कोल कैपिटल में जलाने को एक छटांक कोयला नहीं, यहां तो मजदूरी के लिए भी बनना पड़ता है यूनियन का मेंबर Dhanbad News
लोडिंग-अनलोडिंग या कोयला खनन में ही मजदूरी का काम मिले तो दूसरे राज्य जाकर मजदूरी करने से निजात मिले। पर यहां तो इसके लिए भी यूनियन का मेंबर बनना पड़ता है।
धनबाद, जेएनएन। कहने को धनबाद देश की कोयला राजधानी है। कोल इंडिया का जब गठन हुआ तो उसकी सबसे पहली अनुषंगी कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड का गठन यहीं हुआ। उच्च गुणवत्ता का कोकिंग कोल धनबाद में ही मिलता है। बावजूद यहां के लोगों को अपने घर में जलाने को एक छटांक कोयला यह कंपनी नहीं देती। यह अलग बात है कि गली-मुहल्ला से लेकर हर मुख्य सड़क किनारे कोयले के चूल्हे जलते हैं। इन्हीं चूल्हों पर बनी जलेबी पूरा उपायुक्त कार्यालय खाता है। एसएसपी ऑफिस के आगे भी कोयले के चूल्हे पर चाय बनती है। मांसाहार के लिए मशहूर सभी होटलों में यही कोयला शान से जलता है और रजिस्ट्री ऑफिस के बाबू चाव से मांस-भात खाते हैैं।
कोल डिपो की नहीं है व्यवस्था : कोयला का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले इलाके में लोकल सेल की व्यवस्था नहीं है। यहां एक भी डिपो नहीं होने से आम लोगों के लिए कोयला खरीद-बिक्री का कोई तंत्र ही विकसित नहीं किया गया है। पहले बीसीसीएल कर्मियों को जलावन के लिए कोयला मिलता था, लेकिन बाद में उनके खातों में गैर सिलिंडर का पैसा भेजा जाने लगा।
सहकारी समितियों के जरिए खरीद-बिक्री की मांग : कोयले पर स्थानीय लोगों के स्वामित्व को लेकर काफी पहले से मांग होती रही है। कई स्थानीय दल स्थानीय युवकों को छोटे स्तर पर कोयला खनन का अधिकार देने, डीओ लगाने, घरेलू इस्तेमाल की खरीद-बिक्री के लिए डिपो देने की मांग की जाती रही है। हालांकि प्रावधान नहीं होने की वजह से इनकी मांग नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होती रही है। शिबू सोरेन के कोयला मंत्री बनने के बाद इन मांगों ने काफी जोर पकड़ा लेकिन हुआ कुछ नहीं।
लोडिंग-ट्रांसपोर्टिंग में किया गया था प्रयोग : सहकारी समितियों के जरिए स्थानीय लोगों को इस उद्योग से जोडऩे का एक प्रयोग वर्ष 1993-95 के बीच की गई थी। तब उपायुक्त सुधीर कुमार थे। मैनुअल लोडिंग के लिए मजदूरों की सहकारी समितियां बनी थी। उनके लिए पहचान पत्र उपायुक्त कार्यालय से जारी किए जाते थे। ऐसी ही कमेटियां लोडिंग प्वाइंट से साइडिंग तक कोयला ढोनेवाले डंपरों के लिए बनाई गई थी। शुरुआत में यह सिस्टम कारगर रहा कालांतर में ये सभी रंगदारी के अड्डे बन गए।
अवैध कारोबार का साम्राज्य : सरकार ने व्यवस्था भले न बनाई हो, लेकिन कोयला आम लोगों की जरूरत है। सो वैध नहीं तो अवैध तरीके से ही सही लोगों ने कोयला जलाना जारी रखा और अब इसके कारोबार का एक पूरा अवैध तंत्र विकसित हो चुका है। पौ फटते ही साइकिलों पर कोयला ढोते लोग जिले के किसी कोने में दिख जाएंगे।
क्या कहते हैं लोग :
- यहां कोयला तो है, लेकिन उसमें हम लोगों को काम कहां मिलता है। पहले हार्डकोक में कुछ काम मिलता था, अब वहां भी नहीं मिलता। -नेपाल महतो, रखितपुर।
- कुछ लोग साइकिल पर कोयला लाते हैं। इसमें कमाई है, लेकिन यह अवैध है। सरकार अनुमति दे तो इससे अच्छा रोजगार मिल सकता है। -मो. इब्राहिम, रखितपुर।
- लोडिंग-अनलोडिंग या कोयला खनन में ही मजदूरी का काम मिले तो बाहर जाने से निजात मिले। यहां तो इसके लिए भी यूनियन का मेंबर बनना पड़ता है। -मो. शहाबुद्दीन, रखितपुर।
- यहां के कोयला उद्योग में यहां के लोगों के लिए कोई जगह ही नहीं है। हर जगह बाहर का आदमी है। यहां के लोगों से सिर्फ अवैध उत्खनन कराया जाता है। -भागीरथ महतो, रखितपुर।
- जो काम अवैध उत्खनन से होता है, वही वैध तरीके से भी हो सकता है। इससे रोजगार भी मिलेगा और सुरक्षा भी। कहीं जाना भी नहीं पड़ेगा। -हरि महतो, रखितपुर।