आवश्यकता है। वर्क कल्चर बदलना होगा। अभी की कर्मियों की कमी है। संसाधन कम हैं। सीमित संसाधन में रास्ता निकालकर काम कर रहे हैं।"

- चंद्रशेखर अग्रवाल, मेयर, नगर निगम


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.