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अगर ज्यादा से ज्‍यादा नौकरियां पैदा होंगी तो आरक्षण की नहीं होगी जरूरत

सरप्लस नौकरी मिले तो आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सोमवार को जागरण विमर्श में बीबीएमकेयू पीजी विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. मुनमुन शरण ने यह बात कही।

By Deepak PandeyEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 11:05 AM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 11:05 AM (IST)
अगर ज्यादा से ज्‍यादा नौकरियां पैदा होंगी तो आरक्षण की नहीं होगी जरूरत
अगर ज्यादा से ज्‍यादा नौकरियां पैदा होंगी तो आरक्षण की नहीं होगी जरूरत

जागरण संवाददाता, धनबाद: आरक्षण से ज्यादा अवसर पैदा करने पर काम होना चाहिए। जब नौकरियां नहीं होंगी तो आरक्षण का क्या फायदा। 20-25 वर्षों में नौकरी में कमी आई है। बिहार में ही 40-45 मिलें बंद हैं। इन्हें चालू कर दिया जाए तो कम से कम उस राज्य के लोग बाहर नहीं जाएंगे। सरप्लस नौकरी मिले तो आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। सोमवार को जागरण विमर्श में बीबीएमकेयू पीजी विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो. मुनमुन शरण ने यह बात कही।

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आर्थिक आरक्षण से क्या राजनीतिक हित के साथ सामाजिक हित भी सधेंगे, आर्थिक आरक्षण के औचित्य पर दैनिक जागरण की संपादकीय टीम के साथ विमर्श में प्रो. शरण ने कहा कि संविधान में दस वर्ष के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। इसके बाद राजनीतिक पार्टियां अपने हित के लिए इसे बढ़ाती गईं। यह जानने का किसी ने भी प्रयास नहीं किया कि आरक्षण के लाभान्वित का सामाजिक और आर्थिक उत्थान कितना हुआ। क्या सही तरीके से उस तबके का उद्धार हो सका है, यह देखना होगा।

अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका में आरक्षण नहीं है तो क्या वहां सामाजिक और आर्थिक तौर पर लोग सशक्त नहीं हैं। आरक्षण से ज्यादा जरूरी नौकरियां हैं। नौकरियां बढ़ेंगी तो आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी।

आरक्षण के सामाजिक हित साधे जाने के सवाल पर शरण ने कहा कि एक तरफ जातिगत समाज खत्म करने की बात करते हैं तो दूसरी ओर आरक्षण के जरिए जातिगत समाज को बढ़ावा देते हैं। पहले दस वर्षों के लिए आरक्षण लागू किया गया, उसके बाद इसकी समीक्षा करने की जहमत किसी पार्टी ने नहीं उठाई। इस आरक्षण को सही साबित करने का प्रयास नहीं किया गया। संसद या राजनीतिक दलों में आरक्षण क्यों लागू नहीं है? यहां भी तो आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। गरीब सवर्ण को दस फीसद आरक्षण देने से आर्थिक उत्थान होने से रहा। इसमें राजनीतिक स्वार्थ निहित है। वोट बैंक देखते हुए यह आरक्षण दिया गया है। अब इसका कितना फायदा या नुकसान होता है, यह भविष्य की बात है। यह आरक्षण सत्ता में आने के एक-दो वर्षों में ही देना चाहिए था, अभी तो ऐसा लग रहा है कि यह चुनावी हथकंडा है।

प्रो.शरण ने कहा कि एक आंकड़े के मुताबिक देश में पांच करोड़ लोग काम करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास काम नहीं है। इनके लिए रोड मैप बनाने की जरूरत है। समय-समय पर आरक्षण का अध्ययन करना चाहिए।  


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