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Weekly News Roundup Dhanbad: शहरनामा... अफसर हम और नेता भी

वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही शुरू हुई है तो वाणिज्य कर विभाग के अफसर हरकत में आ चुके हैं। विभाग का टारगेट पूरा करना है और अपना भी।

By MritunjayEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 01:55 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 05:44 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: शहरनामा... अफसर हम और नेता भी
Weekly News Roundup Dhanbad: शहरनामा... अफसर हम और नेता भी

धनबबाद [ अश्विनी रघुवंशी ]। पिछले पांच सालों से झारखंड में नई परंपरा बन गई है। मुख्यमंत्री का कार्यक्रम हो तो सरकारी अफसर दोहरी भूमिका में आ जाते हैं। अफसर के साथ नेता भी। आंगनबाड़ी सेविका व सहायिका, पोषण सखी, एएनएम, पारा शिक्षक, आजीविका मिशन से जुड़ीं महिलाएं, जल सहिया, स्वास्थ्य सहिया, मनरेगा कर्मचारी, कृषि मित्र समेत वैसे सारे कर्मचारियों को सीएम के कार्यक्रम में लाने की परंपरा सी बन चुकी है। मकर संक्रांति के अगले दिन 16 जनवरी को नए सीएम हेमंत सोरेन के कोयलांचल आने का कार्यक्रम तय हुआ। गोल्फ ग्र्राउंड में। सारे अफसरों को अपने विभाग से जुड़े लोगों को लाने की जवाबदेही दी गई। बसों पर लाया भी गया। सीएम नहीं आए तो सबसे ज्यादा नाराज आंगनबाड़ी सेविकाएं और एएनएम दिखीं। दोपहर दो बजे पैदल लौट रही स्वास्थ्य कर्मचारी भुनभुना रही थीं- साहबों ने हमें सीएम का कार्यकत्र्ता बना दिया है। रघुवर दास भी हम लोगों को देख मुगालते में रह गए। 

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मोटर पाट्र्स को मिली गारंटी

वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही शुरू हुई है तो वाणिज्य कर विभाग के अफसर हरकत में आ चुके हैं। विभाग का टारगेट पूरा करना है और अपना भी। अफसरों ने सक्रियता बढ़ाई तो मोटर पाट्र्स वालों की टेंशन बढ़ गई। धंधा करें या अफसर को संभालें। पंद्रह दिन तक व्यापारी सुबह-शाम चाय की चुस्कियों के साथ अफसरों की रफ्तार कम करने के उपाय की तलाश करते रहे। एक बंदा आगे आया। उपाय सुझाया कि सब मिल कर पांच पेटी का इंतजाम कर दिया जाय तो झंझट से छुटकारा मिल जाएगा। चंदा हुआ। पांच पेटी साहब के हवाले की गई तो गारंटी मिली कि अब कोई मोटर पाट्र्स खराब नहीं होगा। धंधा करने वालों को राहत का पैगाम मिला तो बाकी चीजों का कारोबार करने वाले हो गए हैं परेशान। खतरा है कि अब उनकी बारी है। साहब को साधने के लिए उन्हें भी सही बंदे की तलाश है।

कहीं पुरानी साड़ी तो नहीं

कुमारधुबी व चिरकुंडा के धोबियों की हड़ताल क्या हुई, महिलाओं को नया टेंशन हो गया। हड़ताल के बाद यह बात सार्वजनिक हुई कि बनारस, मदुरै, कोलकाता समेत कई जगहों पर मंदिर से लेकर श्मशान घाट तक की रोजाना 15 लाख पुरानी साडिय़ां आती हैं। धो-पोंछ कर नया करने के बाद उन्हें बेचा जाता है। दो महिलाएं हीरापुर बाजार आई थीं, ज्योति और नीलम देवी। नाम इसलिए मालूम चल गया कि एक-दूसरे का नाम लेकर बतिया रही थीं। साड़ी के शोरूम के बाहर टेबल पर सेल में दर्जनों साडिय़ां रखी थीं। दोनों उन्हें निहार रही थीं। ज्योति बोलने लगी, कहीं यह नई की गई पुरानी साड़ी तो नहीं, बहुरिया मर जाती है तो लाश के साथ गंगा किनारे छोड़ी गई साड़ी भी बिक रही है, राम राम। नीलम की जिज्ञासा थी कि शोरूम में रखी साडिय़ां भी कहीं पुरानी तो नहीं। महिलाओं की बातें सुन अब साड़ी कारोबारी भी टेंशन में हैं। 

बढ़ा दाल-भात का स्वाद

मथुरा प्रसाद महतो खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री थे तो पांच रुपये में दाल-भात योजना लाए थे। मकसद था गरीबों को भरपेट भोजन मिले और भूख से मौत नहीं हो। तब झामुमो की साझा सरकार थी। 2014 में भाजपा सरकार आई तो इस योजना को आधिकारिक तौर पर बंद नहीं किया गया। एकाध जगह को छोड़ बाकी जगहों पर दाल-भात मिलना जरूर बंद हो गया। फिर हेमंत सरकार बनी है तो सरकारी दाल-भात का स्वाद बढ़ गया है। स्टील गेट के सामने दाल-भात खाने के लिए भीड़ बढऩे लगी है। सामूहिक विवाह हुआ तो दाल-भात। सीएम के कार्यक्रम के लिए गोल्फ ग्र्राउंड में भी पांच रुपये में दाल-भात। दरअसल, मथुरा के फिर कैबिनेट मंत्री बनने की संभावना है। सरकारी अफसर नए माननीय को रिझाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते। 


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