'राजनीति में लाने होंगे सैद्धांतिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित बदलाव'
बदलाव के लिए नीतियों में बदलाव लाना होगा। सैद्धांतिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित बदलाव लाने होंगे। वोट किसे दें इसके पहले मनोवैज्ञानिक आकलन जरूरी है।
धनबाद, जेएनएन। राजनीतिक पार्टियां और उनके मुखियों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। राजनीतिक दलों के जनाधार भी अलग-अलग हैं। चुनावी साल में एक-दूसरे से नजदीकियां तो बढ़ा रहे हैं। पर प्रचार के दौरान उनके बीच का तालमेल ही बयां करेगा कि मोदी के मुकाबले महागठबंधन कितना मजबूत और कितनी कारगर होगा। इन सब के बीच बदलाव की भी बात होगी। पर मौजूदा वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में बदलाव कितना होगा, इस पर सवाल है। यह कहना है बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के पीजी राजनीतिशास्त्र विभाग प्रोफेसर डॉ. प्रवीण सिंह का। वह सोमवार को दैनिक जागरण के कार्यक्रम जागरण विमर्श में पहुंचे थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि बदलाव के लिए नीतियों में बदलाव लाना होगा। सैद्धांतिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित बदलाव लाने होंगे। वोट किसे दें इसके पहले मनोवैज्ञानिक आकलन जरूरी है।
पिछली की तुलना में मौजूदा सरकार में बदलाव तो हुए पर भ्रष्टाचार तब भी था और आज भी है। सरकार जाते ही उसके घोटाले उजागर होने लगते हैं।
उन्होंने कहा कि इस सरकार में स्वच्छता को लेकर की गई पहल महत्वपूर्ण है। गंदगी तो पहले भी थी, पर सरकार का ध्यान नहीं था। इस सरकार को इसे राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा बनाया। इसका प्रभाव भी दिख रहा है। काला जादू और सपेरों के देश वाली भावना बदली है। अब भारत को आइटी प्रोफेसनल वाले देश के रूप में पहचान रहे हैं। हालांकि नोटबंदी का निर्णय फ्लॉप रहा।
क्षेत्रीयता, जातिवाद, धर्म के प्रभाव के साथ-साथ गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी गुजारने वाले लोग आज भी बड़ी तादाद में हैं। इन सबका मनोवैज्ञानिक आकलन करने की आवश्यकता है। महागठबंधन इनमें बदलाव लाने में सक्षम होगा क्या, यह बड़ा सवाल है।