Weekly News Roundup Dhanbad: कोयला चोरों के आगे पुलिस की कंगाली, महीना की जगह अब हफ्ता वसूली
टुंडी थाना में लंबे समय से खूंटा गाड़े हुए हैं एक जमादार। किसी पुलिस वाले के सामने नाम लीजिए तो तुरंत जवाब मिलेगा अरे वही कर्रा चुगलखोर। लउझड़ फंसाने में नंबर वन।
धनबाद [ नीरज दुबे ]। देश की कोयला राजधानी में दो तरह का कारोबार होता है, वैध और अवैध। वैध अधिक होता है या अवैध, इसका आकलन बेहद कठिन। यहां नब्बे फीसद पुलिस वाले इसीलिए ही आते हैं, कि कोयला की काली कमाई में वे भी मालामाल हो जाएं। कोयला के अवैध कारोबार के लिए अमूमन 15 तारीख तक पुलिस वालों को महीना मिलता रहा है। अब प्रदेश और जिला पुलिस मुख्यालय, सचिवालय के साहबों के अलावा राजनीतिक दलों का इतना झंझट है कि महीना लेने के बाद कभी कभार दो नंबर का कोयला पकड़ने को छापा मारना पड़ रहा है। कोयले का काला कारोबार करने वाले परेशान और उनके दुख से पुलिस वालों के भी होश गुम। आखिरकार बीच का रास्ता निकल ही आया। महीना की जगह हफ्ता का। जितना कोयला निकला, उसके हिसाब से ही हर सप्ताह रकम ढीली होने लगी है। जितना काम उतना दाम। अब सब खुश हैं।
ईंट पुरानी, इमारत नई
पुलिस लाइन में जाइए तो किसी न किसी के मुंह से डायलॉग सुनने को जरूर मिलेगा कि जिस इमारत को पुरानी ईंट पर खड़ा किया जाएगा उसकी छत पर भरोसा कैसा। दरअसल, वहां पुलिस वालों के क्वार्टर जर्जर हो चुके थे, उन्हें तोड़ा गया। तभी वार रूम का निर्माण शुरू हुआ। लागत ३४ लाख। वार रूम इसलिए कि माओवाद प्रभावित इलाके में जाने के पहले जवान वहां की लड़ाई के लिए साजो सामान से खुद को तैयार कर सकें। वार रूम की नई इमारत बनाने के लिए तोड़े गए जर्जर क्वार्टरों की पुरानी ईंट का इस्तेमाल हुआ। पुलिस मेंस एसोसिएशन के अधिकतर नेता यहां आशियाना बनाए हैं। उनकी आवाज निकलती है, तभी जब उनका चुनाव हो। बड़े साहब भी इस कदर उलङो हैं कि पुलिस लाइन की तरफ रुख की फुर्सत नहीं मिली। एक बार देख आएं तो नई इमारत से पुरानी ईंट हट जाए।
तोंदू कम, नाटे अधिक
पुलिस विभाग की बात निकले तो तोंद निकाले अफसर से जवानों तक की काया बरबस जेहन में आती है। हालांकि, धनबाद इससे इतर है, यहां बदलाव की बयार में तोंदू कम और नाटे अफसर ज्यादा दिख रहे हैं। ऐसा नहीं कि पुलिस वाले अधिक कसरत कर रहे हैं या लाइन में परेड अनिवार्य हो गई है। दरअसल, विधानसभा चुनाव के पहले तोंदू दारोगा की भरमार थी। बाद में अधिकांश दूसरे जिला में भेज दिए गए। जो आए हैं, उनमें अधिकतर नाटे। पहले पुलिस के जवान छह साढ़े छह फीट तक के दिखते थे। अब अफसर से लेकर जवान तक साढ़े पांच फीट से कुछ ऊपर के हैं। लंबी रायफल की जगह इंसास व हल्के हथियार ढोने में बहुत दर्द नहीं। धुंधलका में पुलिस लाइन में चिलम से धुआं उड़ाने वाले कहते हैं, पहले जवान लंबे थे तो हथियार भी लंबे, अब लंबाई कम तो हथियार छोटे।
चुगलखोर जमादार की बल्ले
टुंडी थाना में लंबे समय से खूंटा गाड़े हुए हैं एक जमादार। किसी पुलिस वाले के सामने नाम लीजिए तो तुरंत जवाब मिलेगा, अरे वही कर्रा चुगलखोर। लउझड़ फंसाने में नंबर वन। चुगलखोरी के कारण दूसरे जमादारों के साथ कई बार नोंक झोंक हो चुकी है। बड़े साहब तक मामला जा चुका है। उनका अंदाज इतना जादुई है कि बड़े साहब का फंसना तय। एक बार थानेदार चंगुल में आए तो फिर तरह तरह के हथकंडे अपना कर जमादार की मौज मस्ती शुरू। चिकनी चुपड़ी बातें ऐसी कि नकद की गुंजाइश वाले आवेदन थानेदार इसी जमादार को बढ़ाते हैं। माओवाद प्रभावित टुंडी में दारोगा की आमदनी इतनी है कि किसी को भी रश्क हो जाए। टुंडी से उलट हालात झरिया के हैं। दो तीन चुगलखोर वहां कमाल दिखाते थे। नए थानेदार डॉ. पीके सिंह अपने कान पर ज्यादा भरोसा करते हैं। वहां चुगलखोरों की शामत है।