धनबाद का चूल्हा सात समुंदर पार बांट रहा वसुधैव कुटुंबकम की आंच, जानिए पूरी कहानी
प्रशांत के पिता सूरज उपाध्याय रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। मां मंजू उपाध्याय ब्यूटी पार्लर चलाती हैं। प्रशांत ने इंजीनियरिंग की। भाईचारे का संदेश देकर कुछ करने की तमन्ना थी।
By mritunjayEdited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 02:05 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 08:23 PM (IST)
धनबाद, बलवंत कुमार। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश पूरी दुनिया को भारत देता रहा है। भारत की इस छवि को यदि विदेशियों की मदद के नजरिए से देखा जाए तो भी हमारी कोई मिसाल नहीं। इसे इन दिनों यूनान के लेसबोस द्वीप पर साबित कर रहे हैं धनबाद के प्रशांत और उनके कनाडा निवासी मित्र बेन। लेसबोस में काफी देशों के लोग शरणार्थी के रूप में टेंट में रह रहे हैं। कड़ाके की ठंड के कारण तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है। ऐसे में इनके टेंट में गरमाहट के लिए प्रशांत ने बेन के साथ मिलकर प्रोटोटाइप स्टोव सह रूम हीटर बनाया है। प्रशांत और बेन 2017 के अंत में दुनिया को भाईचारे का संदेश देने के लिए इंडिया से स्कॉटलैंड की मोटरसाइकिल से यात्रा को पुणे से निकले थे।
धनबाद के अजंतापाड़ा निवासी प्रशांत के पिता सूरज उपाध्याय रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। मां मंजू उपाध्याय ब्यूटी पार्लर चलाती हैं। प्रशांत ने महाराष्ट्र से इंजीनियरिंग की। बचपन से ही दुनिया को भाईचारे का संदेश देकर कुछ करने की तमन्ना थी। इसी बीच 2016 में उन्होंने एक आर्ट फेयर का आयोजन पुणे में किया। इसमें बेन भी आया था। जो पुणे के युनाईटेड गर्ल्स कॉलेज में शिक्षक थे। दोनों का मकसद समाजसेवा था। बस बात बन गई। भारत से स्कॉटलैंड तक की यात्रा मोटरसाइकिल से करने का निश्चय कर लिया।
यूनान में रहते कई देशों के शरणार्थी : यूनान के लेसबोस में आफगानिस्तान, सीरिया, यमन, कैमरून समेत कई देशों के करीब 12000 लोग शरणार्थी के रूप में टेंट में रह रहे हैं। जब यहां अपनी यात्रा के दौरान प्रशांत व बेन पहुंचे तो इनको ठंड से ठिठुरते देखा। तब प्रशांत ने अपनी इंजीनियरिंग की प्रतिभा का प्रयोग करने का निर्णय लिया। एक प्रोटोटाइप स्टोव सह रूम हीटर बनाया। जो इन शरणार्थियों के लिए मददगार साबित हो रहा है। प्रशांत बताते हैं कि 15 जनवरी 2017 में महाराष्ट्र के पुणे से भारत से स्कॉटलैंड की मोटरसाइकिल यात्रा प्रारंभ की थी। मकसद भारत के विश्व बंधुत्व के संदेश का प्रसार करना था। चीन, अफगानिस्तान होते हुए हम दोनों यूनान के लेसबोस पहुंचे। वहां शरणार्थियों की हालत देखी तो उनकी मदद को रुक गए हैं। ये शरणार्थी गरीबी, अस्थिरता और उत्पीडऩ से तंग आकर अपना देश छोड़ चुके हैं। चार साल से ये लोग यहां रह रहे हैं। ...और प्रशांत ने बनाया ठंड से लडऩे के लिए स्टोव सह रूम हीटर : लेसबोस द्वीप पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर गया है। ऐसे में लोगों के पास अपने आप को गर्म रखने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है। प्रशांत और बेन ने लेसबोस के स्क्रैप यार्ड से मिली चीजों से एक ऐसा चूल्हा बना दिया जो इनके भोजन बनाने के साथ शिविरों को गर्म रखने में भी मदद कर रहा है। यह स्टोव सह रूम हीटर लोहे का बना है। इसमें बिजली की जरूरत नहीं। लकड़ी और खर-पतवार से इसे जलाया जा सकता है। खाना बनाने के बाद इसका ढक्कन बंद कर दें। विकिरण से निकलने वाली गर्मी से शिविर गर्म रहता है। शरणार्थी शिविर में करीब 6000 चूल्हों की आवश्यकता है। एक चूल्हा निर्माण पर करीब आठ सौ रुपये खर्च आता है।
दुनिया से शरणार्थियों की मदद की अपील : स्थानीय यूनानियों ने भी चूल्हे की सामग्री उपलब्ध कराने में मदद की। प्रशांत और बेन ने दुनिया के लोगों से इन शरणार्थियों की मदद की अपील की है। प्रशांत के अनुसार जब वे स्टोव सह रूम हीटर बनाने लगे तो उन्हें कारीगरों की आवश्यकता थी। इसमें उनका साथ शिविरों में रहने वाले युवाओं ने दिया। बेन ने इन लोगों को यहां से निकाल सुरक्षित यूरोप भेजने के लिए भी प्रयास शुरू किए हैं। प्रशांत कहते हैं कि उनके काम को लोग ऑनलाइन साझा करें। ताकि भारत के विश्व बंधुत्व के संदेश को दुनिया तक पहुंचाया जा सके।
धनबाद के अजंतापाड़ा निवासी प्रशांत के पिता सूरज उपाध्याय रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। मां मंजू उपाध्याय ब्यूटी पार्लर चलाती हैं। प्रशांत ने महाराष्ट्र से इंजीनियरिंग की। बचपन से ही दुनिया को भाईचारे का संदेश देकर कुछ करने की तमन्ना थी। इसी बीच 2016 में उन्होंने एक आर्ट फेयर का आयोजन पुणे में किया। इसमें बेन भी आया था। जो पुणे के युनाईटेड गर्ल्स कॉलेज में शिक्षक थे। दोनों का मकसद समाजसेवा था। बस बात बन गई। भारत से स्कॉटलैंड तक की यात्रा मोटरसाइकिल से करने का निश्चय कर लिया।
यूनान में रहते कई देशों के शरणार्थी : यूनान के लेसबोस में आफगानिस्तान, सीरिया, यमन, कैमरून समेत कई देशों के करीब 12000 लोग शरणार्थी के रूप में टेंट में रह रहे हैं। जब यहां अपनी यात्रा के दौरान प्रशांत व बेन पहुंचे तो इनको ठंड से ठिठुरते देखा। तब प्रशांत ने अपनी इंजीनियरिंग की प्रतिभा का प्रयोग करने का निर्णय लिया। एक प्रोटोटाइप स्टोव सह रूम हीटर बनाया। जो इन शरणार्थियों के लिए मददगार साबित हो रहा है। प्रशांत बताते हैं कि 15 जनवरी 2017 में महाराष्ट्र के पुणे से भारत से स्कॉटलैंड की मोटरसाइकिल यात्रा प्रारंभ की थी। मकसद भारत के विश्व बंधुत्व के संदेश का प्रसार करना था। चीन, अफगानिस्तान होते हुए हम दोनों यूनान के लेसबोस पहुंचे। वहां शरणार्थियों की हालत देखी तो उनकी मदद को रुक गए हैं। ये शरणार्थी गरीबी, अस्थिरता और उत्पीडऩ से तंग आकर अपना देश छोड़ चुके हैं। चार साल से ये लोग यहां रह रहे हैं। ...और प्रशांत ने बनाया ठंड से लडऩे के लिए स्टोव सह रूम हीटर : लेसबोस द्वीप पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर गया है। ऐसे में लोगों के पास अपने आप को गर्म रखने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है। प्रशांत और बेन ने लेसबोस के स्क्रैप यार्ड से मिली चीजों से एक ऐसा चूल्हा बना दिया जो इनके भोजन बनाने के साथ शिविरों को गर्म रखने में भी मदद कर रहा है। यह स्टोव सह रूम हीटर लोहे का बना है। इसमें बिजली की जरूरत नहीं। लकड़ी और खर-पतवार से इसे जलाया जा सकता है। खाना बनाने के बाद इसका ढक्कन बंद कर दें। विकिरण से निकलने वाली गर्मी से शिविर गर्म रहता है। शरणार्थी शिविर में करीब 6000 चूल्हों की आवश्यकता है। एक चूल्हा निर्माण पर करीब आठ सौ रुपये खर्च आता है।
दुनिया से शरणार्थियों की मदद की अपील : स्थानीय यूनानियों ने भी चूल्हे की सामग्री उपलब्ध कराने में मदद की। प्रशांत और बेन ने दुनिया के लोगों से इन शरणार्थियों की मदद की अपील की है। प्रशांत के अनुसार जब वे स्टोव सह रूम हीटर बनाने लगे तो उन्हें कारीगरों की आवश्यकता थी। इसमें उनका साथ शिविरों में रहने वाले युवाओं ने दिया। बेन ने इन लोगों को यहां से निकाल सुरक्षित यूरोप भेजने के लिए भी प्रयास शुरू किए हैं। प्रशांत कहते हैं कि उनके काम को लोग ऑनलाइन साझा करें। ताकि भारत के विश्व बंधुत्व के संदेश को दुनिया तक पहुंचाया जा सके।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें