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झारखंड में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल से गरमाएगी संताल परगना की राजनीति

दुमका से सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और उनकी पार्टी झामुमो की सत्ता के गलियारे में हनक की जमीनी ताकत संताल परगना की जमीन से ही मिलती है।

By Edited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 11:24 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 02:27 PM (IST)
झारखंड में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल से गरमाएगी संताल परगना की राजनीति
झारखंड में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल से गरमाएगी संताल परगना की राजनीति

धनबाद, जेएनएन। भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लगने के बाद झारखंड की राजनीति तपिश अचानक से तेज हो गई है। इस तपिश से संताल परगना प्रमंडल भी अछूता नहीं है। आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में संताल परगना टेनेंसी एक्ट और पेसा कानून के आसरे ही अब तक वोट की राजनीति सधती रही है। तीन लोकसभा और 18 विधानसभा सीटों वाले संताल परगना प्रमंडल को झामुमो का अभेद दुर्ग माना जाता रहा है।

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दुमका से सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और उनकी पार्टी झामुमो की सत्ता के गलियारे में हनक की जमीनी ताकत संताल परगना की जमीन से ही मिलती है। हालांकि मांझी और मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक पर प्रभुत्व रखने वाले झामुमो के ठीक सामने भाजपा है और भाजपा झामुमो के अभेद दुर्ग को हरहाल में भेदने की जुगत में है। इसके लिए भाजपा के रणनीतिकार संताल परगना में लगातार पैनी निगाह बनाए हुए हैं। दूसरी ओर झामुमो अपने अभेद दुर्ग को बचाने की खातिर न सिर्फ अपने प्रभुत्व वाले वोट बैंक को सहेजने की कोशिश में है बल्कि भाजपा को शिकस्त देने के लिए भाजपा विरोधी तमाम दलों से दोस्ती की गांठ मजबूत करने में आगे-आगे चल रहा है।

बहरहाल, उद्योग-धंधा से विहीन संताल परगना में एक बार फिर से भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल की आड़ में राजनीतिक दल नूरा-कुश्ती के लिए ताल ठोंकने को तैयार है। भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के विरोध और इसे वापस करने की मांग पर झामुमो के नेतृत्व में तमाम विपक्षी दल पांच जुलाई को झारखंड बंद का एलान कर चुके हैं। इससे पूर्व इस मुद्दे पर इनके द्वारा चरणबद्ध आंदोलनकी शुरुआत होगी। इससे इतर सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों और भूमि अधिग्रहण बिल को संताल परगना के विकास के लिए सबसे अहम निर्णय बता कर अपनी राजनीति साधने की जुगत में है।

भाजपा की मंशा है कि विकास के आसरे संताल परगना की जनता को न सिर्फ अपने प्रभाव में लिया जाए बल्कि जनता यह भी समझे कि इस निर्णय से यहां के आदिवासी व मूलवासी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। बहरहाल, राजनीतिक दलों के इस दांव-पेच के बीच एक बात तो तय है कि आने वाले दिनों में इन मुद्दों पर संताल परगना की राजनीति गरमाना तय है क्योंकि पूर्व में यहां ¨जदल, आरपीजी और कई पावर प्लांट कंपनियों को इसलिए हाथ पीछे खींचना पड़ा क्योंकि यहां इनके लिए जमीन अधिग्रहण में पेच फंस गया था। जाहिर है इस मुद्दा के गरमाने के साथ आने वाले दिनों में यहां की राजनीति भी तीखी होगी।

संताल परगना में दलीय स्थिति
लोकसभा
तीन सीट जिसमें दो पर झामुमो और एक पर भाजपा का कब्जा
नाम - सांसद - पार्टी
दुमका - शिबू सोरेन - झामुमो
राजमहल - विजय हांसदा - झामुमो
गोड्डा - निशिकांत दुबे - भाजपा
विधानसभा
18 सीट जिसमें भाजपा सात और जेवीएम का एक विधायक जोड़कर आठ, झामुमो छह, कांग्रेस तीन और जेवीएम पहले दो और अब एक सीट पर काबिज
नाम - विधायक - पार्टी
दुमका - डॉ.लुईस मरांडी - भाजपा
जामा - सीता सोरेन - झामुमो
नाला - रविंद्रनाथ महतो - झामुमो
जामताड़ा - इरफान अंसारी - कांग्रेस
सारठ - रणधीर सिंह - झाविमो लेकिन अब भाजपा
शिकारीपाड़ा- नलिन सोरेन - झामुमो
मधुपुर - राजपलिवार - भाजपा
देवघर - नारायण दास - भाजपा
जरमुंडी - बादल पत्रलेख - कांग्रेस
गोड्डा - अमित मंडल - भाजपा
महगामा - अशोक भगत - भाजपा
पोडैयाहाट - प्रदीप यादव - झाविमो
राजमहल - अनंत ओझा - भाजपा
बरहेट - हेमंत सोरेन - झामुमो बोरियो
ताला मरांडी - भाजपा पाकुड़
आलमगीर आलम - कांग्रेस
लिट्टीपाड़ा - साइमन मरांडी झामुमो
महेशपुर - प्रो.स्टीफन मरांडी - झामुमो


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