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ढूंढते रह गए फिरंगी, नेताजी रेल ट्राली पर बैठकर निकल गए; सरिया को आज भी याद है वह कहानी

स्थानीय बंगाली समुदाय के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि सरिया से नेताजी का रिश्ता रहा है। यहां प्रभाती कोठी में आते थे। सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाया करते थे। अंग्रेजों के पीछा करने पर वह हजारीबाग रोड से रेल ट्राली पर बैठकर निकल गए।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 10:43 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 09:36 PM (IST)
ढूंढते रह गए फिरंगी, नेताजी रेल ट्राली पर बैठकर निकल गए; सरिया को आज भी याद है वह कहानी
हजारीबाग रेलवे स्टेशन से जुड़ी नेताजी की स्मृति ( प्रतीकात्मक फोटो)।

ज्ञान ज्योति, गिरिडीह। झारखंड के गिरिडीह जिला के सरिया मे स्थित है प्रभाती कोठी। यह कोई आम कोठी या भवन नहीं है, बल्कि इससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें जुड़ी हुई है। उनकी यह विरासत भी है, लेकिन इसे धरोहर का दर्जा नहीं मिल सका है। इस कोठी की नेताजी ने न केवल नींव रखी थी, बल्कि इसी में रहकर वे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति भी बनाते थे।

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मजदूर के वेश में आए थे नेताजी

नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने वर्ष 1915-20 के बीच में इस कोठी की नींव रखी थी। इसके लिए वे यहां मजदूर के वेश में आए थे। उन्होंने ही चांदी के बेलचा से सबसे पहले नींव में मिट्टी डाली थी। सरिया जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों को नेताजी के यहां आने की सूचना मिल गई थी। उन्हें ढूंढ़ते हुए अंग्रेज सिपाही वहां पहुंच गए, लेकिन उसके पहले ही नेताजी वहां से जा चुके थे।

नेताजी की कर्मभूमि रही है सरिया

स्थानीय बंगाली समुदाय एवं अन्य बुजुर्ग लोग बताते हैं कि सरिया नेताजी की कर्मभूमि रही है। नेताजी इस कोठी में रहकर अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाया करते थे। वे क्षेत्र में भी जाकर लोगों से मिलते थे और आंदोलन को गति देते थे। अंग्रेजों के पीछा करने पर वह सरिया स्टेशन ( अब हजारीबाग रोड) से ट्राली में बैठकर फरार हुए थे। यहां के बाद अंतिम बार उन्हें गोमो में देखा गया था।

बिक गई नेताजी की धरोहर, बचाने की नहीं हुई पहल

बताया गया कि यह कोठी नेताजी के बहन-बहनोई की थी। कोठी से उनकी कई यादें जुड़ी हुई हैं, लेकिन इस धरोहर को बचाने की पहल नहीं की गई। कालांतर में नेताजी के भांजों ने कोठी और जमीन को भी बेच दिया। इसे खरीदने वाला कोई और नहीं, बल्कि केयर टेकर तिलक महतो ने कोठी को खरीदा था।

स्वरूप से नहीं हुआ है छेड़छाड़

कोठी आज भी अपने पुराने स्वरूप में ही है। इससे कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया है, लेकिन नेताजी की याद दिलाने वाली इस कोठी को धरोहर के रूप में सहेजा नहीं जा सका। इस दिशा में कोई पहल भी होती नहीं दिख रही है। न शासन और प्रशासन के स्तर से और न ही समाज के स्तर से।


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