आम से बिरहोरों की जिंदगी में खुशहाली की 'बौर'
गिरिडीह : झारखंड की विलुप्तप्राय: बिरहोर प्रजाति के लोगों की जिंदगी में आम की पैदावार खुशहाली लेकर आ
गिरिडीह : झारखंड की विलुप्तप्राय: बिरहोर प्रजाति के लोगों की जिंदगी में आम की पैदावार खुशहाली लेकर आई है। कभी मुफलिसी से जूझती इस आदिम जनजाति की जिंदगी आम की बिक्री से होने वाली कमाई से खास हो गई है। परिवारों में बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुकता बढ़ी है और अब वह समृद्धि की राह पर चल पड़े हैं।
बिरहोर आदिम जनजाति है, जिसके विलुप्त होने का खतरा है। पूरे झारखंड में इनकी आबादी करीब छह हजार है, वहीं गिरिडीह जिले में इनकी जनसंख्या महज 506 है। झारखंड के बाहर छत्तीसगढ़, ओडिशा, मणिपुर एवं कर्नाटक में भी बिरहोरों की मामूली आबादी है। जंगलों व पहाड़ों पर रहने वाले बिरहोर की आबादी कम होती जा रही थी। न कभी तंत्र ने इनकी चिंता की और न ही वह खुद जागरूक हुए। इनकी बस्तियों में हमेशा बदहाली की तस्वीर ही नुमाया होती थी, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
आठ वर्ष पहले रखी थी
खुशहाली की बुनियाद
वर्ष 2010 में हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल ने सरिया प्रखंड के कालापत्थर बिरहोर टंडा गाव में 16 एकड़ जमीन पर आम के करीब आठ हजार पौधे लगाए थे। तीन वर्ष बाद लंगड़ा, दशहरी, मालदा व अन्य प्रजातियों के आम के पेड़ फल देने लगे। आम की पैदावार शुरू हुई और वर्ष 2013 में आम की बिक्री शुरू हुई। शुरुआत में वन विभाग ने सार्वजनिक रूप से बिक्री कराई। इसके बाद अब इस वर्ष से इसकी जिम्मेदारी बिरहोर समुदाय को दे दी गई है। बिरहोर खुद बाग की देखभाल एवं आम की बिक्री करते हैं। बिरहोरों के जीवन में रंग भरने में तत्कालीन रेंजर गोरखनाथ यादव, फारेस्टर भोला महतो और कन्हाई यादव ने महती भूमिका निभाई थी। तत्कालीन उपायुक्त वंदना दादेल ने इन वन कर्मियों की शानदार पहल को लेकर सम्मानित भी किया था।
भागलपुरी आम को टक्कर देता
अमूमन बिहार के भागलपुर का आम दुनिया में अपनी मिठास के लिए प्रसिद्ध है पर गिरिडीह के सरिया प्रखंड के बिरहोर गाव टंडा कालापत्थर के आम में उसे टक्कर देने का माद्दा है। यहा फलने वाले आम के खरीदारों में न केवल स्थानीय लोग होते हैं, बल्कि अपनी मिठास से यहा के आम ने दूसरे जिलों में भी छाप छोड़ी है। यहा का आम गिरिडीह के बाहर बोकारो, धनबाद, हजारीबाग सहित अन्य जिलों में भी भेजा जाता है।
बस्ती के विकास में
खर्च होती आय
यहां प्रतिवर्ष करीब 80-90 हजार रुपये के आम की बिक्री होती है। इस आय को बिरहोरों की बस्ती के विकास में खर्च किया जा रहा है। पेयजल, आवास, सड़कों की मरम्मत के साथ ही बिरहोर समाज के लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाकर बस्ती की सूरत बदली जा रही है।
परिवार भी हुए जागरूक
बिरहोर परिवार भी अब जागरूक हो रहे हैं। विकास की चमक देखने के साथ इनके बच्चे भी पढ़ाई की ओर प्रेरित हो रहे हैं। कभी जंगल में झोपड़ी बनाकर जमीन पर सोने वाले बिरहोर अब चौकी पर सोते हैं। चूहों के शिकार में अपने पिता का सहयोग करने वाले बिरहोर बच्चे अब छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। गिरिडीह में इन बिरहोर बच्चों की शिक्षा के लिए उत्कर्ष छात्रावास चलाया जा रहा है। जिला प्रशासन एवं बिरहोर विकास समिति मिलकर इसका निश्शुल्क संचालन कर रहे हैं।
बढ़ रहे परिवार, रुका पलायन
बस्ती के हरिलाल बताते हैं कि आम पूरी बस्ती के लिए रोजगार का बड़ा साधन है। जब यह बगान लगाया गया था, उस वक्त बिरहोरों के यहा 16 परिवार थे। अब परिवारों की संख्या 25 हो गए हैं। अब यहा से पलायन की कोई नहीं सोचता।