एक ऐसा दर्जीखाना जिसने इस शहर को सिखाई कोट-पैंट पहनने की तहजीब
बात 1943 की है। जब गया से हाजी गुलाम नबी आए और एक सिलाई मशीन खरीद कर अपनी आजीविका शुरू की। उस वक्त ज्यादातर जगहों पर अंग्रेजों की सल्तनत थी।
धनबाद, जेएनएन।आज के दाैर में कोर्ट-पैंंट पहनने वालों को कोई गाैर भी नहीं करता है। लेकिन, आजादी से पहले ऐसी बात नहीं थी। यह अंग्रेजों का पोशाक था। कोर्ट-पैंट पहनना शान की बात थी। उस जमाने में परफेक्शन टेलर ने धनबाद को कोर्ट-पैंट पहनाने की तहजीब सिखाई।
जी हां, शहर के बैंक मोड़ इलाके में परफेक्शन टेलर की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने में हुई। वक्त गुजरने के साथ इसका अंदाज तो बदल गया है, मगर उस टेलर ने शहर को कोट पैंट पहनने का जो सलीका सिखाया था, वह आज भी बरकरार है। यहां का सूट आज भी हर वर्ग के लिए खास है। बात 1943 की है। जब गया से हाजी गुलाम नबी आए और एक सिलाई मशीन खरीद कर अपनी आजीविका शुरू की। उस वक्त ज्यादातर जगहों पर अंग्रेजों की सल्तनत थी। लिहाजा, ज्यादातर फिरंगी अफसर ही उनके पास पहुंचते थे। एक बार एक अंग्रेजी अफसर ने उन्हें कोट पैंट बनाने का आर्डर दिया। जब कोट पैंट बनाने के बाद नबी उस अफसर के पास पहुंचे, तो उस अंग्रेजी अफसर काफी खुश हुआ। उसने जैसे ही कोट-पैंट पहना, तो उसके साथ बैठे दूसरे अफसर वाव परफेक्ट जैसे शब्दों से तारीफ की। बस, उसी वक्त नबी ने अपने टेलर दुकान की शुरुआत परफेक्शन टेलर के नाम से की। वर्षों तक फुटपाथ पर कपड़े सीने के बाद अंग्रेजी अफसरों की मदद से नबी को छोटी सी दुकान मिल गई और तबसे कारोबार भी चल पड़ा।
तीसरी पीढ़ी संभाल रही जिम्मेदारीः 1991 में नबी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके बाद उनके बेटे गुलाम रसूल ने इस दर्जीखाने को संभाला और लंबे समय तक इससे जुड़े रहे। अब तीसरी पीढ़ी यह जिम्मेदारी संभाल रही है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि उनके दादा के जमाने के दोस्त भी आज इस दर्जी खाने में काम कर रहे हैं।
दूसरे शहरों के लोग भी मुरीदः यहां धनबाद ही नहीं, झारखंड के कई शहरों से कोट-पैंट के ऑर्डर मिलते हैं। इस दर्जीखाने की खासियत ऐसी है धनबाद ही नहीं बल्कि चास, बोकारो, कोडरमा सहित कई शहरों के लोग यहां के कोट-पैंट के मुरीद हैं।
'दादाजी ने जो हुनर सिखाया उसे हमनें बरकरार रखा है। ट्रेंड बदले हैं पर क्वालिटी से समझौता नहीं किया। यही वजह है कि परफेक्शन बना हुआ है।
शादाब, संचालक