मैं जब घर से निकलता हूं, मां की दुआएं मेरे साथ चलती हैं..
अलीगढ़ में रेलवे के कार्यपालक अभियंता (निर्माण) आयुष अपनी मां सुमन तिवारी को मां और पिता दोनों की भूमिका में देखते हैं। वह कहते हैं-पिता नहीं हैं, बहुत दुख है। मां है, सब कुछ है।
जागरण संवाददाता, धनबाद: अभी जिंदा है मां मेरी, मुझे कुछ भी न होगा, मैं जब भी घर निकलता हूं, दुआ मेरे साथ चलती है- मुन्नवर राणा की इस पंक्ति को दुहराते हुए अलीगढ़ में रेलवे के कार्यपालक अभियंता (निर्माण) आयुष अपनी मां सुमन तिवारी को मां और पिता दोनों की भूमिका में देखते हैं। वह कहते हैं-पिता नहीं हैं, बहुत दुख है। मां है, सब कुछ है।
हाउसिंग कॉलोनी धनबाद निवासी सुमन तिवारी के जीवन में सब कुछ सामान्य था। साल 2007 में दिल का दौरा पड़ने से सुमन तिवारी के पति ई. अमरेंद्र तिवारी की असामयिक मौत से जीवन असामान्य हो गया। सुमन के सामने दो पुत्र तथा एक पुत्री की शिक्षा जारी रखना बड़ी चुनौती थी। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी। पति की मौत के बाद बच्चों के लिए माता और पिता दोनों की भूमिका में आ गई। और एक दशक से बखूबी मांता-पिता की भूमिका निभा रही है। सुमन का दिया संस्कार ही है कि तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद आज के दौर में बच्चे मां के हर आदेश को अक्षरश: पालन करते हैं। सुमन का कहना है-पुरुष को पिता और माता दोनों का दायित्व निर्वहन करने में बहुत दिक्कतें हैं। मगर स्त्री दोनों दायित्व निभाने में सफल हो सकती है। क्योंकि प्रत्येक स्त्री के अंदर मजबूत पौरुषपन मौजूद रहता है। उसे हौसला और स्वयं पर विश्वास होता है। पति के असामयिक निधन के बाद दोनों बेटों की इंजीनिय¨रग की शिक्षा पूरी कराई। बेटी को भी इंजीनियर बनाया। इंजीनिय¨रग की पढ़ाई के बाद बड़े पुत्र आर्य ने टीसीएस तथा छोटे पुत्र ने मेकान राची में नौकरी ज्वाईन कर ली। मगर दोनों की इच्छा आगे अध्ययन करने और बेहतर करियर प्राप्त करने की थी। सामान्य परिवार में पति की मौत से नियमत आय में रुकावट तो आ ही गयी थी। सुमन तिवारी ने हौसला किया। वह एक स्कूल का संचालन पति की जिंदगी से ही कर रहीं थी। स्कूल पर उन्होंने औऱ अधिक ध्यान देना शुरू किया। बेटों ने नौकरी छोड़ दी। अध्ययन करने लगे। अनुकूल सफलता मिली। बड़े पुत्र ने बैंक में पीओ की परीक्षा उतीर्ण की। छोटे पुत्र ने एमटेक की डिग्री आइआइटी दिल्ली से ली और आल इंडिया रेलवे सर्विसेज की परीक्षा में पांचवा स्थान पाया। फिलहाल अलीगढ़ में रेलवे में कार्यरत हैं।
पुत्री इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करने के पश्चात एम टेक कर चुकी हैं और अभी भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। पुत्री विवाहित है। उसके विवाह के कर्मकाड के दौरान कन्यादान का रस्म उन्होंने ही किया। प्रचलित विधि के अनुसार पति के नहीं रहने पर परिवार के अन्य पति-पत्नी यह दायित्व निभाते हैं। सुमन तिवारी बताती हैं-पुत्री को कन्यादान देने का समय आया तो मैंने कहा, पति के स्वर्गवास के पश्चात से मैं माता और पिता दोनों की भूमिका निभा रही हूं। इसलिए यह कर्म काड मैं अकेले की संपन्न करूंगी और कन्यादान किया।
सुमन ने खुद को एक मजबूत हौसले वाली मा साबित किया है। मां और पिता दोनों की भूमिका का बखूबी निर्वहन करते हुए अपने संतान को संस्कार के साथ-साथ लक्ष्य हासिल करने का विश्वास भी दिया। सुमन के पुत्र आयुष कहते हैं, आजीवन मां के चेहरे पर शिकन नहीं आने देंगे। मां है तो सब कुछ है। हमारे व्यक्तित्व को बनाने और संवारने में सबसे बड़ी भूमिका मां की है।