Nirsa Jharkhand Vidhan Sabha Election 2019 : वामपंथ का गढ़ रहा निरसा अब विरासत की सियासत का बना अड्डा
Nirsa Vidhan Sabha seat पर इस बार के चुनाव में मासस के अरूप चटर्जी एक बार फिर से मैदान में हैं। उनके सामने अपर्णा सेनगुप्ता भाजपा के टिकट पर दावं आजमाएंगी।
धनबाद, जेएनएन। Nirsa Jharkhand Vidhan Sabha Election 2019 की घोषणा हो चुकी है। सभी दल और निर्दल चुनाव लडऩे की तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में कोई पहली बार तो कोई दूसरी बार चुनाव लड़ रहा है। जबकि कुछ ऐसे भी जनप्रतिनिधि हैं जो अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए इस चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे हैं।
इनमें ही निरसा के विधायक अरूप चटर्जी भी हैं। जिन्होंने अपने पिता गुरुदास चटर्जी की हत्या के बाद राजनीति में कदम रखा और तब से अब तक केवल 2005 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें शिकस्त दी थी फाब्ला नेता सुशांतो सेनगुप्ता की हत्या की सहानुभूति लहर पर सवार अपर्णा सेनगुप्ता ने।
वर्ष 1957 के चुनाव में टुंडी को निरसा से अलग कर विधानसभा क्षेत्र बनाया गया। इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 68 पंचायत और 286 राजस्व गांव हैं। पश्चिम बंगाल से सटे इस विधानसभा में कई भाषा बालने वाले लोग रहते हैं, लेकिन बंगलाभाषी लोगों की संख्या अधिक है।
मजदूर नेताओं का रहा बोल बाला : इस विधानसभा क्षेत्र में मजदूर नेताओं को विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने का मौका जनता ने दिया है। 1951 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर मजदूर नेता रामनारायण शर्मा चुनाव जीते और लगातार पांच बार यहां का प्रतिनिधित्व किया। 1990 के चुनाव में वामपंथी नेता गुरुदास चटर्जी ने यहां पहली बार जीत दर्ज की। गुरुदास चटर्जी भी श्रमिक राजनीति किया करते थे और मजदूरों के बीच उनकी अच्छी पैठ थी। यही कारण रहा कि 1990 के बाद 1995 व 2000 के चुनाव में उन्हें कोई मात नहीं दे सका।
विधायक पिता की हत्या के बाद अरूप उपचुनाव जीत पहुंचे विधानसभा
वर्ष 2000 में गुरुदास चटर्जी की हत्या के बाद उनके पुत्र अरूप चटर्जी ने उपचुनाव लड़ा और वे जीत गए। हालांकि अरूप 2005 में चुनाव हार गए। वर्ष 2001 में फारवर्ड ब्लॉक नेता सुशांतो सेनगुप्ता की हत्या के बाद 2005 में उनकी पत्नी अपर्णा सेन गुप्ता ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2009 और 2014 के चुनाव में जनता ने फिर अरूप चटर्जी पर अपना भरोसा जताया और उन्हें विधानसभा पहुंचाया।
निरसा से झामुमो का प्रत्याशी अभी तय नहीं
इस बार के चुनाव में अरूप एक बार फिर से मैदान में हैं। उनके सामने अपर्णा सेनगुप्ता भाजपा के टिकट पर दावं आजमाएंगी। देखना होगा कि किसकी विरासत कायम रहेगी। गुरुदास के पुत्र अरूप जीतेंगे या सुशांतो की पत्नी अपर्णा अथवा कोई और बाजी मार ले जाएगा। झामुमो की ओर से अशोक मंडल को चुनाव मैदान में उतारे जाने की बात कही जा रही है।