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जब कोयलाचल से गुजरा था नीरज की कविताओं का कारवा..

अभी-अभी विगत 19 जुलाई को भारत के काव्य-गगन के जाज्वल्यमान नक्षत्र एवं सुविख्यात कवि गोपालदास 'नीरज' को हमने खो दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 11:14 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 11:14 AM (IST)
जब कोयलाचल से गुजरा था नीरज की कविताओं का कारवा..
जब कोयलाचल से गुजरा था नीरज की कविताओं का कारवा..

अभी-अभी विगत 19 जुलाई को भारत के काव्य-गगन के जाज्वल्यमान नक्षत्र एवं सुविख्यात कवि गोपालदास 'नीरज' को हमने खो दिया। यह कोयला क्षेत्र के साहित्यानुरागियों के लिए भी अत्यंत दुखद अनुभूति है। गोपाल दास 'नीरज' का झरिया भी आगमन हुआ था और उनकी काव्य-गंगा भी बही थी। लेकिन, वह कार्यक्रम इतना आकस्मिक हुआ था कि कोई विधिवत सार्वजनिक आयोजन संभव नहीं हो पाया था।

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यह वह समय था जब नीरज की लोकप्रियता का प्रकाश न केवल पूरे उत्तर भारत के मंचों से बल्कि आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों के माध्यम से समूचे देश में फैलने लगा था। उन दिनों झरिया कोयला क्षेत्र साहित्य के लिए अनुकूल जगह थी। कारण, यहा कवियों एवं कथाकारों के गुणग्राहक थे। नीरज अपनी कविताओं से इस क्षेत्र के साहित्यप्रेमियों के दिल में भी अपनी जगह बनाने लगे थे। तबतक उनका अवतरण फिल्मों में गीतकार के रूप में भी हो गया।

1966 में नीरज की पहली फिल्म 'नई उमर की नई फसल' आयी थी। इसके निर्माता आर चन्द्रा थे। इसमे काम करने वाले कलाकारों को भले शोहरत नहीं मिली, लेकिन 'नीरज' को उनके गीत 'कारवा गुजर गया, गुबार देखते रहे' को मशहूर गायक मो. रफी ने स्वर देकर ऐसा जीवंत कर दिया कि यह पंक्ति दर्शकों-श्रोताओं के हृदय में दशकों के लिए उतर गयी।

उन्हीं दिनों, झरिया कोयला क्षेत्र में दो प्रयोगधर्मा कलाकार थे जिन्होंने श्रोताओं और दर्शकों के हृदय में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी। इनमें से पहले थे- प्रसिद्ध कैरीकैचरिस्ट एवं झरिया के हेटलीबाध मुहल्ले के निवासी ज्ञान प्रकाश 'रहलन'। दूसरे थे झरिया-धनबाद मुख्य मार्ग स्थित एना-इस्लामपुर मुहल्ले के रहने वाले एवं कला-मंचों, मुशायरो के सफल आयोजनकर्ता कयूम 'साबिर'। इन दोनों की गोपाल दास नीरज से खूब छनती थी। बड़े शहरों में होने वाले आयोजनों में इन दोनों की अक्सर नीरज से मुलाकातें होती रहती थी। संबंध इतने गहरे थे कि तीनों आपस में 'तुम' का ही संबोधन करते थे। साबिर को एक बीमारी की वजह से एक टाग कटवानी पड़ी थी। अपनी विकलागता के बावजूद वे कवि-सम्मेलन और मुशायरों आदि के आयोजन में बेजोड़ पकड़ रखते थे। खासकर, बिहार-बंगाल में खूब ख्याति कमायी थी। सन् 1966 ई. के मई महीने में साबिर ने कोलकाता में आयोजित कवि-सम्मेलन में नीरज जी से कोयलाचल चलने का वचन ले लिया। इधर, ज्ञान प्रकाश ने भी 'नीरज' को धनबाद आने का कई बार आग्रह किया था।

साबिर को दिये वचन के मुताबिक कोलकाता से दिल्ली जाने के समय धनबाद में यात्रा-भंग (ब्रेक जर्नी) का टिकट नीरज जी ने लिया।

धनबाद स्टेशन में रात बारह बजे कालका मेल से वे उतरे। उनके स्वागत में इन पंक्तियों के लेखक के साथ-साथ हाजी इजराइल अंसारी, झरिया के सीताराम गुप्ता, बिहारी लाल शर्मा, मासूम अली, इलियास अहमद गद्दी, ज्ञान प्रकाश 'रहलन', डॉ कमलजीत सिंह सोढ़ी, कमल शर्मा आदि थे। उनको स्टेशन से झरिया लाने के लिए, झरिया माइन्स बोर्ड के पदाधिकारी कालीशकर वर्मा ने एक कार की व्यवस्था कर दी थी। नीरज जी को ज्ञान प्रकाश के घर पर ठहराया गया।

चूंकि, नीरज का आगमन बेहद आकस्मिक था, इसलिए अगले दिन प्रात: जलपानोपरान्त, रहलन निवास के एक कक्ष में ही उनके लिए कार्यक्रम शुरू हुआ। अध्यक्षता शायर डॉ यमुनादास अनेजा 'प्रेम' ने की थी। गोष्ठी के प्रारंभ में नीरज जी ने स्थानीय कवियों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से पहले उनसे कविता-पाठ करने का आग्रह किया था। लेकिन, उपस्थित सभी कवियों एवं साहित्यकारों ने एक स्वर में उन्हें ही सुनने की आतुरता जतायी थी। फिर भी, नीरज जी के जोर देने पर कुछ कवियों ने अपना काव्य-पाठ किया। शायर गुलजार अहमद ने अपनी एक गजल से महफिल की शुरूआत की। रवीन्द्र 'करूण' एवं कमर मकदुमी ने भी अपनी रचना सुनाई।

उसके बाद लगभग एक घटे तक नीरज ने कविता पाठ किया, जिसने उपस्थित लोगों को इस तरह से मंत्रमुग्ध कर दिया कि आज लगभग 52 साल बाद भी उस कार्यक्रम के जीवित बचे गवाह 'अश-अश' कर उठते हैं। नीरज जी उसी दिन दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गये।

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प्रस्तुति : बनखंडी मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार


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