कितना-कितना पानी... संजो लेंगे तो संजीवनी बन जाएंगी बारिश की बूंदें
तालाब झील कुएं जैसे सतह के अन्य जलस्रोत भी प्रदूषण उपेक्षा व कुप्रबंधन के शिकार रहे हैं। दूसरी और वर्षा जल का जो अनमोल उपहार प्रकृति इन शहरों को हर साल देती है।
धनबाद, जेएनएन। बढ़ती आबादी की जरूरतों और अंधाधुंध बहुमंजिली इमारतों के कारण कोयलांचल में हो रही वैध और अवैध बोरिंग के चलते भूमिगत जलस्तर का दोहन तो खूब हो रहा है, पर उसके रिचार्ज के पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे। इसके चलते विभिन्न शहर जलसंकट झेल रहे हैं। नदियों के किनारे बसे आबादी वाले क्षेत्रों ने प्राकृतिक जलस्रोत को इतना दोहित व प्रदूषित किया है कि आज ये नदियां और तालाब कोयलांचल की प्यास नहीं बुझा पा रहीं। तालाब, झील, कुएं जैसे सतह के अन्य जलस्रोत भी प्रदूषण, उपेक्षा व कुप्रबंधन के शिकार रहे हैं।
दूसरी और वर्षा जल का जो अनमोल उपहार प्रकृति इन शहरों को हर साल देती है। उसे भी काफी हद तक व्यर्थ जाने दिया जाता है। जबकि वर्षा जल संचय पर पर्याप्त ध्यान दिए जाने से न केवल जलसंकट से जूझते कोयलांचल के लोग अपनी तत्कालीन जरूरतों के लिए पानी जुटा पाएंगे बल्कि इससे भूमिगत जल भी रिचार्ज हो सकेगा। इसलिए जरूरी है कि शहरों के जल प्रबंधन में हर संभव तरीके से बारिश की बूंदों को संजोकर रखने को प्राथमिकता मिले।
तालाब, कुएं, झीलें आदि परम्परागत जल स्रोतों की ऐसी समृद्ध विरासत रही हैं जो सदियों से वर्षा जल को संजोती रही और भूमिगत जल स्तर को रिचार्ज करती रही। अंधाधुंध शहरीकरण और नागरिकों की लापरवाही व प्रशासनिक उपेक्षा ने इन जल स्रोतों के साथ खिलवाड़ किया है। यहां तक कि कई स्रोत अब मृतप्राय हो गए हैं। इन जल स्रोतों को भरकर उन पर निर्माण कार्य हुए। कई जलस्रोत तो कचरे का गडढा मानकर कूड़े से भर दिए गए, कई अवैध कब्जों का शिकार हुए। मिट्टी-गाद भर जाने से उनकी जल ग्रहण क्षमता समाप्त हो गई और समय के साथ-साथ टूट-फूट गए। हमें पानी के दीर्घकालिक संकट से उबरने की तैयारी करनी होगी और इनमें से कई परम्परागत जलस्रोतों को आज पुनर्जीवित किया जा सकता है। बारिश की हर बूँद प्रकृति का आशीर्वाद जिसके संचय की समृद्ध संस्कृति को सजीव किया जा सकता है।
सुझाव
- वर्षा जल संचयन के लिए सामूहिक अभियान चलाना होगा। इसके प्रति लोगों को जागरूक करना होगा।
- अपार्टमेंट व घरों में आवश्यक है रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
- छोटे-छोटे डैम का निर्माण करना होगा।
- अभियान चलाकर जल की बर्बादी न हो इसके प्रति लोगों को जागरूक करना होगा।
- जल को आवश्यकता के हिसाब से ही खर्च करना होगा
अरुण कुमार रायः कोयलांचल ही नहीं बल्कि झारखंड के लिए दामोदर जीवन रेखा है। दामोदर बचाओ अभियान से जुड़े अरुण कुमार राय ने बताया कि जल संचयन के तीन महत्वपूर्ण उपाय हैं। पहला नदी जल संचयन, दूसरा वर्षा जल संचयन तथा तीसरा भूमिगत जल संचयन। दामोदर का का उद्गम स्थान खेलारी के पास भोदा पहाड़ है। दामोदर कोयलांचल से होते हुए हुगली नदी में मिलती है। दामोदर काफी प्रदूषित हो गया था लेकिन इसे बचाने और प्रदूषण को कम करने की मुहिम चलाई गई। सकारात्मक नतीजा सामने आया। आज दामोदर का प्रदूषण इतना कम हुआ है कि दामोदर के आसपास रहने वाले लोग इसके जल का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। डीप बोरिंग जिसके कारण जल की समस्या तेजी से बढ़ रही है साथ ही भू प्रदूषण भी बढ़ रहा है जो भविष्य के लिहाज से काफी खतरनाक है। तीसरा वर्षा जल संचयन है लेकिन इसके प्रति लोगों में जागरूकता नहीं है। उन्हें जागरूक करना होगा।
इंद्रेश कुमार (तकनीकी प्रबंधक माडा): यदि जल की समस्या से निजात पाना है तो वाटर हार्वेस्टिंग आवश्यक है। इसके लिए माडा में प्रावधान ही नहीं बल्कि जुर्माना भी है। बगैर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नक्शा भी पास नहीं होगा। बावजूद इसके लोग जुर्माना देना पसंद करते हैं लेकिन अपने घर या अपार्टमेंट में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाना आवश्यक नहीं समझते। प्रति व्यक्ति औसत 135 लीटर जल की खपत है लेकिन सप्लाई के बाद भी प्रति व्यक्ति को महज 40 से 50 लीटर जल ही मिल पाता है। इस आवश्यकता को हार्वेस्टिंग सिस्टम से ही पूरा किया जा सकता है।
अमरेंद्र कुमार वर्मा (मत्स्य प्रसार अधिकारी): जल का संचयन आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। यदि जल का संचयन नहीं किया गया तो आने वाले समय में इस संकट से उबरना काफी मुश्किल हो जाएगा। जल संचयन का सबसे कारगर तरीका वर्ष जल संचयन है। जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होकर इसका उपयोग करना होगा तभी भूमिगत जलस्तर को न केवल बेहतर कर सकेंगे बल्कि अपनी जरूरतों को भी पूरा कर सकेंगे।
मजाहिद अंसारी (मत्स्य अधिकारी): जल के गिरते स्तर से गंभीर संकट पैदा हो रहा है। इससे न केवल मनुष्य बल्कि जीव जंतु भी प्रभावित हो रहे हैं। जल की समस्या का सीधा प्रभाव मत्स्य पालन पर पड़ रहा है। यदि लोग जागरूक नहीं हुए तो आने वाले समय में उन्हें तो समस्या का सामना करना ही पड़ेगा मछलियां भी दुर्लभ हो जाएंगी।
ललन कुमार मिश्रा (सीएमपीएफ): वर्षा जल संचयन करने के लिए न केवल आम लोगों बल्कि सरकारी महकमे को भी इस दायरे में लाना होगा। अस्पताल, सरकारी विभाग सभी जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उपयोग करना होगा ताकि भूजल स्तर को बढ़ाया जा सके।
अजय नारायण लाल: शहर की बढ़ती आबादी के कारण भूजल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है जो चिंता का विषय है। करीब 70 प्रतिशत लोगों को पता हीं नहीं है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग क्या है। प्रशासन को चाहिए कि जल स्तर को बढ़ाने और आम लोगों को इससे निजात दिलाने के लिए छोटे-छोटे डैम बनाने की आवश्यकता है।
सोहराब खान: आज के समय में जल की समस्या तेजी से बढ़ रही है। 28 लाख की आबादी वाले इस शहर में जल संचयन के प्रति लोगों को जागरूक होना होगा। रेन वाटर हार्वेस्टिंग ही एक ऐसा कारगर उपाय है जिसके माध्यम से जल का संचयन कर जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है।
मदन मोहन त्वरण: गांव में कुएं तथा तालाब में पानी का नहीं होना चिंता का विषय है। ग्रामीणों को पता ही नहीं है कि जल का संचयन कैस किया जाता है। इस से निजात पाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूक करना होगा।
डॉ. डीबी सिंह: माडा पहल कर रेन वाटर हार्वेस्टिंग कराने के प्रति जागरूक करें। वहीं जल संचयन के लिए स्कूली स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक बच्चों को इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए ताकि इसका व्यापक असर हो।
सुनील कुमार उरांवः जल संचयन के लिए पेड़ पौधा जरूरी है। ऐस पौधों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए जिससे भूजल स्तर को बढ़ाया जा सके। पेड़ पौधों के नहीं रहने के कारण बारिश समय पर और बेहतर ढंग से नहीं हो पाता है।
बीएमएम रावः जागरूकता के अभाव में लाखों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यदि लोगों को इसके महत्व और भविष्य में होने वाली समस्याओं के बारे में बताया जाए तो शायद इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे और काफी हद तक इस समस्या का समाधान हो पाएगा।
मनोरंजन सिंहः जल की समस्या आज के समय में काफी गंभीर है। यदि समय पर नहीं चेता गया तो आने वाले दिनों में इसके भयंकर परिणाम सामने आएंगे। गांव से लेकर शहर तक और बच्चे से लेकर बड़ों तक सभी को जागरूक होना होगा और इसके लिए ठोस कदम उठाना होगा नहीं तो समस्या गंभीर हो जाएगी।