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19 साल बाद भी पता नहीं चल सका कि दिनदहाड़े किसने गोलियों से भूना था दबंग मजदूर नेता को

सकलदेव हत्याकांड में रामधीर सिंह के खिलाफ षड्यंत्र रचने का साबित नहीं हो सका। रामधीर सिंह पर यह आरोप था कि उन्होंने हजारीबाग जेल में रहते हुए सकलदेव सिंह की हत्या करवाने की साजिश रची।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 12:53 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 01:23 PM (IST)
19 साल बाद भी पता नहीं चल सका कि दिनदहाड़े किसने गोलियों से भूना था दबंग मजदूर नेता को
19 साल बाद भी पता नहीं चल सका कि दिनदहाड़े किसने गोलियों से भूना था दबंग मजदूर नेता को

जासं, धनबाद: सकलदेव हत्याकांड में रामधीर सिंह के खिलाफ षड्यंत्र रचने का साबित नहीं हो सका। इस चर्चित हत्याकांड में रामधीर पर यह आरोप था कि उन्होंने हजारीबाग जेल में रहते हुए सकलदेव सिंह की हत्या करवाने की साजिश रची। अदालत में भी उनपर आरोप तय किया गया था। लिहाजा अभियोजन को युक्तियुक्त संदेह से परे यह साबित करना था कि हजारीबाग जेल में रामधीर सिंह ने अन्य के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा था। अभियोजन को यह भी साबित करना था कि उसी षड्यंत्र के तहत सकलदेव को गोली मारकर हत्या की गई और रामधीर सिंह ने ही घटना की पटकथा लिखी थी।

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इसके लिए अभियोजन को यह साबित करना आवश्यक था कि षड्यंत्र कहा पर रचा गया, लेकिन वह यह साबित करने में पूर्ण रूप से विफल रहा। हालाकि अभियोजन ने कहा कि जेल गेट पर जो लोग रामधीर से मिलने जाते थे, उन्हीं लोगों को घटनास्थल पर देखा गया था, परंतु वह लोग कौन थे यह साबित नहीं हुआ। रामधीर से कौन मिलने जाता था इसकी पुष्टि के लिए भी जेल रजिस्टर को अदालत में नहीं प्रस्तुत किया गया और न हीं अनुसंधानक ने उस पर अनुसंधान किया। इस चर्चित हत्याकाड में गोलियों की बौछार से पूरा इलाका सहम गया था। 19 वर्ष के बाद भी आज तक इस बात का पता नहीं चल सका कि आखिर सकलदेव सिंह पर गोलियों की बौछार किसने की थी। वह शूटर कौन था। उसे किसने बुलाया था। कितने की सुपारी दी गई थी। यह सभी राज आज भी राज बनकर दफन हैं। यहा तक की वह जिप्सी जिसपर सकलदेव सिंह सवार थे। उसे भी अभियोजन पक्ष कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर सका, जिसका फायदा बचाव पक्ष को मिला।

विनोद हत्याकाड में सजा के बाद सरेंडर: सकलदेव हत्याकाड में रामधीर सिंह फरार घोषित कर दिए गए थे। उनके मुकदमे को अलग कर अदालत ने बच्चा सिंह, मुन्ना सिंह एवं उपेंद्र सिंह के मुकदमे की सुनवाई की थी तथा तीनों को बरी कर दिया था। बाबजूद इसके रामधीर सिंह कोर्ट में हाजिर नहीं हुए थे। जिस कारण उनके विरुद्ध चल रहे मुकदमें की सुनवाई लंबित थी।

फैसले के दिन ही नहीं हुए थे हाजिर: विनोद हत्याकाड में 18 अप्रैल 15 को फैसले की तिथि निर्धारित थी परंतु उस दिन भी रामधीर अदालत में उपस्थित नहीं हुए थे। उनकी ओर से कहा गया था कि वह डिमेनशिया बीमारी से ग्रसित हैं। उनकी अनुपस्थिति में ही अदालत ने फैसला सुनाया था, एवं रामधीर सिंह को उम्र कैद की सजा दी थी। जबकि बच्चा सिंह को बरी कर दिया था। 17 सितंबर 2015 को उनके विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया था। वारंट पर भी हाजिर नहीं होने पर अदालत ने उनके विरुद्ध 20 जनवरी 2017 को कुर्की का इश्तेहार निर्गत किया था। बावजूद इसके वह हाजिर नहीं हुए थे। विनोद हत्याकाड में सजा के आदेश को रामधीर ने उच्च न्यायालय मे अपील दायर कर चुनौती दी थी, परंतु उच्च न्यायालय ने भी उन्हे राहत नही दी थी। जिसे रामधीर ने सर्वोच्च न्यायालय मे चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर रामधीर ने विवश होकर 20 फरवरी 2017 को निचली अदालत में सरेंडर किया था। फिलवक्त वह 20 फरवरी 2017 से जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं।

चलती गाड़ी में हुई थी सकलदेव की हत्या: बिहार जनता खान मजदूर संघ के महामंत्री और जनता दल के नेता सकलदेव सिंह की हत्या 25 जनवरी 1999 को भूली के निकट हीरक रोड पर की गयी थी। दिन के 12.50 पर हुई इस घटना में दोनों तरफ से अंधाधुंध गोलिया चली थी। सिंह की जिप्सी का ड्राइवर सह बॉडीगार्ड समेत तीन लोग घायल हुए थे। दोपहर के लगभग साढ़े बारह बजे सकलदेव सिंह सिजुआ स्थित अपने आवास से जिप्सी बीआर-17-एफ 0027 पर धनबाद के लिए निकले थे। वे आगे की सीट पर थे। गाड़ी स्व. विनोद सिंह का खासमखास रह चुका ड्राइवर सह बॉडीगार्ड मनोज सिंह चला रहा था। पीछे की सीट पर उनका निजी बॉडीगार्ड अकेला सिंह हथियार के साथ बैठा था। सिंह की गाड़ी के पीछे डब्ल्यूबी-38ए-8885 अर्मदा जीप थी। उस पर भी सिंह के निजी बाडीगाडरें का सशस्त्र दस्ता था। वह गाड़ी पप्पू सिंह चला रहा था। आगे की सीट पर प्रमोद सिंह था, जबकि पीछे की सीट पर उदय सिंह और अशोक सिंह थे। घटना में मामूली रूप से घायल उदय सिंह और अशोक सिंह का बयान था कि हीरक रोड पर पहुंचते ही उन्होंने दो टाटा सूमो (एक सफेद) को देखा। दोनों गाड़ी आगे-आगे चल रही थी। शक जैसी कोई बात नहीं थी। ईस्ट बसुरिया ओपी के काड़ामारा बस्ती के निकट सकलदेव सिंह की गाड़ी को सूमो ओवरटेक करने लगे। जैसे ही दोनों गाड़ी समानातर हुई कि सूमो की पिछली खिड़की का काला शीशा थोड़ा नीचे सरका और उसमें से एक बैरेल सकलदेव सिंह को निशाना साधकर दनादन गोलिया उगलने लगी। सुरेश सिंह और उनके लोगों ने दोनों को केंद्रीय अस्पताल पहुंचाया। डाक्टरों ने सकलदेव सिंह को मृत घोषित कर दिया।

छोटे भाई दून बहादुर ने कराई थी एफआइआर: सकलदेव के छोटे भाई दून बहादुर सिंह के बयान पर कतरास थाना में बच्चा सिंह, रामधीर सिंह, राजीव रंजन सिंह के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अनुसंधान के क्रम में पुलिस ने शेरबहादुर सिंह, उपेन्द्र सिंह एवं मुन्ना सिंह की भी संलिप्तता इस मामले में पाते हुए आरोप पत्र 26 अप्रैल 1999 को अदालत में सौंपा था। आरोप पत्र में पुलिस ने दावा किया था कि घटना के वक्त बच्चा सिंह, रामधीर सिंह व राजीव रंजन सिंह विनोद हत्या काड में हजारीबाग जेल में बंद थे। वहीं से उन लोगों ने सकलदेव की हत्या की साजिश रची थी।

दस गवाहों का हुआ था परीक्षण: 1 अप्रैल 2005 को रामधीर के विरुद्ध आरोप तय होने के बाद सुनवाई शुरू हुई थी। इस दौरान अदालत में कुल 363 तारीखें पड़ी। इतनी लंबी चली सुनवाई के दौरान अभियोजन द्वारा इस मामले मे कुल दस गवाहों का परीक्षण कराया गया जिनमें सकलदेव सिंह के पुत्र रणविजय सिंह, सकलदेव के ड्राइवर मनोज कुमार सिंह अकेला, मनोज कुमार सिंह, डॉक्टर शैलेंद्र कुमार, मनोज सिंह ,दून बहादूर सिंह, राजेंद्र गोप, माधव सिंह एवं अनुसंधानक विनोद कुमार सिंह शामिल थे।


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