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1932 का खतियान नहीं, स्थानीय नीति पर मिलेगा आरक्षण

नियोजन नीति में बदलाव के लिए स्थानीय एवं नियोजन समिति ने जो अनुशंसा की है, उसमें कहीं भी 1932 के खतियान का जिक्र नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Apr 2018 10:30 AM (IST)Updated: Thu, 19 Apr 2018 10:30 AM (IST)
1932 का खतियान नहीं, स्थानीय नीति पर मिलेगा आरक्षण
1932 का खतियान नहीं, स्थानीय नीति पर मिलेगा आरक्षण

मृत्युंजय पाठक, धनबाद: झारखंड की नियोजन नीति में बदलाव लाने के लिए मंत्री अमर बाउरी के नेतृत्व में स्थानीय एवं नियोजन समिति ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को जो अनुशंसा की है, उसमें कहीं भी 1932 के खतियान का जिक्र नहीं है। राज्य सरकार के अधीन नियुक्ति के लिए सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आरक्षण का लाभ खतियानधारियों को देने की अनुशंसा की गई है। इसमें नया कुछ भी नहीं है, क्योंकि यह व्यवस्था पहले से लागू है। इसी आधार पर जाति प्रमाण पत्र निर्गत होता है और आरक्षण मिलता है।

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स्थानीय और नियोजन समिति के सदस्य धनबाद के भाजपा विधायक राज सिन्हा कहते हैं कि समिति ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को जो चार पन्ने में अनुशंसा की है, उसमें 1932 के खतियान का एक बार भी जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा है कि समिति की अनुशंसा लागू होने स्थानीय नीति में कोई बदलाव नहीं होगा, क्योंकि झारखंड सरकार पहले ही स्थानीय नीति लागू कर चुकी है। 1985 या इसके पूर्व से झारखंड में गुजर-बसर करने वाले स्थानीय हैं। मोटे तौर पर जो बदलाव होगा वह यह कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां अनुसूचित 13 जिलों की तरह शेष 11 जिलों में भी स्थानीय को ही मिलेगी। एक जिले के स्थानीय निवासी दूसरे जिले में जाकर नौकरी नहीं ले सकेंगे। जैसे-धनबाद के लोगों को बोकारो में नौकरी नहीं मिलेगी और ना ही बोकारो के लोग धनबाद में नौकरी के लिए आवेदन कर सकेंगे। यही मांग नियोजन नीति पर सवाल उठाने वाले कर रहे थे।

सिन्हा ने बताया कि कमेटी ने मुख्यमंत्री को अनुशंसा कर दी है। अनुशंसा अनुपालन का निर्णय झारखंड सरकार को लेना है। झारखंड सरकार पहले महाधिवक्ता से राय लेगी, ताकि अनुशंसा लागू करने के बाद किसी तरह की कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े।

अब 1932 का खतियान कानूनन मान्य नहीं: झारखंड में राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा बार-बार 1932 के खतियान का मुद्दा उछाला जाता है, लेकिन, झारखंड में नया कैडेस्ट्रल सर्वे (भूसंपत्ति सर्वेक्षण) अमल में आने के बाद 1932 के खतियान की कोई कानूनी मान्यता नहीं रह गई है। यूं तो हर 10 साल पर भूसंपत्ति सर्वेक्षण का प्रावधान है। झारखंड क्षेत्र में यह सर्वे आखिरी बार 1980-85 के आस-पास हुआ था। यही सर्वे शहरी क्षेत्रों को छोड़कर झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाशित कर लागू किया जा चुका है। झारखंड में राजस्व विभाग के तमाम काम ऑनलाइन हो रहे हैं। इसके लिए बनाए गए वेबसाइट झारभूमि में सर्वे के आधार पर दस्तावेज इंट्री है। ग्रामीण क्षेत्रों में हाल सर्वे के आधार पर ही जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो रहा है। ऐसे में 1932 का खतियान कोई मायने नहीं रखता है। हां, झारखंड के शहरी क्षेत्रों में 1932 के खतियान के आधार पर ही जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो रहा है, जहां कैडेस्ट्रल सर्वे नहीं हुआ है।


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