Weekly News Roundup Dhanbad: रेल साहब अपने पर आ गए कुछ भी करवा सकते हैं
फिजूलखर्ची बंद करने को रेल मंत्रालय लगातार कड़े निर्णय ले रहा है। कर्मचारियों को मिलने वाले ओवरटाइम और टीए पर पाबंदियां लग गयी हैं। उनका मुख्यालय छोडऩा भी लगभग मना हो चुका है।
धनबाद [ तापस बनर्जी ]। रेल के मुखिया का भी अपना जलवा है। कहीं मेला रोक देते हैं, तो कहीं रास्ता रोक देते हैं। अपने पर आ गए तो मंदिर पर जेसीबी भी चलवा देते हैं। झूठ नहीं बिल्कुल सौ फीसद सच बयां कर रहे हैं। पहले रांगाटांड़ रेलवे कॉलोनी का एक रास्ता बंद कराया। कलेजे को फिर भी ठंडक न मिली तो दूसरे रास्ते पर ऊंची दीवार खड़ी कर दी। कॉलोनी का सूरत-ए-हाल जैसा भी हो मगर दीवार ऊंची बनाई गई है। अब बारी आई डीएवी स्कूल मैदान की। बच्चों के नाम पर अच्छा खासा खेल हो रहा था। कमाई तो बस पूछिए ही मत। दशहरा से दिवाली तक मौजा ही मौजा। मगर इस आमदनी पर भी बुलडोजर चलाने से बाज नहीं आये। और तो और पुराना बाजार के पास हनुमान जी छोटी सी कुटिया में विराजमान थे। कुटिया तहस-नहस कर दिया और हाथ जोड़ बोले, हे प्रभु, स्थान बदलिए।
दफ्तर चकाचक, कॉलोनियां बदसूरत
फिजूलखर्ची बंद करने को रेल मंत्रालय लगातार कड़े निर्णय ले रहा है। कर्मचारियों को मिलने वाले ओवरटाइम और टीए पर पाबंदियां लग गयी हैं। उनका मुख्यालय छोडऩा भी लगभग मना हो चुका है। क्योंकि इससे भी उन्हें भत्ता देना पड़ता है। वजह है फंड की कमी। यही रोना रो कर लगातार बदसूरत होती रेल कॉलोनियों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। मगर जब साहब का दफ्तर चमकाना हो तो ऐसा लगता है जैसे कुबेर खुद खजाना खोल कर खड़े हो गए हैं। अफसर बदलते ही उनके दफ्तरों का लुक बदल जा रहा है। जिसकी जरूरत नहीं, वह भी मिल रहा है। अब तो डीआरएम बिल्डिंग की सूरत बदलने के लिए चार करोड़ खर्च की प्लानिंग है। कॉलोनियों की सूरत बदलने के लिए अफसरों की फौज ने छह महीने पहले दौरा भी किया। प्लानिंग बनी। पर अब तक फाइल में ही कैद होकर रह गई।
बंदूक छोड़ो, पकड़ो चाभी
का बताएं सर, कोचिंग डिपो में डैलिये चोरी हो रहा है। लाल कोचवा खड़ा रहता है और चोरवन केबल उड़ा लेता है। एकनी के कुछ उपाय करे पड़ेगा...। फल्तुआ काम छोड़ो और पहले इ बताओ कि चाभी रखे हो कि नहीं...। जी सर, इ का पॉकेटे में है। ऐसे जुमले आरपीएफ पोस्ट में गाहे-बगाहे सुनाई देंगे। वजह साफ है। लाल रंग की एलएचबी कोच पुराने नीले डब्बों की टे्रन से कई मायनों में अलग है। किसी यात्री ने चेन पुलिंग कर दी तो टे्रन बगैर चाभी घुमाए एक इंच नहीं सरकेगी। अब गार्ड बार-बार उतर कर चाभी नहीं घुमा सकते तो यह ड्यूटी रेलवे के सुरक्षा बलों को थमा दी गई है। कल तक हथियार लेकर सीना तानने वाले अब चाभी थाम कर परेड कर रहे हैं। आरपीएफ के साहब ने थोक में चाभी मंगवा लिया है और रंगरूटों को इसकी ट्रेनिंग भी दी गई है।
स्टॉल वालों पर गिरी बिजली
अरे भैया, ये केक तो सूखकर कड़ा हो गया है, फ्रिज खराब है क्या। नहीं मैडम, लाइट की प्रॉब्लेम है। प्री-पेड मीटर तो लगवा लिया है, मगर बिजली रेलवे की मर्जी से ही आती-जाती है। जंक्शन पर एक पखवारे से खाने-पीने की चीजें बेचने वाले हैरान-परेशान हैं। ग्राहकों की डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे हैं। आखिर माजरा क्या है। रेलवे उन्हें बार-बार बिजली के झटके क्यों दे रही है। पता चला कि कुछ स्टॉल संचालक ऐसे हैं जिनका बिजली का बिल बकाया है। उन पर रेलवे की बिजली गिर रही है। मगर इसके झटके उन्हें भी लग रहे हैं जो पूरा बिल भर चुके हैं। कई दफा हंगामा के बाद डीआरएम ऑफिस तक भी बात पहुंची है, पर समाधान नहीं निकला। आखिर कर्मचारी क्या करें। कनेक्शन एक है। बिजली काटते तो बकाएदारों की है पर अंधेरा सब के सब स्टॉल पर छा जाता है।