यहां के बच्चों के जीवन का बदल रहा मकसद, गा रहे नए तराना-काैन रखेगा मां का ख्याल Dhanbad News
पिनाकी कहते हैं वे दो साल से अपने घर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 23 लड़की और 27 लड़के आते हैं। बेहद जहीन इन बच्चों में जिंदगी को खुशरंग बनाने का सपना है।
धनबाद [ राजीव शुक्ला ]। झरिया का लिलौरी पथरा। गरीबों की बस्ती। अधिकतर परिवार की जीविका का सहारा कोयला है। दो साल पहले तक पेट भरने के लिए परिवार के बाकी सदस्यों के साथ मासूम बच्चे भी बंद पड़ी खदानों में बनाई गई सुरंग से भीतर जाते थे। चïट्टान से कोयला काट कर निकालते थे। अगर चïट्टान ढह गई तो जान गई।
अब हालात बदले हैं। बहुत बच्चे अब चूहे के बिल की तरह खदानों में बनाई गई सुरंग के भीतर प्रवेश नहीं करते। रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांति निकेतन से पढ़ाई कर आए झरिया के पिनाकी राय ने लिलौरी पथरा के चार दर्जन से अधिक बच्चों के जीवन का मकसद बदल दिया है। पिनाकी राय ने लिलौरी पथरा जाकर गरीबों को समझाया कि अपने बच्चों की जान को खतरे में नहीं डाले। उन्हें पढऩे का मौका दें ताकि वे काबिल आदमी बन सके, मौत की सुरंग में जाने की मजबूरी को खत्म करें। अभिभावक मान गए। पिनाकी ने हेटली बांध में निश्शुल्क क्लास शुरू की। 50 बच्चे पढ़ रहे हैं। सुरंग में फिर जाने के सवाल पर जवाब होता है- जान चली गई तो मां का ख्याल कौन रखेगा। अब इन बच्चों को पहला मकसद पिनाकी द्वारा संचालित कोलफील्ड चिल्ड्रेन क्लासेज में पढना है।
पिनाकी कहते हैं, वे दो साल से अपने घर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 23 लड़की और 27 लड़के आते हैं। बेहद जहीन इन बच्चों में जिंदगी को खुशरंग बनाने का सपना है। कोई इंजीनियर बनना चाहता है तो कोई चिकित्सक। वो जान चुके हैं कि जिंदगी की अल्पना में तालीम ही रंग भर सकती है। इस काम में पत्नी मौसमी राय भी सहयोग देती हैं।
जर्मनी के डॉ. शुलमियर से मिल रहा सहयोग
पिनाकी इतने धनाढ्य नहीं कि बच्चों की किताब कॉपी का खर्च उठा सकें। कुछ महीने पहले जर्मनी के डॉ. एच शुलमियर झरिया आए। पिनाकी से मुलाकात हुई। पूरा किस्सा जाना। अब वे किताब-कॉपी का खर्च वहन करते हैं। डॉक्यूमेंट्री बनाने फ्रांस से झरिया आए एसोसिएशन ऑन द वे टु स्कूल के ए डोएक ने एक कंप्यूटर उपलब्ध कराया है।
मां काटती थी कोयला, हम मुहाने से लाते थे बाहर
पिनाकी के पास पढऩे वाले बच्चों को कुरेदा गया तो उन्होंने काला सच बताया। दसवीं में पढ़ रहे एक किशोर ने कहा, पिता पांच हजार रुपये तक कमा पाते थे। साइडिंग पर कोयला चुनने नहीं दिया जाता था तो मां के साथ खदान के मुहाने तक जाते थे। सुरंग में मां कोयला काटती थी और हम मुहाने के बाहर निकाल कर रखते थे। अब प्रण कर लिया है कि अवैध खनन के लिए मुहाने में नहीं जाएंगे। रात दो बजे उठते हैं। सिर्फ सड़क पर कोयला चुनते हैं। सुबह स्कूल आते हैं। सोनू कुमार, रोहन, दीपक, रितिक, छोटी कुमारी, काजल, चांदनी समेत बाकी बच्चे बोले कि पढ़ाई की महत्ता समझ आ गई है। मेहनत करेंगे तो जरूर सफल होंगे।