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धान के बीजों को सहेजा तो पेटेंट सा इनाम

बलियापुर में कुछ किसानों ने बाप दादा के जमाने के धान के बीजों की शुद्धता को बचाए रखा। इन बीजों की खासियत से आम कृषक अनजान थे और वैज्ञानिक भी।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 18 Dec 2018 10:41 AM (IST)Updated: Tue, 18 Dec 2018 10:41 AM (IST)
धान के बीजों को सहेजा तो पेटेंट सा इनाम
धान के बीजों को सहेजा तो पेटेंट सा इनाम

धनबाद, राजीव शुक्ला। देश की कोयला नगरी का बलियापुर प्रखंड। किसानी इलाका। यहां परंपरागत खेती करने वाले किसानों के बीजों का पेटेंट हो चुका है। ये ऐसे किसान हैं जिन्होंने उन्नत बीज तैयार करने के वैज्ञानिक सिद्धांत की न पढ़ाई की है, न प्रयोगशाला में दिन-रात गुजारी है। मगर, उनके बीज इसलिए खास है क्योंकि उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अपने धान के बीजों को संरक्षित रखा है।

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भारत सरकार के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने बलियापुर के छह किसानों के धान के बीजों की खासियत को माना है। किसानों के नाम बीज का निबंधन प्रमाणपत्र निर्गत किया है। यह प्रमाणपत्र पेटेंट के समकक्ष है। कोई भी बीज उत्पादक कंपनी यदि इन मान्यता प्राप्त बीजों के प्रयोग से नए संकर  (हाइब्रिड) बीज तैयार करती है तो संबंधित किसान को रॉयल्टी देनी होगी।

यह मसला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिले खेती के ज्ञान का है। बलियापुर में कुछ किसानों ने बाप दादा के जमाने के धान के बीजों की शुद्धता को बचाए रखा। इन बीजों की खासियत से आम कृषक अनजान थे और वैज्ञानिक भी। बलियापुर में कृषि विज्ञान केंद्र है। यहां के वैज्ञानिक किसानों के निरंतर संपर्क में रहते हैं। आदिकाल से बीजों के गुण सहेज इन किसानों को वैज्ञानिकों ने पहचान लिया। धान के बीजों की खूबियों की जांच कराई। इन्हें अगली जांच के लिए पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में भेजा गया। जांच में पाया गया कि धान के प्राचीन बीजों में खूबियां हैं। तब सभी बीजों का संबंधित किसान के नाम पर निबंधन किया गया।

इन बीजों में यह खासियत

किसान-गांव-गुणः गिरधारी महतो-दोलाबड़-धान के पौधों में रोग नहीं लगता है। कम पानी में अच्छी पैदावार होती है।सोनाली मंडल-सालपतरा-बेहद स्वादिष्ट। बिचाली को भी पशु चाव से खाते हैं। कम पानी की जरूरत है।

रंजीत मंडल-सालपतरा-फसल में कीड़े नहीं लगते। मीठा स्वाद है। 100 दिन में फसल तैयार हो जाती है।

परमेश्वर चौधरी-बलियापुर-कम पानी में धान की खेती होती है। इसके माड़ का स्वाद भी लजीज है।

प्यारे अली अंसारी-दूधिया-और धान की अपेक्षा इनके बीज से धान की पैदावार अधिक। 120 दिन में फसल तैयार।गोकुल रवानी-डोकरा-खेती में कम पानी की जरूरत। प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण रोग नहीं होते।

बेटे के नाम पर बीज का नामकरणः पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त  बीज का नामकरण अनिवार्य था। किसानों ने अपने बेटे या अन्य किसी नाम से बीज का नामकरण किया। सोनाली मंडल ने अपने धान के बीज की प्रजाति का नाम आकाश रखा है। आकाश उनके बेटे का नाम है। वे कहती हैं- आकाश धान बेजोड़ है। हमारे पूर्वज इस धान को उगाते थे। हमने उस धान का संरक्षण किया। रंजीत मंडल के बीज का नाम लाल धूसर है। गोकुल ने बीज को अपना नाम गोकुल ही दिया है। प्यारे अली अंसारी ने धूसरी सादा, परमेश्वर चौधरी ने कलम काठी और गिरधारी ने तुलसी बहाल नाम रखा है।

उन्नत बीजों के उत्पादन में सहायक होंगेः आनुवंशिकी के जनक ग्रेगर जान मेंडल ने आठ वर्ष के गहन शोध के बाद मटर के पौधे के गुणों का अगली पीढ़ी में जाने का अध्ययन किया था। शुद्ध बीजों से उत्पन्न पौधों में पर परागण से संकर बीज बनने का अध्ययन किया था। उनके निष्कर्ष से आज पौधों के उन्नत किस्म के बीज पैदा हो रहे हैं। अच्छे बीज तैयार करने के लिए विशिष्ट गुण वाले बीजों की जरूरत पड़ती है। पूर्वजों के ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज कर बीजों का संरक्षण करने वाले किसानों की श्रेणी में बलियापुर के ये छह किसान शामिल हो गए हैं।  

किसानों ने पूर्वजों द्वारा उगाए गए धान के बीजों का संरक्षण किया। पीढ़ी दर पीढ़ी के ज्ञान को सहेजा। इन बीजों की शुद्धता बरकरार रखी और अशुद्ध होने से बचाया। अनुभव के आधार पर अपनी धान की फसल लगाते समय इस बात का ध्यान रखा कि दूसरी प्रजाति के धान से उनके पौधों का परागण न हो। छह किसानों के बीजों का निबंधन प्रमाणपत्र निर्गत हो चुका है। कोई कंपनी इनके बीजों से धान के नए बीज तैयार करेगी तो कानूनन किसान रॉयल्टी के हकदार होंगे।  

- डॉ. आदर्श श्रीवास्तव, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, बलियापुर


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