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हाथों में हुनर, दिलों में आसमां छूने की तमन्ना

वह जमाना गया, जब युवा शैक्षणिक संस्थानों से सिर्फ डिग्री लेकर निकलते थे और साधारण सी नौकरी के लिए भी दर-दर भटकते थे।

By Edited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 10:53 AM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 11:54 AM (IST)
हाथों में हुनर, दिलों में आसमां छूने की तमन्ना
हाथों में हुनर, दिलों में आसमां छूने की तमन्ना

जागरण संवाददाता, धनबाद: हाथों में हुनर हो तो आसमां छू सकते हैं। हुनर से संभावनाओं के तमाम द्वार खुलने लगते हैं। झारखंड के युवा अब इस सीख को अपना कर अपने बेहतर करियर के लिए कदमताल कर रहे हैं। वह जमाना गया, जब युवा शैक्षणिक संस्थानों से सिर्फ डिग्री लेकर निकलते थे और साधारण सी नौकरी के लिए भी दर-दर भटकते थे।

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यह अहसास बहुत तेजी से हुआ है कि सिर्फ डिग्री नहीं, हुनर भी यानी काम के लिए कौशल भी होना चाहिए। यह सोच ही वह ताकत है जिसके बलबूते आज युवक-युवतियां विभिन्न ट्रेडों का कौशल सीख कर आत्मविश्वास से लबरेज हैं। सरकार भी अब इस दिशा में आगे आई है। सरकारी क्षेत्रों में भले ही चंद नौकरियां हों मगर निजी क्षेत्र की कंपनियां को तो हुनरमंद लोगों की तलाश है।

धनबाद समेत राज्य के विभिन्न जिलों के युवाओं के करियर को तराशने के लिए भारत सरकार की दीन दयाल उपाध्याय कौशल विकास योजना शुरू की गई है। इससे पहले भी उद्योग विभाग युवाओं को प्रशिक्षित करता था मगर दीन दयाल योजना समग्रता आई है। धनसार स्थित आपोलो मेडस्किल्स प्रशिक्षण केंद्र में पहुंचे युवाओं से भेंट करें तो पता चलेगा कि युवा आज कितने जागरुक व उत्साहित हैं। न केवल शहरी क्षेत्र बल्कि दूर-दूराज गांवों के युवक और युवतियां यहां पहुंचे हुए हैं।

यह केंद्र दीन दयाल योजना के तहत ही खुला है। धनसार में वर्तमान में कुल 163 छात्र-छात्राएं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विभिन्न विषयों का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनमें डायलीसिस टेक्नीशियन, आपातकालीन मेडिकल टेक्नीशियन और ब्लड बैंक टेक्नीशियन शामिल हैं। पतलाबाड़ी की ज्योति कुमारी महतो ने बताया कि उन्हें कभी यह उम्मीद नहीं थी कि सरकार के द्वारा तकनीकी दक्षता को प्रशिक्षण दिया जाएगा। वो गरीब परिवार से आती है। आदिवासी बहुल क्षेत्र टुंडी की ज्योति किस्कू भी यहां मेडिकल का प्रशिक्षण ले रही हैं।

ज्योति की मानें तो उसके लिए आधुनिक सुविधाओं एवं उपकरणों से लैस संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त करना सपना था। पिता की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो गांव से निकाल कर कहीं बाहर अच्छे संस्थान में उसे पढ़ा सकें। लेकिन दीन दयाल उपाध्याय कौशल विकास योजना के तहत उन्हें यह मौका मिला। इन्हीं लड़कियों में पूर्वी टुंडी की सुभासिनी हांसदा भी हैं। उसे उम्मीद है कि यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्हें निजी अस्पतालों में आसानी से नौकरी मिल जाएगी। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। संस्थान की ओर से बेहतर खाना पान के साथ आवासीय व्यवस्था दी गई है। पाकुड़ के अमरापाड़ा से आए पंकज कुमार पंडित ने कहा कि बारहवीं पास करने के बाद वो आगे की पढ़ाई करने में सक्षम नहीं थे। इसी बीच इस योजना की जानकारी मिली। परिवार से अनुमति लेकर वे बिना किसी परेशानी के धनबाद में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

घाटशिला से आए जलाधर महतो ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद प्लेसमेंट की भी व्यवस्था है। प्लेसमेंट होते ही वे अपने परिवार को मजबूती दिला सकेंगे। उनके लिए यही बड़ी बात है कि आधुनिक उपकरणों एवं सभी सुविधा युक्त कक्षाओं में प्रशिक्षण ले रहे हैं। जो पारिवारिक स्थिति है उसमें यह कभी संभव नहीं था। बासमाटी के संजय कुमार पाल भी सरकार की इस योजना से काफी प्रभावित और उत्साहित हैं।

उनकी मानें तो सरकार का यह कदम काफी सराहनीय है। उनके जैसे युवाओं को कुछ सीखने का बेहतरीन मौका मिला है। प्रत्येक छात्र पर एक लाख खर्च: मेडिकल प्रशिक्षण लेने वाले प्रत्येक बच्चे पर सरकार का एक लाख रुपया खर्च आता है। इस राशि से छात्र-छात्राओं के पठन-पाठन सामग्री, खान पान, आवास आदि सभी की व्यवस्था की जाती है। एससी-एसटी व अल्पसंख्यकों को कुशल करने पर जोर: यह प्रशिक्षण हर वर्ग की लड़कियों के लिए है।

लड़कों में विशेष कर एससी-एसटी, अल्पसंख्यक और अन्य पिछड़ी जाति पर ध्यान दिया जाता है। धनसार में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राएं धनबाद के अलावा पाकुड़, जमशेदपुर, गिरिडीह, रांची, खूंटी आदि जिलों से आए हैं। दो बैच हुए पासआउट: इस संस्थान से अब तक दो बैच पासआउट हुए हैं।

धनसार में अपोलो मेडस्किल्स की शुरूआत 2017 में हुई थी। अब तक एसी के 88, एसटी के 16, अन्य पिछड़ी जाति के 118, अल्पसंख्यक के 35 छात्रों ने यहां से प्रशिक्षण प्राप्त किया या प्रशिक्षण ले रहे हैं। इनके अलावा 158 लड़कियां भी हैं।

कौशल विकास व रोजगार है लक्ष्य: ग्रामीण विकास मंत्रालय ने गरीब परिवारों के युवाओं के कौशल विकास और उत्पादक क्षमता का विकास के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना प्रारंभ की। योजना के तहत विश्व स्तरीय प्रशिक्षण, वित्त पोषण, रोजगार उपलब्ध कराने पर जोर, रोजगार को स्थायी बनाने, आजीविका उन्नयन और विदेश में रोजगार प्रदान करना इसका लक्ष्य निर्धारित है। यह योजना 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 610 जिलों में लागू है। इसमें 50 से अधिक क्षेत्रों से जुड़े 250 से अधिक ट्रेडों को शामिल करते हुए 202 से अधिक परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों की साझेदारी है।

योजना की विशेषताएं: - लाभकारी योजनाओं तक निर्धनों और सीमात लोगों को पहुंचने में सक्षम बनाना। - ग्रामीण गरीबों के लिए माग आधारित निश्शुल्क कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना। - समावेशी कार्यक्रम तैयार करना - सामाजिक तौर पर वंचित समूहों अजा, अजजा, अल्पसंख्यक और महिलाओं को अनिवार्य रूप से शामिल करना। - प्रशिक्षण से लेकर आजीविका उन्नयन पर जोर देना। - रोजगार साझेदारी तैयार करने की दिशा में सकारात्मक पहल।


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