विलुप्त हो चुकी सोहराई पेंटिंग में मालो और यशोदा ने भर दी जान, अब इंग्लैंड में रंग जमाने की तैयारी Dhanbad News
सोहराई पेंटिंग में केवल प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले रंगों को काली पिली गेरुआ मिट्टी को पत्थर से पीसकर बनाया जाता है।
धनबाद, जेएनएन। विलुप्त हो चुकी सोहराई पेंटिंग की कला को हजारीबाग की मालो देवी एवं यशोदा देवी ने जीवित रखा है। धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में चल रहे आजीविका सरस मेला- 2019 में हजारीबाग दोनों सोहराई पेंटिंग के साथ हाजिर हैं। मालो एवं यशोदा ने हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड के जोराकाट से आकर मेला में स्टॉल लगाई है। इनके स्टॉल पर सोहराई पेटिंग देखने और खरीदने वालों की अच्छी-खासी भीड़ लग रही है। इससे दोनों उत्साहित हैं।
मालो देवी के अनुसार सोहराई पेटिंग काफी प्राचीन कला है। यह लगभग विलुप्त हो चुकी थी। इस प्राचीन कला को जीवित रखने का प्रयास किया गया है। उन्होंने बताया कि सोहराई पेंटिंग में केवल प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले रंगों को काली, पिली, गेरुआ मिट्टी को पत्थर से पीसकर बनाया जाता है। पत्थर से पिसाई करने के बाद इसे चालनी में चाल कर पानी में फुलाने छोड़ दिया जाता है। इसके बाद उस मिश्रण में गोंद मिलाकर रंग को तैयार किया जाता है। सोहराई पेंटिंग हेलमेट पेपर पर बनाई जाती है।
सोहराई पेटिंग की विदेशों में बढ़ रही मांगः यशोदा देवी ने बताया कि इस कला की विदेश में बहुत मांग है। विदेशी लोग प्राकृतिक रंगों से बनी पेंटिंग को खोजते हैं। इनके पेंटिंग की मुंबई, दिल्ली सहित विभिन्न शहरों में काफी मांग है। स्थानीय बाजार में इसे 250 से लेकर 1000 रुपए में बेचते हैं। जबकि मुंबई में यही पेंटिंग 10 हजार रुपए तक बिक जाती है।
इंग्लैंड में बनेगी लाइव पेटिंगः मालो देवी ने बताया कि इस वर्ष दिसंबर माह में वे इंग्लैंड जा रही है। वहां सोहराई पेंटिंग बनाने की सारी सामग्री लेकर जाएंगी और लाइव पेंटिंग बनाएंगी। इसके अलावा इन्होंने रांची के ओरमांझी पार्क, रातू रोड, कई मंत्रियों के आवास, मछली घर, तोरी रेलवे स्टेशन, टाटीसिलवे रेलवे स्टेशन में भी सोहराई पेंटिंग बनाई है।