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बलवान या धनवान से ज्यादा बेहतर सोच का होना जरूरी: मनोज जोशी

सब लोग समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों की पूर्ति में चाणक्य की नीतियों को शामिल करें।

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 01:19 PM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 03:32 PM (IST)
बलवान या धनवान से ज्यादा बेहतर सोच का होना जरूरी: मनोज जोशी
बलवान या धनवान से ज्यादा बेहतर सोच का होना जरूरी: मनोज जोशी

धनबाद, मृत्युंजय पाठक। ढाई दशक से ज्यादा समय से रंगमंच पर 'चाणक्य' की भूमिका अदा कर रहे थिएटर, सीरियल और फिल्मी दुनिया के उम्दा कलाकार मनोज जोशी का मानना है कि यदि देश में बदलाव लाना है तो सबसे पहले हमें अपनी सोच बदलनी होगी। हर काम सरकार नहीं कर सकती यह बात हमें समझनी। उन्होंने कहा-वर्तमान में चाणक्य कि वह बात समझने और अपनाने योग्य है, जिसमें वे कहते हैं कि बलवान या धनवान होने से ज्यादा जरूरी है हमारी सोच का बेहतर होना।

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धनबाद में नाटक चाणक्य का मंचन करने आए जोशी ने शनिवार को दैनिक जागरण के साथ बातचीत के दौरान राष्ट्र, राजा, निजी जीवन, थिएटर और फिल्मी दुनिया के बारे में खुलकर चर्चा की। शनिवार शाम न्यू टाउन हाल धनबाद में नाटक का मंचन होगा जिसका आयोजन सेवा फाउंडेशन देवघर की तरफ से किया गया है।

लोग और समाज चाणक्य की नीतियों को अमल करें : जोशी चाहते हैं कि सब लोग समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों की पूर्ति में चाणक्य की नीतियों को शामिल करें। हालांकि उन्हें दुख है कि आज बच्चों को यह बात बताई या समझाई नहीं जाती। वह कहते हैं कि राष्ट्र से अधिक महत्वपूर्ण नीति नहीं होती। बंधुओं का परस्पर द्वेष संपूर्ण कुल के विध्वंस का कारण है यह बात आज भी उतनी ही प्रसागिक है जितनी सदियों पूर्व आचार्य विष्णु शर्मा चाणक्य ने कही थी। उन्होंने कहा, चाणक्य ने अखंड भारत के सपने को देखा था और उसे सच भी कर दिखाया। वह भी महज चंद वषरें में।

चाणक्य के चरित्र के प्रति आकर्षण का मूल कारण निस्वार्थ सोच और कल्याण की भावना: चाणक्य के चरित्र के प्रति आकर्षण के सवाल पर जोशी कहते हैं कि बचपन में मेरे गुरु भातखंडे शास्त्री मुझे संस्कृत पढ़ाते हुए कई बार चाणक्य नीति का ज्ञान भी देते थे। चाणक्य के बारे में सुनी सभी बातें मेरे मन मस्तिष्क में बस गई। एक व्यक्ति की निस्वार्थ सोच, कल्याण की भावना और मंगलकारी संकल्प को लेकर आगे बढ़ने की जो बात चाणक्य के चरित्र में नजर आई उसने मुझे उनके प्रति आकर्षित किया। यदि उन्हें समझा जाए तो हम यह जान सकेंगे कि राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का कार्य जो द्वापर में श्री कृष्ण ने किया था वहीं कोशिश कलयुग में चाणक्य ने की। यही वजह थी कि मुझे थिएटर करने के दौरान किसी एक पात्र को चुनना था तो मैंने चाणक्य को चुना। चाणक्य की जो बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद आती है वह है उनकी शासन-प्रशासन की कल्पना। क्योंकि चाणक्य कहते हैं-प्रजा का सुख ही राजा का सुख है। दूसरी बात है उनका निस्वार्थ भाव। चाणक्य ने सारा संघर्ष खुद शासक बनने या किसी बड़े पद के लालच में नहीं किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भी यह लागू होता है। राजा को प्रजाभिमुख होना चाहिए। दर्शक नाम से ज्यादा कैरेक्टर नेम से पहचानते हैं: करीब 25 साल से रंगमंच पर चाणक्य की भूमिका निभाते आ रहे मनोज जोशी केवल गंभीर किरदार में ही जान नहीं पूछते बल्कि हास्य के रंग में भी इनके अभिनय की खूबी है। इस बारे में वह कहते हैं कि फिल्मों में मुझे कॉमेडी कैरेक्टर इसलिए मिले क्योंकि दर्शक मुझे इस रोल में देखना पसंद करते हैं। वास्तव में कॉमेडी भी एक गंभीर विषय है और कलाकार को इसकी गहराई का पता होना चाहिए। मुझे खुशी है कि लोग मेरे नाम से ज्यादा कैरेक्टर नेम से पहचानते हैं और यह कलाकार के लिए बड़ी बात है।


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