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झामुमो अध्यक्ष शिबू ने छेड़ा स्थानीयता का राग 1932, बढ़ेगा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का टेंशन; जानिए

बिहार को विभाजित कर साल 2000 में झारखंड राज्य सृजन के बाद से ही स्थानीय नीति बड़ा ही संवेदनशील मामला रहा है। इसे लेकर साल 2002 में झारखंड सुलग उठा था।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 01:04 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 12:54 PM (IST)
झामुमो अध्यक्ष शिबू ने छेड़ा स्थानीयता का राग 1932, बढ़ेगा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का टेंशन; जानिए
झामुमो अध्यक्ष शिबू ने छेड़ा स्थानीयता का राग 1932, बढ़ेगा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का टेंशन; जानिए

धनबाद, जेएनएन। झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन ने स्थानीयता के मुद्दे को हवा दे दी है। वे दो दिन से स्थानीय नीति पर बयान दे रहे हैं। 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की मांग कर रहे हैं। यह मांग झामुमो के साथ सूबे की सत्ता में साझीदार कांग्रेस के लिए असहज करने वाली है। इससे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सिरदर्द बढ़ सकता है। 

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स्थानीय नीति के लिए कट ऑफ डेट 1932 हो 

झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन ने दो दिन पूर्व 14 जनवरी 2020 को धनबाद के बरवाअड्डा में मीडिया से बातचीत करते हुए स्थानीय नीति में बदलाव करने की मांग की थी। इसके अगले दिन 15 जनवरी को दुमका में कहा कि स्थानीय नीति के लिए कट ऑफ डेट 1932 किया जाना चाहिए। यकीन है कि नई सरकार नई स्थानीयता नीति जल्द लागू करेगी। उन्होंने कहा कि रघुवर सरकार ने स्थानीयता के लिए कट ऑफ डेट 1985 निर्धारित किया है जो सही नहीं है। इसके कारण यहां के लोगों का अधिकार मारा गया। 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लागू होगी तो जंगल झाड़ में रहने वाले आदिवासी और मूलवासी को झारखंड से पलायन नहीं करना होगा। उन्हें झारखंड में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरी मिल सकेगी। 

स्थानीय नीति बड़ा की संवेदनशील मामला 

बिहार को विभाजित कर साल 2000 में झारखंड राज्य सृजन के बाद से ही स्थानीय नीति बड़ा ही संवेदनशील मामला रहा है। इसे लेकर साल 2002 में झारखंड सुलग उठा था। कथित बाहरी और मूलवासी आमने-सामने आ गए थे। इस मामले को सलटाने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा था। बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन हर किसी की सरकार ने मामले को लटकाए रखा। 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद रघुवर दास ने स्थानीय नीति को सलटाया। झारखंड के साथ ही बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड राज्य की स्थानीय नीति का अध्ययन कर 2015 में स्थानीय नीति लागू की गई। इसके अनुसार 1985 या 1985 से पहले से झारखंड क्षेत्र में रहने वाला हर व्यक्ति राज्य का नागरिक माना गया। अब नए सिरे स्थानीय नीति को परिभाषित करने की मांग मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने के समान होगा। 

... तो मुख्यमंत्री की बढ़ेगी परेशानी 

अगर अपने पिता झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन की मांग को स्वीकार करते हुए ंमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्थानीय नीति को बदलने की कोशिश करते हैं इससे राज्य की राजनीति तल्ख हो सकती है। यह राजनीति सबसे ज्यादा कांग्रेस को परेशान करेगी। क्योंकि कांग्रेस झामुमो के साथ सत्ता में है। इस कवायद से कांग्रेस समर्थक नाराज हो सकते हैं। इस कारण कांग्रेस मुख्यमंत्री पर दबाव बनाएगी। नतीजतन, मुख्यमंत्री का सिरदर्द बढ़ेगा। 


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