जानें-एक मामूली रिवाल्वर से रणधीर ने कैसे किया था एके-47 से लैस खालिस्तानी आतंकियों का मुकाबला
नई पीढ़ी के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि कौन थे-शहीद रणधीर वर्मा। वर्मा भारतीय पुलिस सेवा के ऐसे पुलिस अधिकारी थे जो खुद ही मोर्चा लेने में भरोसा रखते थे।
धनबाद, मृत्युंजय पाठक। आज के दौर में जब महानगरों से लेकर छोटे-बड़े शहरों में अतिवादी और आतंकवादी हमलों का खौफ हर किसी के दिलों-दिमाग में बना रहता है, ऐसे समय में धनबाद को याद आता है अपने हीरो की शहादत। हीरो यानी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रणधीर वर्मा। रणधीर वर्मा 29 वर्ष पहले खालिस्तानी आंतकवादियों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। आज जबकि भारतीय पुलिस सेवा में जान हथेली पर लेकर देश हित में काम करने वाले अधिकारियों का सर्वथा अभाव है और संकट के समय सिपाहियों को मोर्चे पर रख उनका आत्मबल बढ़ाने वाले पुलिस अधिकारियों की तलाश होती है, ऐसे में रणधीर वर्मा जैसे अधिकारी याद आते हैं।
कौन थे रणधीर वर्मा : नई पीढ़ी के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि कौन थे-शहीद रणधीर वर्मा। वर्मा भारतीय पुलिस सेवा के ऐसे पुलिस अधिकारी थे जो खुद ही मोर्चा लेने में भरोसा रखते थे। इसलिए शहादत के इतने सालों बाद भी उनके यश की गाथाएं सबकी जुबान पर है। मनुष्य की महत्ता इसी में है कि समाज के लिए उस व्यक्ति की क्या प्रासंगिकता है। जिस व्यक्ति की प्रासंगिकता समय के साथ बढ़ती जाए, वह महान व्यक्ति माना जाता है। धनबाद के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अमर शहीद रणधीर प्रसाद वर्मा इस कसौटी पर पूर्णत: खरे उतरते हैं। देश और समाज के लिए जो तन, मन और धन से काम करते हैं, समाज में उसकी प्रासंगिकता बनी रहती है। तन, मन और धन में तन का स्थान सबसे ऊंचा होता है। तन से ही मन का काम और उसका सार्थक उपयोग हो पाता है। धन तो तन से ही उत्पन्न होता है। इस नाते जो देश और समाज के लिए तन तक त्याग करने का हौसला रखता है, समाज में उसकी सर्वाधिक उपयोगिता है।
मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित : तीन जनवरी 1991 को धनबाद स्थित बैंक आफ इंडिया की हीरापुर शाखा को लूटने पंजाब से आए दुर्दांत खालिस्तानी आतंकवादियों से अकेले मोर्चा लेते हुए पुलिस अधीक्षक के पद पर आसीन रणधीर प्रसाद वर्मा ने मृत्यु को वरण किया और वीरगति पाई। एक मामूली रिवाल्वर से एके 47 एसाल्ट राइफल का मुकाबला करना एक हिम्मतवर का ही निर्णय हो सकता था। इस हिम्मत के पीछे थी वह कर्तव्यनिष्ठा, जिसके फलस्वरूप आतंकवादियों में से एक ने तत्काल प्राण छोड़ दिए तथा अन्य के पांव उखडऩे के कारण झारखंड क्षेत्र में आतंकवादियों के पैर जमाने की एक बड़ी साजिश विफल हो गई थी। वर्मा की मौत एक तेजस्वी परमवीर योद्धा की तरह शानदार ढ़ंग से हुई। राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उन्हें विशिष्ट वीरता सम्मान से सम्मानित किया, जहां उद्घोषित हुआ कि यह राष्ट्र का सपूत भारतीय पुलिस सेवा में एक अनोखा उदाहरण है, जिसकी कर्तव्यपरायणता और साहस की मिसाल भारतीय पुलिस सेवा के पदाधिकारियों में अब तक नहीं मिली। उन जैसा देहदानी पुलिस विभाग में पहले कोई नहीं हुआ था। इसलिए भारत सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया तथा उनके सम्मान में डाक टिकट तक जारी किया।
साधारण परिवार से थे, जहां गए छा गए: 3 जनवरी 1952 को बिहार के सुपौल जिले के जगतपुर गांव में जन्मे रणधीर वर्मा एक प्रतिभाशाली छात्र थे, जो बीए (आनर्स) की परीक्षा पास कर भारतीय पुलिस सेवा के अंग बने। रणधीर वर्मा ने पुलिस सेवा की नौकरी 1974 में अपनाई। उन्होंने विवेक, कर्तव्यपरायणता तथा हिम्मत के बल पर किसी के आगे न झुकने वाला एक निर्भीक व्यक्तित्व बनाया, जो उत्ताप, उत्तेजना, उद्वेग के विकारों से वंचित था। पर निर्णय में कठोर था। उनके प्रभावशाली क्रिया-कलापों के कुछ नमूने प्रारंभ में ही सरकार के सामने आए। अविभाजित बिहार सरकार ने उन्हें बेगूसराय जैसे अपराधग्रस्त जिले का पुलिस अधीक्षक बनाया था। वर्मा ने वहां पदस्थापित होते ही माफिया कामदेव सिंह के आतंक से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए अभियान चलाया। जब रणधीर रण में निकले तो विजयी उनके हाथ लगी। कामदेव सिंह की लाश गिरते ही उसके गिरोह का गरूर ध्वस्त हो गया। वर्मा जहां-जहां पदस्थापित हुए अपने कार्यों के लिए जनता के हृदय समाहित होते गये।
अयोध्या आंदोलन में बहाल रखी शांति-व्यवस्थाः अयोध्या आंदोलन की आग में जब देश भर में साम्प्रदायिक सौहार्द छिन्न-भिन्न हुआ तो धनबाद ने सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की। इसका श्रेय रणधीर वर्मा को जाता है। 3 जनवरी 1991 का सूर्योदय एक महान अपकुशन का संदेशवाहक बना। वर्मा अपने दफ्तर में थे। तभी उन्हें बैंक पर आक्रमण की सूचना मिली। वे व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता किए बगैर अपने अंगरक्षक के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए। आतंकवादियों को ललकारते हुए पहली मंजिल स्थित बैंक की सीढिय़ों पर चढऩे लगे। गोलियां चलीं। घायल रणधीर वर्मा ने रिवाल्वर से ही दो आतंकवादियों को मार गिराया। ....और खुद वीरगति को प्राप्त हुए। उनके 28 शहादत दिवस पर आज धनबाद याद कर रहा है।