Jharkhand Assembly Election 2019 : यहां वंशवाद की गोद में कई दल, भाजपा उम्मीदवार पर भी विरासत बचाने की है चुनौती Dhanbad news
वंशवाद का मुखर विरोधी रही भाजपा ने झरिया से रागिनी सिंह टुंडी से विक्रम पांडेय और निरसा सीट से अपर्णा सेनगुप्ता को टिकट दिया है। हालांकि अन्य दल भी वंशवाद की गोद में बैठे दिखते हैं।
धनबाद, (रोहित कर्ण)। वंशवाद के लिए हमेशा से विपक्षी दलों पर हावी रही भारतीय जनता पार्टी इस बार स्वयं उसी की गोद में बैठी दिखाई दे रही है। धनबाद की तीन सीटों पर पार्टी ने ऐसे प्रत्याशियों को खड़ा किया है जिनकी कुल जमा राजनीतिक पूंजी उनके परिजनों का मुकाम है। न कोई आंदोलन न संघर्ष। सीधे परिजनों के नाम पर एंट्री लेते हुए इन तीनों ने पार्टी टिकट झटक लिया है।
इनमें झरिया से रागिनी सिंह, टुंडी सीट से विक्रम पांडेय और निरसा सीट से अपर्णा सेनगुप्ता शामिल हैं। हालांकि अन्य दलों ने भी धनबाद में वंशवाद को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रखा है।
झरिया में एक ही परिवार के तीसरे व्यक्ति को टिकट : झरिया विधानसभा सीट से इस बार भाजपा ने रागिनी सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है। रागिनी जेल में बंद विधायक संजीव सिंह की पत्नी हैं। उन्होंने कुछ माह पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। जिला परिषद मैदान में लोस उम्मीदवार पीएन सिंह के नामांकन सभा में आए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उन्हें पार्टी में शामिल कराया और अब उन्हें टिकट भी मिल गया। इससे पूर्व के चुनाव में भी भाजपा ने संजीव सिंह को उनकी मां कुंती देवी की जगह पार्टी में शामिल करवा कर टिकट दिया था।
टुंडी में विक्रम पांडेय को उतारा : धनबाद जिले के ही टुंडी विधानसभा सीट से भाजपा ने इस बार विक्रम पांडेय को उम्मीदवार घोषित किया है। विक्रम पांडेय गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से पांच बार सांसद रहे रवींद्र पांडेय के पुत्र हैं। रवींद्र पांडेय का टिकट लोकसभा चुनाव के दौरान काट दिया गया था।
निरसा से अपर्णा सेनगुप्ता भी लड़ रहीं विरासत की जंग : निरसा विधानसभा सीट से भाजपा की प्रत्याशी अपर्णा सेनगुप्ता भी राजनीति में अपने पति की सहानुभूति लहर पर सवार होकर ही आई थीं। उन्हें इसका लाभ भी मिला था और वे न सिर्फ विधायक चुनी गईं बल्कि मंत्री बनने का भी मौका मिला। उनके पति सुशांतो सेन गुप्ता फारवर्ड ब्लॉक के नेता थे। हालांकि वे कभी विधायक नहीं रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में चौथे स्थान पर पिछड़ने के बाद अपर्णा सेनगुप्ता ने भाजपा का दामन थाम लिया और इस चुनाव में भाजपा ने अपर्णा को टिकट दिया। गणोश पिछली बार दूसरे स्थान पर रहे थे और लगभग एक हजार मतों के अंतर से ही पराजित हुए थे। उनका मुकाबला भी विरासत बचाने को उतरे वामपंथी उम्मीदवार अरुप चटर्जी से है।
यहां लाल झंडा को भी लगा वंशवाद का चस्का : वंशवाद का मुखर विरोधी रहे कम्यूनिस्ट विचारधारा के लोग भी धनबाद में उसकी गोद में बैठे दिखते हैं। निरसा से चार बार विधायक रहे अरूप चटर्जी पूर्व विधायक गुरुदास चटर्जी के पुत्र हैं। गुरुदास की हत्या के बाद मासस ने अरूप को निरसा से उम्मीदवार बनाया और सहानुभूति लहर पर सवार अरूप ने निरसा में मासस का गढ़ मजबूत किया।
आज भी बिनोद बाबू के कारण जाने जाते राजकिशोर : टुंडी से आजसू पार्टी के प्रत्याशी राजकिशोर महतो आज भी बिनोद बिहारी महतो के पुत्र के नाते जाने जाते हैं। झारखंड आंदोलन के अगुवा बिनोद बिहारी महतो के निधन के बाद वे गिरिडीह से लोकसभा प्रत्याशी बने और मध्यावधि चुनाव में विजयी भी हुए। महतो सिंदरी विस सीट से भाजपा के टिकट पर भी विधायक रह चुके हैं। फिलहाल वे आजसू पार्टी से ही टुंडी से विधायक हैं।
अन्य दलों में भी विरासत के लिए जंग : धनबाद में और भी दल हैं जहां से खड़े प्रत्याशी राजनीति में सिर्फ अपने परिजनों की वजह से हैं और उन्हीं के नाम पर वोट मांग रहे हैं। इनमें झरिया से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा नीरज सिंह के पति नीरज सिंह विधानसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी थे और दूसरे स्थान पर रहे थे। उनकी हत्या के बाद पूर्णिमा को कांग्रेस ने टिकट दिया है।
झरिया से ही अवधेश यादव राजद नेता राजू यादव और आबो देवी के पुत्र हैं। आबो राजद के टिकट पर दो बार विधायक चुनी गईं और बिहार सरकार में मंत्री भी रहीं। इस बार सीट गठबंधन के तहत कांग्रेस को चला गया तो मां-बेटे आजसू पार्टी में शामिल हो गए। झरिया से झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे योगेंद्र यादव भी अपने भाई स्व. राजू यादव के नाम पर ही राजनीति में शामिल हुए।