परिवहन मंत्रालय की जय हो... इनकी तो निकल पड़ी
पलामू वाले बाबा की बात ही निराली है। कुछ भी हो कहने और सुनाने में पीछे नहीं रहते हैं।
धनबाद, जेएनएन। सरकार में बैठे अच्छी सोच और अच्छा काम करने वाले लाख सुधार करें मगर नीचे वाले सुधरने वाले नहीं हैं। अब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के महत्वपूर्ण फैसले को ही लीजिए। ओवरलोडिंग के नाम पर वसूली की राष्ट्रव्यापी समस्या किसी से छिपी नहीं है। वसूली से निजात दिलाने के लिए मंत्रालय ने 25 प्रतिशत लदान क्षमता में वृद्धि करने का निर्णय लिया।
सोच यह है कि क्यों न ओवरलोडिंग को कानूनी अमली जामा पहना दी जाय। इससे भ्रष्टाचार समाप्त होगा और सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी। इस फैसले को अमली जामा पहनाने
में जबरदस्त भ्रष्टाचार देखने-सुनने को मिल रहा है। ट्रक मालिक नयी तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। दरअसल, वाहन की बढ़ी हुई लादान क्षमता जिला परिहवन कार्यालय के माध्यम से ऑनरबुक में चढ़ाई जा रही है। इसके लिए सरकार ने न्यूनतम हजार रुपये शुल्क निर्धारित कर रखा है। इस काम के लिए 5 हजार रुपये वसूल की जा रही है। अंदाजा लगाइए कितना प्रतिशत भ्रष्टाचार बढ़ गया है। वाहन मालिकों की मजबूरी है कि वह 32 सौ रुपये अतिरिक्त देने को मजबूर हैं। ऑनरबुक में बढ़ी हुई लदान क्षमता दर्ज नहीं कराकर चलने पर परिवहन विभाग के अधिकारी पकड़ रहे हैं। ऐसे में परिवहन कार्यालय में मालिक चढ़ावा चढ़ाने को मजबूर हैं। यही है गुड़ को गोबर बनाने वाला काम जो परिवहन विभाग के अधिकारी कर रहे हैं।
चौबे गए छब्बे बनने, दुबे बन लौटेः भाईजी और उनके समर्थकों की खुशी का ठिकाना न था। आखिर रेल साहब के साथ तालाब का निरीक्षण करने जो निकले थे। छठ के मौके पर तालाब घाटों की साफ-सफाई से बड़ा कोई पुण्य हो नहीं सकता। इसी पुण्य-प्रताप से तो राजनीति चलती है। तालाब निरीक्षण के दौरान सबसे चेहरे चमक रहे थे। रेल साहब छठ घाट की अच्छी तरह साफ-सफाई को निर्देश देते आगे बढ़ रहे थे। अचानक उनकी नजर अतिक्रमण पर पड़ी। तालाब को अतिक्रमण कर मकानें खड़ी थी। रेल साहब को यह नागवार गुजरा। वह भड़क गए। मातहत अधिकारियों से मुखातिब होते हुए सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे-कैसे हुआ तालाब का अतिक्रमण? तालाब से सटाकर इस तरह कहीं घर बनाया जाता है। यह देख
भाईजी और उनके समर्थकों के चेहरे देखने लायक थे। आखिर अतिक्रमण हटेगा तो राजनीतिक नुकसान रेल साहब का तो होगा नहीं? नुकसान राजनीति करने वालों का ही होगा। रेल साहब पूरा अतिक्रमण देखने के लिए आगे चलने को बेताब थे। भाईजी और उनके समर्थकों के पांव थम गए।कोई आगे बढऩे को तैयार नहीं था। और इसी के साथ तालाब घाट का निरीक्षण संपन्न हुआ।
आते ही छा गए बाबाः पलामू वाले बाबा की बात ही निराली है। कुछ भी हो कहने और सुनाने में पीछे नहीं रहते हैं। उनकी पार्टी में मैडम और मैडम के बेटे को छोड़ शायद ही किसी का लोकसभा का टिकट फाइनल हो लेकिन बाबा का टिकट फाइनल हो गया है। बाबा ने कह दिया है कि कोई किंतु-परंतु नहीं है। इसी बड़बोल के कारण बाबा को पिछली बार टिकट से बेटिकट होना पड़ा। छोटे बाबा की लॉटरी निकल गई थी। खैर जो हो बाबा के डॉयलॉग ने हाथ वाली पार्टी के नेताओं की नींद हराम कर दी है। बाबा की अनुपस्थिति में एक से बढ़कर एक दावेदार उछल-कूद कर रहे थे। परजीवी टाइप के दिल्ली से भी कुछ रंगरूट ऊधम मचाते दिख रहे थे। किंतु-परंतु नहीं का डॉयलॉग मार बाबा छा गए हैं। उनके छाते ही सब शांत पड़ गए हैं। सबके के सब एक ही बात का पता लगा रहे हैं कि बाबा के डॉयलॉग में कितनी प्रतिशत सच्चाई है?