शिव का अपमान होते देख माता सती यज्ञकुंड में कूद कर दी थी जान
मटकुरिया स्थित श्रीश्री 1008 बाबा भूतनाथ मंदिर की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन मंगलवार को कथाव्यास बाबा श्री महर्षि जी महाराज ने भगवान शिव व माता सती की कथा को आगे और विस्तार पूर्वक बताया।
जासं, धनबाद: मटकुरिया स्थित श्रीश्री 1008 बाबा भूतनाथ मंदिर की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन मंगलवार को कथाव्यास बाबा श्री महर्षि जी महाराज ने भगवान शिव व माता सती की कथा को आगे और विस्तार पूर्वक बताया। उन्होंने मौजूद श्रद्धालुओं ने कहा कि भगवान शिव की धर्मपत्नी माता सती ने अपने पिता के मुख से भगवान शिव का अपमान सुनकर उनके द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। माता सती और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठे थे तभी माता सती ने बहुत सारे विमानों को आकाश मार्ग से जाते हुए देखा। विमानों में देवता विराजमान थे। देवताओं ने कहा कि राजा दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़ा यज्ञ कराया है और वह उसमें भाग लेने के लिए जा रहे हैं। माता सती ने भगवान शिव से भी यज्ञ में चलने के लिए कहा। भगवान शिव ने कहा कि राजा दक्ष ने उन्हें यज्ञ में भाग लेने का निमंत्रण नहीं दिया है। इसलिए वह नहीं जाएंगे। लेकिन माता सती नहीं मानी और वह भगवान शिव से यज्ञ में जाने के लिए जिद करने लगी। माता सती को भगवान शिव ने काफी मना किया। लेकिन वह नहीं मानी माता सती जब यज्ञ में पहुंची तो वहां पर उनके पिता राजा दक्ष प्रजापति ने माता सती पर ध्यान नहीं दिया और सभी देवताओं के सामने भगवान शिव का अपमान करने लगे। भगवान शिव का अपमान होते देख माता सती को बहुत दुख हुआ और उन्होंने यज्ञकुंड की अग्नि में कूद कर अपनी जान दे दी। इसके बाद भगवान शिव के गण ने यज्ञ को तहस नहस कर दिया और राजा दक्ष की गर्दन काट दी। यह स्थान आज भी शक्तिपीठ के नामों से जाने जाते हैं।