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खोरठा को खट्टा से मीठा बना गये पानुरी, कई कृतियां पाठ्यक्रम में हैं शामिल Dhanbad News

खोरठा भाषा को खïट्टा से मीठा बनाने में धनबाद के श्रीनिवास पानुरी ने दधीचि की तरह त्याग किया। आज इस साहित्य की जो भी स्थिति है यह पानुरी की ही देन है।

By Sagar SinghEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 08:23 PM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 08:44 PM (IST)
खोरठा को खट्टा से मीठा बना गये पानुरी, कई कृतियां पाठ्यक्रम में हैं शामिल Dhanbad News
खोरठा को खट्टा से मीठा बना गये पानुरी, कई कृतियां पाठ्यक्रम में हैं शामिल Dhanbad News

धनबाद (गौतम कुमार ओझा)। खोरठा झारखंड के बड़े भाग में बोली जानेवाली भाषा है। इसकी फलक झारखंड के 24 जिलों में से 15 जिलों में पूर्णत: या अशंत: संपर्क भाषा है। प्रदेश में इसे द्वितीय राज्य भाषा का दर्जा तो मिल गया, लेकिन यह पूर्ण रूप से पठन-पाठन की भाषा नहीं बन पाई। हालांकि, खोरठा भाषा को खïट्टा से मीठा बनाने में धनबाद के श्रीनिवास पानुरी ने दधीचि की तरह त्याग किया। आज इस साहित्य की जो भी स्थिति है यह पानुरी की ही देन है।

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आर्थिक तंगी और मुफलिसी की मार के बावजूद भी साहित्यकार प्रेमचंद की तरह वह अनवरत साहित्य के सफल साधना में लीन रहे। वह जीविकापार्जन के लिए धनबाद में एक पान गुमटी चलाया करते थे। लेकिन, खोरठा साहित्य के धनी इस कवि को अपने ग्राहकों की क्या प्रवाह। वह दिन में दुकान बंद कर किसी भी कवि सम्मेलन में जा पहुंचते थे। उनसे मिलने वाले हर बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ और साहित्य के क्षेत्र में काम कर रहे लोग उन्हें कवि कहकर बुलाया करते थे। कई साहित्यकार उनकी कविता को बाबा नागार्जुन के साम्यभाव देखते हैं।

साहित्य जगत में बनाई अपनी पैठ

लोगों का मानना है कि दोनों जनपक्ष के कवि थे। इन दोनों ने ही फकीरी समान रूप से देखी है। धनबाद के बरवाअड्डा में जन्मे पानुरी ने साहित्य साधना के बल पर पत्र-पत्रिका और आकाशवाणी में कविता प्रकाशन कराकर साहित्य जगत में अपनी पैठ बनाई। उन्होंने अपने संपर्क के बल पर देश के दिग्गज कवि और साहित्यकारों से संपर्क रहा।

कई अहम कृति पाठ्यक्रम में सम्मलित

मातृभाषा पत्रिका प्रकाशन के बाद उन्होंने खोरठा नामक पत्रिका का प्रकाशन कराया। रूक-रूक कर उनकी तितकी नामक पत्रिका सामने आते रही। कालिदास के मेघदूत का खोरठा में अनुवाद कर प्रकाशित कराया। उनके कई अहम कृति है जिसे आज जेपीएससी (झारखंड चयन आयोग ) व जेएसएससी (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग) व विनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय और रांची विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम में इसे सम्मलित किया। जिनमें रक्त भीजल पांखा(अनुवाद), अजनास(नाटक), मोतीक चूर, अग्नि परिखा(उपान्यास), समाधान मोहभंग, हमर गांव, भ्रमर गीत और उद्वासल करन, युगेग गीत आदि शामिल है।

बेटे अर्जुन ने भी संभाली मुफलिसी की विरासत

खोरठा के अलख जगाने वाले पानुरी का सात अक्टूबर 1986 को हार्ट अटैक से निधन हुआ था। इस सरस्वती के वरद पुत्र को सदैव ही लक्ष्मी की कमी रही। इनके बाद अपनी पिता की विरासत को इनके बेटे अर्जुन पानुरी ने मुफलिसी में बखूबी निभाई और अपने हर और अधिकार के लिए लड़ते रहे। लेकिन, रक्त कैंसर की वजह से वह भी जिंदगी का जंग हार गए। आज खोरठा प्राधिकार और विभिन्न विश्वविद्यालयों में खोरठा साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की जा रही है। इसके लिए पानुरी परिवार का अहम योगदान है।


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