जीवन जीने का कला सिखाती है रामचरितमानस
जगजीवन नगर स्थित मानस मंदिर में मानस प्रचार समिति धनबाद का स्वर्ण जयंती समारोह के पांचवें दिन मंगलवार को प्रवचन देते हुए शालिनी त्रिपाठी ने कहा के रामचरितमानस जीवन जीने की कला सिखाती है अन्यथा हममें और पशुओं में कोई अंतर नहीं होता।
जासं, धनबाद : जगजीवन नगर स्थित मानस मंदिर में मानस प्रचार समिति धनबाद का स्वर्ण जयंती समारोह के पांचवें दिन मंगलवार को प्रवचन देते हुए शालिनी त्रिपाठी ने कहा के रामचरितमानस जीवन जीने की कला सिखाती है, अन्यथा हममें और पशुओं में कोई अंतर नहीं होता। विवेकवान को मनुष्य और विवेक हीन को पशु कहते हैं। संसार को मानव धर्म सिखाने हेतु प्रभू का प्राकट्य इस धरा धाम पर हुआ। प्रभु या तो धर्म के लिए आते हैं, अथवा प्रेम के लिए आते हैं, प्रभु के प्राकट्य के पश्चात भगवान उनके दर्शन हेतु काकभुशुंडि जी महाराज के साथ गए। काकभुशुंडि जी महाराज एक ऐसे भक्त हैं, जिनकी दृढ़ भक्ति है और हमारी जड़ भक्ति होती है। जबकि भक्ति में दृढ़ता होनी चाहिए। प्रभु शिक्षा ग्रहण के लिए गुरु के पास गए। जिससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि ज्ञान प्राप्त करने हेतु हमें गुरु की आवश्यकता होती है। विश्वामित्र भगवान राम को दशरथ से मांगने आए, क्योंकि संत भगवान से नहीं मांगता, भगवान को ही मांग लेता है। चाहते तो विश्वामित्र जी समस्त राक्षसों का वध एक संकल्प मात्र से कर देते। क्योंकि वह समस्त विधाओं के ज्ञाता थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि संत सुधार कर्ता होता है संघारकर्ता नहीं होता। प्रवचन में मुख्य रूप से सिफर के निदेशक पीके सिंह, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेत्री रागिनी सिंह, संजीव अग्रवाल, मानस प्रसून, उज्जवल तिवारी उपस्थित थे। मौके पर मानस प्रचार समिति के सचिव शिवपूजन तिवारी, मिल्टन पार्थ सारथी, बृजमोहन शर्मा, कमलेश्वरी प्रसाद सिन्हा, योगेंद्र मिश्रा, ओमकार पांडेय, गिरीश देव तिवारी, राज नारायण पाठक, आरएन ओझा, शिव प्रसाद प्रसाद, धीरज कुमार, विध्याचल पांडेय, नरेंद्र कुमार ठाकुर, रामजस अग्रवाल, भीम प्रसाद, हरिशंकर प्रसाद, रामजी सिंह, उमेश सिंह, निशांत नारायण, भागवत नारायण लाल, हरिद्वार दुबे सहित अनेकों श्रद्धालु उपस्थित थे।