Arzi Hukumat-e-Azad Hind: भारत की आजादी से पहले ही नेताजी ने बनाई थी सरकार, जानें-काैन था राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री
Arzi Hukumat-e-Azad Hind भारत के इतिहास में 21 अक्टूबर की तारीख बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इसी तारीख को साल 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत को आजाद घोषित करते हुए वैकल्पिक सरकार बनाई थी। इसका नाम दिया था-आरजी हुकूमत-ए-आजाद हिंद।
जागरण संवाददाता, धनबाद। भरात के इतिहास में 21 अक्टूबर की तारीख बहुत की खास है। यूं तो भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को ही आजाद घोषित किया था। उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी को अस्वीकार करते हुए भारत में वैकल्पिक सरकार बनाई। इसका नाम दिया-आरजी हुकूमत-ए- आजाद हिंद। भारत के अमृत महोत्सव वर्ष में आरजी हुकूमत-ए- आजाद हिंद की तारीख को खास अंदाज में याद की जा रही है। धनबाद समेत देश भर के स्कूलों में आज सुबह की प्रार्थना-कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, गाकर नेताजी को श्रद्धांजलि दी गई।
धनबाद का नेताजी से खास जुड़ाव
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से खास लगाव रहा है। उनके चाचा यहां भागा में कोलियरी में काम करते थे। उनका यहां आना-जाना होता था। अंग्रेजों से बचने के लिए नेताजी कई बार धनबाद में शरण लिए थे। इतिसाह में उनकी आखिरी यात्रा की तारीख भी धनबाद से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की जान चली गई थी। लेकिन, इसकी पुख्ता पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है। 18 जनवरी 1941...यही वह तारीख है जिस दिन नेताजी को हिंदुस्तान में आखिरी बार देखा गया था। वे धनबाद के गोमो रेलवे स्टेशन पर देखे गए थे जहां से वे कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे। कहते हैं कि इसके बाद किसी ने भी नेताजी को नहीं देखा। हालांकि इसी अवधि में उन्होंने भारत में वैकल्पिक सरकार बनाने की घोषणा की। इस सरकार को जापान, जर्मनी जैसे कई देशों ने मान्यता भी दी।
गोमो से पेशावर के लिए रवाना हो गए थे नेताजी
नेताजी के मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पोते शेख मोहम्मद फखरुल्लाह बताते हैं कि नेताजी का उनके घर बराबर आना जाना लगा रहता था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार नेता जी उनके दादा से मिलने भेष बदलकर आया करते थे। 18 जनवरी 1941 को नेताजी कोलकाता से सड़क मार्ग से कार से गोमो पहुंचे और अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पास आए। नेताजी पठान की वेश में थे। यहां शेख अबदुल्ला से मुलाकात करने के बाद उन्हें अमीन नाम के एक दर्जी ने रात करीब 12 बजे कालका मेल में जाकर बिठाया। ट्रेन में बैठकर वह पेशावर के लिए रवाना हो गए।
नेताजी ने कैसे बनाई सरकार
नेताजी का मानना था कि भारत को अपनी स्वतंत्रता के लिए विश्व युद्ध का फायदा उठाना चाहिए और अग्रेंजो के खिलाफ लड़ रहे देशों की मदद से भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेखना चाहिए। सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि सशस्त्र संघर्ष से ही भारत को आजाद करवाया जा सकता है। साल 1920 और 1930 के दशक में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कट्टरपंथी दल के नेता रहे, 1938-1939 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने की राह पर आगे बढ़ रहे थे, लेकिन वो ज्यादा दिन तक अध्यक्ष भी नहीं रहे। इस सरकार में सुभाष चंद्र बोस प्रधानमंत्री बने और साथ में युद्ध और विदेश मंत्री भी थे। कहा जाता है कि नेताजी ही सरकार में राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष भी थे। इसके अलावा इस सरकार में तीन और मंत्री थे। कैप्टेन श्रीमती लक्ष्मी को महिला संगठन मंत्री, एसए अय्यर को प्रचार और प्रसारण मंत्री, लै. कर्नल एसी चटर्जी को वित्त मंत्री बनाया गया था। साथ ही एक 16 सदस्यीय मंत्रि स्तरीय समिति भी बनाई गई थी।